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"आन" फिल्म का एतिहासिक स्टेज "नरसिंहगढ़ किला" न आन और न शान कायम रख पाया

आन फिल्म का एतिहासिक स्टेज नरसिंहगढ़ किला न आन और न शान कायम रख पाया
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नरसिंहगढ़/श्याम चोरसिया। जिस बुलन्द नरसिंहगढ़ किले फलित ज्योतिष की कुछ शाखाओं को परवान चढ़ाया हो। जिस किले के विशाल प्रांगण में स्वर्गीय अभिनेता दिलीप कुमार ने आन फ़िल्म की शूटिंग के दौरान घोड़े दौड़ाए हो।इटालियन स्विनिंग पुल में अटखेलिया की हो। उसी बुलन्द ओर रौनकदार किले को समय के राहु ने खंडहर में बदल वीरान,बेचिराग कर दिया।अब किले में न सुर है। न संगीत न ताल न थाप।सब कुछ शुन्य, सन्नाटा।

सन्नाटे की तह में 05 दशक पूर्व फैलाई अफवाह भी है। एक काले दिन नरसिंहगढ़ के कुछ लोग किले पर टूट पड़े।बर्तन,फर्नीचर,क्रॉकरी,झूमर, नककसीदार खिड़की दरवाजे, कालीन, आदि लूट लिए।खजाने की तलब में किले की मजबूत दीवार खोद डाली। छत गिरा दी। श्री कीर्ति का नाश कर दिया। आन,बान, शान को राहू लगा दिया। राजतंत्र पर लोकतंत्र की इतनी बडी लूट किसी भी रियासत ने नही देखी।

किले को समय के राहू ने भले ही खण्डर में बदल दिया हो।मगर आज भी किले के अनेक हिस्से, दालान, हाल, मेहराब, गेट मोहित किए बिना नही रहते। नरवर किले की तरह इसके किसी भी कोने में किसी को किसी भी समय डर नही लगता।हैरतंगेज ये हे कि लावारिस पडे होने के बाबजूद किसी भी हिस्से में मकड़ी के जाले नही दिखते न धूल।इतने विशाल भूल भूलिय्या वाले किले की दशकों से सफाई नही हुई। रंग रोगन तो दूर की कौड़ी है।

राजगढ़ रियासत के बटवारे के बाद 1672 के करीब अस्तित्व में आए नरसिंहगढ़ को सजाने-सवारने का बीड़ा धर्म परायण,प्रजावत्सल महाराज परसराम सिह जी ने उठाया।उन्होंने नेपाल से मंगवाकर अष्ट धातु की दिव्य,भव्य भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा की स्थापना की।इनके नाम पर ही महाराज शासन किया करते थे। आज भी हर दशहरे पर सशत्र सिपाही सलामी देते है।किला ओर इतिहासिक झील उन्होंने लगभग एक साथ ही बनवाए।

शिल्प कला का बेजोड़ किला मांडू, महेश्वर ओर ग्वालियर के बीच केवल नरसिंहगढ़ में ही है।जबकि राजस्थान में हर 25 किलोमीटर पर किले मिल जाएंगे। आजादी के बाद राज परिवार को कम आय में किले की शान शौकत बनाए रखना कठिन लगा।562 रियासतों के अध्यक्ष राजा भानु प्रताप सिंह राजनीति में ऐसे रमे कि वे दिल्ली,भोपाल,इन्दोर के होकर रह गए।वे सीधी की लोकसभा सीट फतह करके इंद्रा गांधी के मंत्री मंडल में राजमंत्री बने। प्रिपर्स पर लिए गए भेदभाव और अव्यवहारिक निर्णय से खफा होकर उन्होंने मंत्रिमंडल से स्तीफा दे दिया।और 562 रियासतों की विभिन्न समस्याओं,विलीनीकरण के समझौतों को नजरंदाज किए जाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 1990 में गोवा के राजपाल बने।

किले के उद्धार के लिए महाराज भानु प्रकाश जी ने अथक प्रयास किए।राजस्थान की तर्ज पर किले को हेरिटेज होटल में बदलने, सेना ट्रेनिग सेंटर खुलवाने सहित अनेक प्रस्ताव सरकार को दिए।मगर पर्यटन नक्से की अनेक विसंगतियों,शर्तो को पूरा न करने के कारण दाल नही गली। कुछ विदेशियों ने भी खरीदने के प्रस्ताव रखे। मगर महाराज श्री सिंह सहमत नही हुए।

अब महाराज भानु प्रताप सिंह के पुत्र महाराज विधायक राजवर्धन सिह भी इसके उद्धार में लगे है। मगर बात कम ही बन पा रही है।वे बड़ी व्यस्तता के बाबजूद किले जाते है। कोई राजनेता आता है। उसे दिखाते है। बताते है। उद्धार में रियासत से रिश्ता रखने वाले भी बेवजह रोड़ा बन हुए है।उनकी लोभी आपत्तियां किले को खण्डर में बदलने की बडी जिम्मेदार बताई जाती है।


Updated : 9 Aug 2021 12:24 PM GMT
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