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क्या मप्र की राजनीति में फिर दोहरायेगा 1967 का घटनाक्रम ?

मप्र सरकार में मंत्री इमरती देवी की प्रतिक्रिया और कांग्रेस नेता बाल खांडे की पोस्ट से शुरू हुई चर्चा....

क्या मप्र की राजनीति में फिर दोहरायेगा 1967 का घटनाक्रम ?
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ग्वालियर। प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में चल रहे राजनैतिक घमासान और बयानो के बीच ग्वालियर के एक कांग्रेस नेता बाल खांडे ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट द्वारा प्रदेश की राजनीति में 1967 और 1993 को दोहराने की आशंका जताई है।

बाल खांडे ने सोमवार को अपने फेसबुक एकाउंट पर एक पोस्ट डाली जिसमें लिखा है की "मध्यप्रदेश में सीएम ने ग्वालियर में सिंधिया पर जिस प्रकार तंज कसा है, मुझे इतिहास दोहराता दिखाई दे रहा है 1967 और 1993 ?" खांडे की यह पोस्ट ऐसे समय में आई है जब प्रदेश में सीएम कमलनाथ और कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तकरार की स्थिति उभर कर सामने आ रहीं है। उनकी इस पोस्ट ने भविष्य में प्रदेश की राजनीति में किसी बड़े घटनाक्रम के घटित होने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। राजनैतिक विद्वान द्वारा भी अलग-अलग मायने निकाले जा रहे है।


आखिर वो 1967 की कौनसी घटना है जो वर्तमान परिस्थिति में दोहराने की बात कही जा रही है -

प्रदेश की राजनीती में शुरू से ही ग्वालियर महल की अहम भूमिका रही है, चाहे साल 1967, 1993 या 2018 हो। साल 1967 में प्रदेश की राजनीति में महत्व रखने वालीं श्रीमंत राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने राज्य में कांग्रेस के 15 फीसदी विधायकों एवं जनसंघ और अन्य दलों को साथ मिलाकर संयुक्त विधायक दल की सरकार बना दी थी। राजनितिक जानकारों के अनुसार उस समय भी प्रदेश का राजनैतिक माहौल वर्तमान माहौल की तरह ही था। उस समय प्रदेश में राजमाता और तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रहीं थी। जिसका परिणाम हुआ की राजमाता ने कांग्रेस का तख्ता पलट कर डीपी मिश्रा की सरकार गिरा दी और उन्ही की सरकार में मंत्री रहें गोविन्दनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया था।

उस समय पंचमढ़ी में कांग्रेस पार्टी का एक सम्मलेन आयोजित हुआ था। जिसमें तत्कालीन सीएम ने रजवाड़ो पर तल्ख़ टिप्पणी की थी। जिससे नाराज होकर राजमाता ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। साल 1967 में हुए चुनावों के बाद गोविन्द नारायण सिंह सहित कांग्रेस के 15 फीसदी विधायकों को अपने खेमे में लेकर जनसंघ के साथ संयुक्त विधायक दल (संविदा ) सरकार बना दी थी।

सीएम बनते-बनते रह गए थे माधवराव सिंधिया

साल 1993 में जब कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में आई तब कांग्रेस नेता स्व.माधव राव सिंधिया को सीएम बनाये जाने के कयास लगाए जा रहे थे। पार्टी के नेताओं ने उन्हें आश्वासन भी दिया था की आप तैयार रहियेगा कभी भी आपको सीएम बनाने के लिए बुलावा आ सकता है। लेकिन उस समय पूर्व सीएम अर्जुन सिंह ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया और माधवराव इंतजार करते रह गए थे। इसी तरह साल 2018 में 15 साल बाद कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई तो माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्यमंत्री बंनने के कयास लगाये जा रहे थे लेकिन कमलनाथ मुख्यमंत्री बना दिए गए।

लम्बे समय से पार्टी में उपेक्षित पर चल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के वचन पत्र में लिखे वादे पूरे नहीं होने पर सड़क पर उतरने वाले बयान के बाद से राजनीति गरमाई हुई है। सिंधिया के बयान के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तंज कसते हुए कहा था की "यदि सिंधिया को सड़क पर उतरना है, तो उतर जाये"। सिंधिया ने भी कमलनाथ की टिप्पणी के बाद पलटवार करते हुए रविवार को कहा की वह जनसेवक है और जनता के कार्यो को करने के लिए प्रतिबद्ध है, जरूरत पड़ने पर वह अवश्य ही सड़क पर उतरेंगे।

कमलनाथ सरकार में मंत्री इमरती देवी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करते हुए कहा था की यदि सिंधिया सड़क पर उतरेंगे तो उनका साथ देने के लिए पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर उनका साथ देने के लिए आएंगे।

प्रदेश कांग्रेस में चल रही इस गर्मागर्म राजनीती के बीच ग्वलियर के कांग्रेस नेता की पोस्ट और मंत्री इमरती देवी की प्रतिक्रिया के बाद भविष्य में बड़ी राजनितिक संभावनाओं की घटनाओं के घटित होने की चर्चाओं को बल दे दिया है। अब देखना यह है की प्रदेश की राजनीती किस और जाती है....

Updated : 17 Feb 2020 5:50 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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