Home > एक्सक्लूसिव > मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन : केवल तीन दिन में लग गये थे लाशों के ढेर

मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन : केवल तीन दिन में लग गये थे लाशों के ढेर

- रमेश शर्मा

मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन : केवल तीन दिन में लग गये थे लाशों के ढेर
X

भारत को स्वतंत्रता बहुत सरलता से नहीं मिली है । यह दिन मानों रक्त के सागर से तैरता आया था । रक्तपात विदेशी आक्रांताओं से मुक्ति के लिये तो हुआ ही । इसके साथ भारत विभाजन में भी भीषण नरसंहार हुआ । और विभाजन की माँग के लिये भी विभाजन की माँग करने वालों ने लाशों कै ढेर लगा दिये थे । यह नरसंहार 16 अगस्त 1946 को शुरु हुआ और मात्र तीन दिनों में बंगाल और पंजाब में लाशों के इतने ढेर लग गये थे कि उठाने वाले नहीं बचे थे । उस सड़ाँध से बीमारियों से मौतें हुईं सो अलग ।

हालाँकि उस समय के शासक अंग्रेज़ी सरकार भारत विभाजन के लिये सैद्धांतिक सहमत था । उनकी तो नीति ही थी कि बाँटो और राज्य करो लेकिन विभाजन का अभियान चला रहे लोगों के मन की नफरत और क्रूरता ने पूरे देश को हिंसा की भट्टी में झौंक दिया था । यह क्रूर और हिंसक मानसिकता थी मुस्लिम लीग और उसका नेतृत्व कर रहे मोहम्मद अली जिन्ना की । उनकी पीठ पर अंग्रेजों का हाथ था । उन्होंने मुसलमानों के लिये अलग राष्ट्र की माँग रख दी । लीग ने इस सत्य को नकार दिया कि भारत में रहने वाले सभी भारतीयों के पूर्वज एक ही हैं । पूजा पद्धति या पंथ बदलने से राष्ट्रीयता नहीं बदलती और न पूर्वज बदलते हैं । हालांकि मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज हिन्दु ही रहे हैं लेकिन उन्होंने कहा कि हिन्दु और मुसलमान दो राष्ट्र हैं । जो कभी एक साथ नहीं रह सकते ।

इस सिद्धांत को सबसे पहले सर सैय्यद अहमद ने 1887-1888 के आसपास अपने भाषणों में प्रस्तुत किया था । जो समय के साथ आगे बढ़ा और 1906 में मुस्लिम लीग का गठन के बाद एक अभियान के रूप में बदल गया । इस अभियान को आसमान पर पहुँचाया मोहम्मद अली जिन्ना ने । मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग को मजबूत करने के लिये 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की । यह एक योजना बद्ध अभियान था जिसकी तैयारी महीनों पहले से की गयी थी । जहां मुस्लिम लीग समर्थक सरकारें थीं वहां पाकिस्तान समर्थक मानसिकता के नौजवानों को पुलिस में भर्ती किया और जिन प्रांतों में उनकी समर्थक सरकारें नहीं थी वहां सशस्त्र बालेन्टियर तैयार किये थे । इन सबने मिलकर इतनी हिंसा की जिसे देखकर समस्त भारत वासियों की आत्मा कांप गयी । और अंत में बंटवारे का मसौदा तैयार हो गया ।

पाकिस्तान की माँग के लिये हुआ यह डायरेक्ट एक्शन कितना भीषण था इस का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि केवल तीन दिन में बंगाल और पंजाब की गलियाँ लाशों से पट गयीं थीं । लाखों घर तोड़ डाले, लूट और महिलाओं से किये गये अत्याचार की गणना ही न हो सकी । यह डायरेक्ट एक्शन देश भर में अलग-अलग स्थानों पर अलग दिन चला तो कहीं एक दिन कहीं सप्ताह भर । कहीं कहीं तो तनाव में महीनों रहा ।

अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़े मुस्लिम लीग और जिन्ना की पीठ पर अंग्रेजों का हाथ था । लिहाजा जिन्ना और उनकी टीम को हर काम करने और अभियान चलाने की मानों खुली छूट थी । इसका फायदा उठाकर मुस्लिम ने न केवल अपने लिये जन समर्थन जुटाने और लोगों को हिंसक बनाने का अभियान चला रही थी बल्कि उसने सशस्त्र बलों के समान बाकायदा एक समूह भी तैयार कर लिया था । समानांतर पुलिस बल की तरह यह ऐसे नौजवानों का समूह था जो इशारा मिलते ही सशस्त्र रूपमें मैदान में आकर डट जाते थे । इनकी संख्या के अलग अलग दावे हैं । पंजाब में यह संख्या चालीस हजार तक अनुमानित है तो और बंगाल में बाईस हजार । मुस्लिम लीग के प्रभाव वाले स्थानों से जगह जगह एक निश्चित समय पर सशस्त्र भीड़ निकली । जो दिखा उसे मार डाला गया । पंजाब में कहीं कहीं प्रतिरोध भी हुआ और दंगे शुरु हुये लेकिन बंगाल में कोई प्रतिरोध न हो सका । वहां हिंसा एक तरफा रही थी इसका कारण यह था कि बंगाल में सत्ता के सूत्र सोहरावर्दी के हाथ में थे । सोहरावर्दी भी पाकिस्तान समर्थक थे । उन्होंने अवकाश घोषित कर दिया था । सरकारी तंत्र में मौजूद जिन्ना और पाकिस्तान समर्थकों को अवसर मिला । सरकारी सैनिक भी हथियार लेकर निकल पड़े, जो गैर दिखा उसे मार डाला गया, मौत का तांडव हो गया । अकेले कलकत्ता, नौवाखाली और ढाका में सोलह से 18 अगस्त के बीच बीस हजार मौतों का अनुमान है । जबकि पंजाब और बंगाल में लगातार हुये इस कत्ले-आम के सारे आकड़े जोड़े तो एक लाख तक होने का अनुमान हैं । दहशत इतनी ज्यादा कि लोग लाशें उठाने तक न आये । लाशे हफ्तों तक पड़ी सड़ती रहीं ।

अंततः साल भर बाद भारत विभाजित हो गया । पाकिस्तान को पंजाब और बंगाल के आधे आधे हिस्से दिये गये । पाकिस्तान समर्थक पूरा पंजाब और पूरा बंगाल चाहते थे । जब बातचीत से बात न बनी और इन दोनों प्रांतों का विभाजन निश्चित हुआ तब पाकिस्तान समर्थकों ने पुनः हिंसा शुरू करदी । वे हिंसा के द्वारा अधिक से अधिक भूमि पर कब्जा करने की रणनीति उतर आये । वे पुनः मारकाट पर उतर आये । आजादी के समझौते के अनुरूप ब्रिटिश सेना दस अगस्त से अपना कैंप खाली करने लगी थी । और तेरह अगस्त तक लगभग ज्यादा तर कैंप खाली हो गये थे । इसका एक कारण यह भी था कि 1857 की क्रान्ति में अंग्रेज़ी सैनिक निशाना बनाये गये थे । इसलिये अंग्रेजी हुकूमत को अपने सैनिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहले भेजना था। इससे हिंसक तत्वों का हौसला बढ़ा और उन्होंने फिर मारकाट शुरु कर दी । नतीजा क्या हुआ कितने लोग मारे गये यह सब इतिहास के पन्नो में दर्ज है । पंजाब और बंगाल की गलियाँ एक बार फिर लाशों से पट गईं । ये खूनी गलियों में से ज्यादातर अब पाकिस्तान में हैं और कुछ बंगलादेश में ।

निसंदेह इस वर्ष भारत आपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं । पर इस तरह के इतिहास की स्मृतियाँ भारतीयों को बहुत बोझिल बनाती है । और समूचे भारत वासियों को जाग्रत और संगठित रहने का संदेश देती हैं । भारत वासियों को संगठित रहने का संकल्प लेना होगा अंर अपने बीच किसी भी भेद कराने वाली बातों से सतर्क रहना होगा । तभी अमृत महोत्सव सार्थक हो सकेगा ।

Updated : 17 Aug 2021 6:16 PM GMT
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top