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जब बाबा जयगुरुदेव से तनिक भी नहीं झुकीं इंदिरा गांधी

जब बाबा जयगुरुदेव से तनिक भी नहीं झुकीं इंदिरा गांधी
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बाबा जयगुरुदेव के आश्रम से वार्ता के बाद बाहर आतीं भू.पू. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी साथ में हैं आश्रम के सत्संगी व पत्रकार विजय कुमार गुप्ता। (फाइल फोटो)

मथुरा/विजय गुप्ता। अपने जीवन में इंदिरा जी को निकट से देखने व मिलने के मुझे अनेक अवसर प्राप्त हुए किंतु कुछ ऐसे दिलचस्प अवसर रहे जिनका स्मरण करते ही मन खुशी से झूम उठता है। इंदिरा जी की दबंगियत मैंने उस समय प्रत्यक्ष रूप से महसूस की जब वे बाबा जयगुरुदेव आश्रम में आई थीं। सन् 1977 में चुनावों में बुरी तरह पराजय होने के बाद अगले चुनावों से कुछ समय पूर्व देश के अनेक दिग्गज नेता बाबा जयगुरुदेव से आशीर्वाद लेने हेतु उनके शरणागत हुए और उनमें इंदिरा जी भी थीं।

केवल अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी को छोड़ सभी नेता सर झुका कर बाबा की खरी खोटी सुनते और हां में हां मिलाते थे। इंदिरा जी जब बाबा के आश्रम में आईं तो बाबा जयगुरुदेव का विशेष कृपा पात्र होने के कारण मुझे अंदर जाने का मौका मिल गया। हालांकि इंदिरा जी के साथ आये नारायण दत्त तिवारी जैसे दिग्गज नेताओं तक को इंदिरा जी के साथ प्रवेश नहीं दिया। सिर्फ इंदिरा गांधी को ही बाबा की कुटिया तक ले जाया गया।

इस दौरान कुछ ही मिनट बाबा और इंदिरा जी के मध्य वार्ता हुई। झौंपड़ी में इंदिरा जी, बाबा जयगुरुदेव तथा उस समय उनके मुंह लगे शिष्य गोरखपुर के बालमुकुंद तिवारी ही मौजूद थे। मैं फूंस की कुटिया के बराबर बनी दूसरी फूंस की कुटिया में चुपचाप बैठकर सारी वार्ता सुनता रहा। उस समय मैं अमर उजाला के लिये भी रिपोर्टिंग करता था।

जैसे ही औपचारिक कुशलक्षेम के पश्चात् वार्ता शुरु हुई तो बाबा एकदम तैश में आये और बोले कि तुमने मुझे इमरजैंसी के दौरान जेल में क्यों डलवा दिया? तथा और भी खरी खोटी सुनाने लगे। इस पर तुरंत इंदिरा जी तमक कर बोलीं कि मुझे कुछ नहीं पता। पूरे देश की हर छोटी-मोटी बात का पता थोड़े ही रहता था मुझे। जैसे ही बाबा और उनके मुंह लगे शिष्य बालमुकुंद तिवारी इंदिरा जी पर हावी होने की कोशिश करते वैसे ही इंदिरा गांधी उनको उसी अंदाज में मुंह तोड़ जबाव देती।

कुछ ही मिनट बाद इंदिरा गांधी तमतमा कर उठीं और बोलीं कि मुझे जल्दी जाना है। अब मैं चलती हूँ और उठ खड़ी हुई। बाबा और बालमुकुंद तिवारी ने उन्हें गैंदे के फूलों की माला भी देनीं चाही, वो भी उन्होंने यह कह कर नहीं ली कि मुझे गैंदे के फूलों से एलर्जी है और दबंगियत के साथ कुटिया से बाहर निकल गयी।

Updated : 20 Nov 2018 5:40 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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