Home > एक्सक्लूसिव > 1908 से ही रखी जा रही थी हेडगेवार जी पर नजर

1908 से ही रखी जा रही थी हेडगेवार जी पर नजर

अगस्त 1908 से ही डॉ. हेडगेवार सरकारी गुप्तचरों के निशाने पर थे।

1908 से ही रखी जा रही थी हेडगेवार जी पर नजर
X

जब देश में ऐसा माहौल था तो उस समय डॉ. हेडगेवार या कर रहे थे? अगस्त 1908 से ही डॉ. हेडगेवार सरकारी गुप्तचरों के निशाने पर थे। संघ की स्थापना के बाद भी निगरानी यथावत रही। 1926 में नागपुर और वर्धा में संघ शाखा अच्छी तरह से आरंभ हो जाने के बाद मध्य प्रांत में क्रांतिकारी गतिविधियों में डॉ. हेडगेवार के साथियों ने उन पर कुछ साहित्य प्रकाशित करने की योजना बनाई।

उस योजना को दाात्रय देशमुख, अभाड़ और मोतीराम श्रावणे जैसे डॉ. हेडगेवार के सहयोगियों ने तैयार किया। वर्ष 1926-27 में उसे क्रियान्वित किया गया। क्रांतिकारी गतिविधियों में डॉ. हेडगेवार के सहयोगी रहे गंगाप्रसाद पांडे इसमें अग्रणी थे। 1927 में गंगाप्रसाद जी अस्वस्थ होने के कारण वर्धा में रहने लगे। स्वरक्षार्थ साथ में रखी जाने वाली उनकी पिस्टल उनके एक स्नेही के पास पहुंच गई। सन 1928 में हिंगणघाट (वर्धा) के स्टेशन पर सरकारी खजाना लूटने का प्रयास हुआ, जिसमें पिस्टल प्रयुक्त होने की खबर समाचार पत्रों में छपी। उस पिस्टल को पहचानकर गंगाप्रसाद जी ने उसे उस स्नेही से वापस ले लिया। पिस्टल को ढूंढते हुए कुछ लोग अपने तक पहुंचेंगे यह सोचकर डॉ. हेडगेवार उस घटना के तीसरे दिन वर्धा के अपने विश्वस्त हरि कृष्ण उपाख्य अप्पाजी जोशी (जो मध्य प्रांत कांग्रेस के कार्यवाह, अ.भा. कांग्रेस समिति के सदस्य था वर्धा के जिला संघचालक थे) के पास पहुंचे। दोनों रात में गंगाप्रसाद जी के घर गए। वहां बैठे गुप्तचर की डॉ. हेडगेवार ने पिटाई की और पिस्टल लेकर अंधेरे में फरार हो गए। इसके बाद डॉ. हेडगेवार तथा अप्पाजी के घर, जिस संघ शाखा में वे जाते थे उस पर व उनकी दूसरी गतिविधियों पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया। लोग उनके घर जाने से डरने लगे।

1930 की शुरुआत में डीएसपी ने अप्पाजी को मिलने के लिए बुलाया। मिलने पर डीएसपी ने कहा, 'कांग्रेस में होकर भी आपके लोग सत्याग्रह में सहभागी न होकर शाखा जाते हैं। युवा हैं, तेज हैं। डॉटरजी क्रांतिकारी नेता हैं। फिर भी (सत्याग्रह में) आप सहभागी नहीं होते। आखिर सरकार ऐसा यों न सोचे कि आपको अहिंसा स्वीकार नहीं है? हमारे पास जानकारी है कि आपके पास सभी चीजें हैं। 'इस पर अप्पाजी ने कहा, 'यदि यह सत्य है तो पहरा लगाकर या हमारे पास से सामान मिलेगा? ये या तमाशा लगा रखा है, इसे रोको।' इसके बाद डॉ. हेडगेवार और अप्पाजी पर से कड़ा पहरा हटा लिए गया। जंगल सत्याग्रह में विचार पूर्वक सहभागी होने के अपने निर्णय की सूचना अप्पाजी ने फरवरी 1930 में डॉ. हेडगेवार को पत्र लिख कर दी। इसके उार में डॉ. हेडगेवार ने कहा कि संघ का प्रशिक्षण वर्ग समाप्त होने के बाद इस बारे में सोचा जाएगा। वर्ग समाप्ति के बाद अप्पाजी ने पुन: पूछा। अप्पाजी के स्वास्थ्य का हवाला देते हुए डॉ. हेडगेवार ने तुरंत स्वीकृति नहीं दी। हालांकि अप्पाजी द्वारा पुन: पत्र लिखने पर डॉटरजी ने स्वीकृति दे दी। दोनों ने मिलकर सत्याग्रह हेतु जाने का विचार किया।

(संघ अभिलेखागार, हेडगेवार प्रलेख, Nana Palkar Hedgewar notes - 5 5 _84-91). (क्रमश:) (मूल मराठी से अजय भालेराव द्वारा अनुदित)


Updated : 9 Aug 2022 9:23 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top