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देश के सबसे उम्रदराज सक्रिय राजनेताओं में से एक थे करुणानिधि

देश के सबसे उम्रदराज सक्रिय राजनेताओं में से एक थे करुणानिधि
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महज 14 साल की उम्र में हिंदी विरोध के साथ राजनीति में कदम रखने वाले मुथुवेल करुणानिधि का मंगलवार को सायं 6 बजे निधन हो गया। अपने 80 साल के करियर में वे कभी भी कोई चुनाव नहीं हारे। वे तमिल फिल्मों में नाटककार और पटकथा लेखक भी थे। उनका जन्म 3 जून, 1924 को तिरुवरूर जिले के तिरुकुवालाई गांव में हुआ था। करुणानिधि की तीन शादियां हुई थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती अम्माल था। जिनसे उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम एमके मुथू था। लेकिन दुखद रूप से दोनों की ही जल्द मौत हो गई। इसके बाद उनकी शादी दयालु अम्मा से हुई। जिनसे इस कपल को चार बच्चे हुए, एमके अलागिरि, एमके स्टालिन, एमके तमिलारसु और सेल्वी। उनकी तीसरी पत्नी का नाम राजाथि अम्माल हैं, जिनसे उन्हें एक बेटी (कनिमोझी) हैं।

कलाकुडी आंदोलन से बढ़ा राजनीति में कद

1953 में कलाकुडी आंदोलन में शामिल होने के बाद करुणानिधि का राजनीतिक ग्राफ काफी ऊंचा हो गया। इस आंदोलन में दो लोगों की मौत हो गई थी और करुणानिधि को गिरफ्तार कर लिया गया था। 1957 में वे द्रमुक के टिकट पर तिरुचिरापल्ली जिले की कुलथलाई सीट से पहली बार मद्रास स्टेट असेंबली के लिए चुने गए। 1961 में वे द्रमुक के कोषाध्यक्ष बने। अगले साल प्रदेश विधानसभा के विधानसभा उपाध्यक्ष चुने गए। द्रमुक ने 1967 में मद्रास स्टेट में पहली बार सरकार बनाई। सीएन अन्नादुरई राज्य के मुख्यमंत्री बने और करुणानिधि को पीडब्ल्यूडी मंत्री बनाया। 1969 में मद्रास स्टेट से अलग होकर तमिलनाडु राज्य बना। अन्नादुरई 14 जनवरी, 1969 को तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री बने। लेकिन 20 दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। उनकी जगह वीआर नेदुचेझियान को अंतरिम मुख्यमंत्री बनाया गया। 7 दिन बाद यानी 10 फरवरी, 1969 को करुणानिधि प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री बने। वे 4 जनवरी, 1971 तक इस पद पर रहे। 1971 में विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी दोबारा सत्ता में आई और वे फिर मुख्यमंत्री बने। वे 5 बार 10 फरवरी 1969 से 4 जनवरी 1971, 15 मार्च 1971 से 31 जनवरी 1976, 27 जनवरी 1989 से 30 जनवरी 1991, 13 मई 1996 से 13 मई 2001, 13 मई 2006 से 15 मई 2011 तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उनके नाम सबसे ज्यादा 13 बार विधायक बनने का रिकॉर्ड भी है।

हिंदी विरोधी आंदोलन से जुड़े, हाथ से लिखकर अखबार निकाला

जस्टिस पार्टी के अलागिरीस्वामी के भाषण से प्रभावित होकर करुणानिधि ने राजनीतिक जीवन में कदम रखा, तब उनकी उम्र 14 साल थी। वे हिंदी विरोधी आंदोलन से जुड़े। उन्होंने स्थानीय स्तर पर युवाओं को इकट्ठा किया और हाथ से लिखकर 'मानवर निशान' नाम का समाचार पत्र निकालना शुरू किया। उन्होंने 20 साल की उम्र में ज्यूपिटर पिक्चर्स में पटकथा लेखक के रूप करियर शुरू किया। उनकी पहली ही फिल्म 'राजकुमारी' काफी लोकप्रिय हुई। करुणानिधि के नाटकों और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने के दौरान ही जस्टिस पार्टी के पेरियार इरोड वेंकटप्पा रामासामी और सीएन अन्नादुरई की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने करुणानिधि को पार्टी की पत्रिका 'कुदियारासु' का संपादक बना दिया। हालांकि, 1947 में पेरियार और अन्नादुरई में मतभेद हुए। 1949 में अन्नादुरई ने द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) का गठन किया। करुणानिधि अन्नादुरई के साथ रहे। उन्होंने 'मुरासोली' नाम का अखबार भी निकालना शुरू किया, जो बाद में द्रमुक का मुखपत्र बना।

एमजीआर को पीछे नहीं छोड़ पाए

करुणानिधि की तरह मरुदुर गोपालन रामचंद्रन (एमजीआर) भी द्रमुक के संस्थापक सदस्यों में थे। लेकिन, अन्नादुरई की मृत्यु के बाद करुणानिधि और एमजीआर में मतभेद पैदा होने लगे। 1972 में एमजीआर ने द्रमुक से अलग होकर ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) का गठन किया। 1976 के बाद तमिलनाडु में 516 दिन तक राष्ट्रपति शासन रहा। 1977 में प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए। एमजीआर की पार्टी सत्ता में आई और वे मुख्यमंत्री बने। एमजीआर का तमिलनाडु की राजनीति में इतना प्रभाव था कि जब तक वे जीवित रहे, तब तक करुणानिधि दोबारा सत्ता में नहीं आ सके। हालांकि करुणानिधि खुद कभी कोई चुनाव नहीं हारे। एमजीआर के निधन के बाद 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में द्रमुक को बहुमत मिला और करुणानिधि फिर मुख्यमंत्री बने।

46 साल तक काला चश्मा पहना

करुणानिधि की 1971 में अमेरिका के जॉन हॉपकिंग्स अस्पताल में आंखों की सर्जरी हुई थी। इसके बाद से 46 साल तक उन्होंने काला चश्मा पहना। डीएमके में उनके साथी रहे और बाद में अन्नाद्रमुक की स्थापना करने वाले एमजी रामचंद्रन भी काला चश्मा पहनते थे। करुणानिधि ने 2017 में ही डॉक्टरों की सलाह पर काला चश्मा पहनना छोड़ा था। इसके बदले में उनके लिए इम्पोर्टेड चश्मा मंगवाया गया जो थोड़ा टिंटेड था। 40 दिन की खोज के बाद नया चश्मा फाइनल किया गया था।

चर्चित गिरफ्तारी

30 जून 2001 की रात पौने दो बजे पुलिस ने करुणानिधि को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया था। चेन्नई में फ्लाईओवर्स के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार के मामले में यह गिरफ्तारी हुई थी। करुणानिधि विरोध करते रहे, लेकिन पुलिस उन्हें सख्ती से उठाकर ले गई। उस वक्त तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता थीं। करुणानिधि का आरोप था कि पुलिस ताला तोड़कर उनके घर में घुसी और उन्हें घसीटते हुए ले गए।

राजनीति और विवाद

करुणानिधि ने रामसेतु परियोजना को लेकर कई विवादित बयान दिए। एक बार उन्होंने कहा था, कुछ लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले यहां एक व्यक्ति था, जिसका नाम राम था। उन्होंनेे बिना छुए राम सेतु का निर्माण किया था। कौन हैं यह राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंनेे स्नातक किया? इसका किसी के पास कोई प्रमाण है?

करुणानिधि ने अप्रैल 2009 में स्वीकार किया कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) प्रमुख प्रभाकरण उनका अच्छा दोस्त था। लिट्टे ने ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कराई थी। राजीव गांधी हत्याकांड की जांच करने वाले जैन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में प्रभाकरण और करुणानिधि के संबंधों के बारे में कहा था।

हिंदी के मुद्दे पर मोदी को दी थी नसीहत

करुणानिधि का हिंदी विरोध जगजाहिर था। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने कहा था, भाषा की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। हिंदी विरोधी आंदोलन इतिहास के पन्नों में दर्ज है। क्या हम नेहरू के उस आश्वासन को भूल सकते हैं कि जब तक गैर हिंदी भाषी लोग चाहेंगे, अंग्रेजी ही देश की आधिकारिक भाषा होगी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को गैरहिंदी भाषी लोगों पर हिंदी थोपने के बजाय देश के आर्थिक और सामाजिक विकास पर ध्यान देने की सलाह दी थी।

Updated : 8 Aug 2018 2:08 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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