विशेष : ग्रामीण बंगाल में "दीदी के बोलो" अभियान को तवज्जो नहीं दे रहे तृणमूल नेता
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कोलकाता/वेब डेस्क। लोकसभा चुनाव में तृणमूल को हुए नुकसान के बाद अपनी खोई हुई साख बचाने के लिए पाार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने "दीदी के बोलो" नाम से एक व्यापक जनसंपर्क कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके तहत एक वेबसाइट और हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने विधायकों और जिलाध्यक्षों को अपने-अपने क्षेत्रों के गांवों में जाकर जनसंपर्क अभियान चलाने का निर्देश दिया है। लेकिन ग्रामीण बंगाल में तृणमूल नेताओं की निष्क्रियता के कारण मुख्यमंत्री की यह योजना निष्प्रभावी दिख रही है। तृणमूल नेताओं को मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि वे अपने क्षेत्रों के तृणमूल कार्यकर्ताओं के घरों में रात को ठहरें, वहां भोजन करें और सांगठनिक बैठक करें। इससे एक तरफ लोगों से भी संपर्क बढ़ेगा और दूसरी तरफ सांगठनिक मजबूती भी मिलेगी।
गत 29 अगस्त को ही मुख्यमंत्री ने यह निर्देश दिया था। अब 10 दिन बीत चुके हैं लेकिन आम कार्यकर्ताओं की तो छोड़िये, विधायक और जिलाध्यक्ष भी मुख्यमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के लिए गंभीर नहीं दिख रहे हैं। एकमात्र उत्तर 24 परगना के हाबरा से विधायक और राज्य के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक ने गत शनिवार को एक गांव में जाकर लोगों से मुलाकात की थी और एक तृणमूल कार्यकर्ता के घर खाना खाकर समय बिताया था। इसके अलावा किसी अन्य नेता ने मुख्यमंत्री की इस योजना को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। हालांकि कुछ नेताओं ने खानापूर्ति करने की कोशिश जरूर की। कूचबिहार जिले के विधायक रवींद्रनाथ घोष बिना एक गांव में गए जरूर थे लेकिन वहां दीदी के बोलो कार्यक्रम का प्रचार करने के बजाय केवल जनसभा कर लौट आये।
पर्यटन मंत्री गौतम देव सिलीगुड़ी के पास फापड़ी गांव में गए थे लेकिन चुनिंदा लोगों से मुलाकात की। रात को एक तृणमूल कार्यकर्ता के घर समय भी बिताया लेकिन सांगठनिक बैठक नहीं की। इसी तरह नारायणगढ़ के विधायक प्रद्युत घोष अपने क्षेत्र में गए लेकिन किसी भी गांव वाले से बात नहीं की। मेदिनीपुर के विधायक नरेंद्र नाथ माइती भी जनसंपर्क के लिए निकले तो उन्होंने लोगों की समस्याएं सुनने और समाधान में बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई। नियमित तौर पर इन नेताओं को जनसंपर्क का निर्देश मुख्यमंत्री ने दिया है लेकिन 10 दिनों के भीतर कोई एक दिन के लिए गया है तो कोई गया ही नहीं। ऐसे में सवाल है कि जब मुख्यमंत्री का निर्देश उन्हीं की पार्टी के विधायक और जिलाध्यक्ष नहीं मान रहे हैं तो यह योजना कितनी अधिक सफल होगी? कुल मिलाकर कहा जाए तो खोए जनाधार को पुनः हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री ने जिस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की और जिस विश्वास से उन्होंने तृणमूल नेताओं को इसे सफल बनाने का निर्देश दिया था वह फिलहाल मूर्त रूप लेता हुआ नहीं दिख रहा है। (हि.स.)
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