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इंदिरा गाँधी : सुबह डांट खाई और शाम को स्नेह पाया

इंदिरा गाँधी : सुबह डांट खाई और शाम को स्नेह पाया
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दिल्ली में इंदिरा कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान मंच पर बैठीं इंदिरा गांधी साथ में हैं उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी, विजय कुमार गुप्ता व अन्य।

मथुरा/विजय गुप्ता। बात उस समय की है जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग कांग्रेस बना ली जिसका नाम कांग्रेस इंदिरा था। उस समय कांग्रेस इंदिरा व संगठन कांग्रेस के मध्य जबरदस्त संघर्ष चल रहा था। इंदिरा जी ने अपनी कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में बुलाया। उस दौरान मैं युवक कांग्रेस में था। एक साधारण कार्यकर्ता की हैसियत से मैं भी उस अधिवेशन में गया। उन दिनों मैं इंदिरा जी के जबरदस्त प्रशंसकों में था।

मुझे उनको निकट से देखने व सानिध्य पाने का बेहद चाव था। उनके साथ फोटो खिंचाने की ललक भी उस दौरान चरम पर थी। उस अधिवेशन के दौरान एक मौका ऐसा आया जब इंदिरा जी लान में खड़े होकर महाराष्ट्र के भू.पू. मुख्यमंत्री एआर अंतुले से कुछ बातचीत कर रहीं थी। तमाम नेता व कार्यकर्ता दूर से देख रहे थे। मैं साहस करके बिल्कुल एकदम निकट जाकर उनकी बातें सुनने लगा। इस पर इंदिरा जी ने मुझे इंगित करते हुए डांट भरे लहजे में कहा कि आप यहां क्या कर रहे हैं। निकट खड़े होकर उनकी बातें सुनना इंदिरा जी को बुरा लगा और मैं भी चुपचाप वहां से खिसक लिया।

मैंने हार नहीं मानी तथा शाम को होने वाले अधिवेशन के दूसरे चरण में फिर मैंने अपने प्रयास जारी रखे तथा मौका लगाकर मैं मंच पर इंदिरा जी के निकट जा बैठा। इंदिरा जी ने मुझे देखा अनदेखा कर दिया तथा कोई डांट फटकार भी नहीं लगाई। उनका यह व्यवहार मुझे ऐसा लगा जैसे सुबह की डांट के बाद अब स्नेह की वर्षा हो रही है।

इसी दौरान एक बात और हुई। इंदिरा जी का भाषण चल रहा था। भाषण के दौरान उन्होंने एक नेता जिनका नाम मुझे ध्यान नहीं का जिक्र किया। वे राष्ट्रीय नेता उस समय इंदिरा कांग्रेस में किसी बहुत बड़े पद पर थे। अधिवेशन से एक दिन पूर्व वे इंदिरा कांग्रेस को छोड़ कर संगठन कांग्रेस में शामिल हो गऐ। जैसे ही इंदिरा जी ने उनकी बेवफाई का जिक्र किया, मैं मंच पर खड़े होकर जोश के साथ चिल्लाया आस्तीन के सांप हैं ये, गद्दार हैं ये। पूरे अधिवेशन में सन्नाटा खिंच गया और क्षण भर को इंदिरा जी भी रूक गई भाषण देते देते।

इसी समय एक महिला नेत्री ने मुझे टोका कि अरे भई नौजवान तुम ये क्या कर रहे हो? तुरंत उस महिला नेत्री को दूसरी महिला नेत्री मोहसिना किदवई (पूर्व केंद्रीय मंत्री) ने टोका कि अरे भई इस नौजवान की भी तो भावनायें हैं। इसे भी अपनी भावना व्यक्त करने का अधिकार है।

जब हैलीकाॅप्टर रूकवा कर लिया आॅटोग्राफ


जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और मथुरा रिफाइनरी का शिलान्यास करने आईं। दिन था 2 अक्टूबर 1973 का। उन दिनों मैं किशोरावस्था में था तथा राष्ट्रीय नेताओं के हस्ताक्षर संग्रह करने का मुझे बेहद शौक था। इंदिरा जी के हस्ताक्षर पाने की ललक ऐसी थी कि तमाम देवी देवताओं से उनके हस्ताक्षर मिल जायें इसकी मन्नत कई दिन पहले से कर रहा था।

जैसे ही शिलान्यास वाला दिन आया, मैं बड़ी मुश्किल से इंदिरा जी तक पहुंचा। वे हैलीकाॅप्टर से उतर कर खुली जीप से शिलान्यास स्थल पर जाने को तैयार थीं। उस समय कालेज की अनेक लड़कियां जीप के इर्द गिर्द खड़ी होकर पहले से ही उनके हस्ताक्षर मांग रहीं थी किंतु इंदिरा जी ने किसी को भी हस्ताक्षर नहीं दिये लेकिन मैं अड़ गया कि मैं हस्ताक्षर लेकर ही जाऊँगा। इंदिरा जी हाथ बांधे जीप पर चुपचाप खड़ी हो गईं और आखिर तक हस्ताक्षर नहीं दिये।

जब इंदिरा जी की जीप आगे बढ़ गई तब किसी अधिकारी ने मेरे हाथ से मेरी आॅटोग्राफ बुक छीन कर मरोड़ कर गाड़ियों के काफिले के नीचे मिट्टी में फैंक दी, वह मेरी जिद से खिसिया गया था। जब पूरा काफिला निकल गया तब मैंने मिट्टी को उलट-पलट कर काफी कुरेदा-कुरेदी करके अपनी आॅटोग्राफ बुक को खोज लिया तथा अपने लक्ष्य हासिल करने की जुगत बिठाने में लग गया और येन केन किसी प्रकार इंदिरा जी तक पहुंचने के लिये छटपटाता रहा किंतु भारी सुरक्षा व्यवस्था और घेरा बंदी के कारण सफलता नहीं मिलती देख मैं मायूस होने लगा।

Updated : 20 Nov 2018 5:50 PM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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