भारी मतदान का मतलब कहीं ये तो नहीं कि तवे की रोटी कच्ची न रह जाए ?

भारी मतदान का मतलब कहीं ये तो नहीं कि तवे की रोटी कच्ची न रह जाए ?
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जब जब मतदान प्रतिशत बढ़ा भाजपा को फायदा हुआ

चुनाव डेस्क/ आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में 75 फीसदी मतदान हुआ है। यह पिछले 25 साल में अब तक का सबसे ज्यादा मत प्रतिशत है। इतने भारी मतदान से मध्यप्रदेश की राजनीति में एक संशय गहरा गया है। ज्यादा मतदान को किस तरीके से देखें? क्या ये कांग्रेस के सत्ता के वनवास के खात्मे का इशारा है या फिर शिवराज चौका मारने वाले है? कांग्रेस की तरफ से ये कहा जा रहा है कि तवे की रोटी पक चुकी है। 15 साल से शिवराज के शासन से जनता ऊब चुकी है और बदलाव चाहती है, लेकिन मध्यप्रदेश में 75 फीसदी मतदान का मतलब कहीं ये तो नहीं कि जनता चाहती है कि तवे की रोटी अच्छे से पक जाना चाहिए, कच्ची न रह जाए?

पिछले 15 साल में जैसे जैसे मतदान प्रतिशत बढ़ा है, उससे भाजपा की सीटों की सख्या ही बढ़ी है। 2003 में मत प्रतिशत बढ़ने का सीधा फायदा भाजपा को हुआ था। उस समय 67.25 प्रतिशत मतदान हुआ था और भाजपा को 173 जबकि कांग्रेस को 38 सीटों पर जीत मिली थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में भी मत प्रतिशत लगभग दो फीसदी बढ़ा, लेकिन फायदा भाजपा को ही रहा। 2008 में 69.28 फीसदी मतदान होने के बाद भाजपा के खाते में 143 और कांग्रेस के खाते में 71 सीटें आई थीं। 2013 में भी मत प्रतिशत लगभग दो फीसदी बढक़र 72.07 फीसदी तक पहुंचा। उस समय भी फायदा सत्ताधारी भाजपा को ही हुआ और भाजपा ने 165 जबकि कांग्रेस महज 58 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। अब एक बार फिर 2018 में 75 फीसदी मतदान हुआ है, जो पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा है। बावजूद इसके मध्यप्रदेश में भारी मतदान से कांग्रेस उत्साह में है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कह रहे हैं कि दो काम शांतिपूर्ण तरीके से निपट गए। एक तो चुनाव और दूसरा भाजपा। कमलनाथ के उत्साह के पीछे उनका राजनीतिक अनुभव है। ज्यादा मतदान को अक्सर सत्ता विरोधी लहर के रूप में देखा जाता है। कमलनाथ को इस भारी मतदान में वही सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही है, जो 2003 में हाईटाइड बनकर उठी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सत्ता के 10 साल से कुपित जनता ने 67.41 प्रतिशत मतदान किया था, जो 1998 के मुकाबले सात फीसदी ज्यादा था और भाजपा ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी। उसी इतिहास को याद करके कांग्रेस इस बार के भारी मतदान को भी शिवराज सरकार के 15 साल से जोड़ कर देख रही है, लेकिन शिवराज के 15 साल और दिग्विजय सिंह के 10 सालों की तुलना नहीं की जा सकती। आज अगर शिवराज सरकार के खिलाफ मंदसौर के किसानों के आंदोलन को किसानों में आक्रोश के रूप में देखा जा रहा है तो ये भी नहीं भूलना चाहिए कि दिग्विजय के शासन में बैतूल में किसानों पर गोलियां चली थीं। आज अगर शिवराज सरकार पर विकास और बेरोजगारी को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं तो ये भी याद किया जाए कि दिग्विजय के शासन के दौर में शहरों में बिजली गायब रहती थी तो सडक़ों की खस्ता हालत खेत-खलिहानों की याद दिलाती थी। दिग्विजय सिंह सरकार के समय मध्यप्रदेश सरकार पर खजाना खाली करने तक का आरोप लगा था। कम से कम 15 साल बाद मध्यप्रदेश के ऐसे हाल नहीं हैं। दिग्विजय सिंह और शिवराज सिंह के दौर में प्रचार और शासन में बहुत फर्क है। दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा की फायरब्रांड नेता उमा भारती ने मोर्चा खोला था। उमा भारती को केन्द्र से अटल-आडवाणी जैसे कद्दावर नेताओं से प्रचार का आशीर्वाद प्राप्त था। दिग्विजय सिंह के प्रति जनता की खुली नाराजगी ने लोगों को घरों से बाहर निकल कर मतदान के लिए मजबूर किया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के प्रति न तो ऐसी कोई नाराजगी दिखी और न ही कांग्रेस के पास उमा भारती जैसा फायर ब्रांड कोई नेता था, जो लगातार मोर्चे पर डटा रहता।

क्या ध्रुवीकरण ने बदला खेल?

क्या भारी मतदान में धु्रवीकरण का अक्स दिखाई दे रहा है? क्या ये कांग्रेस नेता कमलनाथ के वायरल वीडियो का साइड-इफैक्ट है? दरअसल कमलनाथ का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वो राज्य के 90 फीसदी मुस्लिमों के वोटों की जरूरत पर बात करते दिखाई दे रहे हैं। बाद में भाजपा ने भी लोगों से 90 फीसदी मतदान करने की अपील कर कमलनाथ को जवाब देने की कोशिश की। क्या कमलनाथ के वायरल वीडियो ने कांग्रेस के मुस्लिम परस्त चेहरे को राहुल गांधी की मंदिर-परिक्रमा के बावजूद उजागर करने का काम किया, जिसके चलते मतदान केन्द्रों पर हिन्दू जाग उठा? क्या भाजपा के फायर ब्रांड नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राम के नाम पर अपील ने हिन्दुत्व मन को घर से बाहर निकल कर मतदान करने पर मजबूर किया? बहरहाल 11 दिसम्बर को ही म.प्र. की राजनीतिक सूरत साफ होगी और तब ये भी साफ होगा कि सरकार बनाने के सर्वे कहां तक नतीजों के करीब पहुंचते हैं। 75 प्रतिशत मतदान के बावजूद मामला 50-50 का है। कोई भी सौ प्रतिशत दावा करने की हालत में नहीं है। फिलहाल तवे पर चढ़ी रोटी को देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि वो जल रही है या फिर कच्ची

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