Home > एक्सक्लूसिव > नवरात्रि का तृतीय दिवस : मर्यादा का दूसरा नाम है कौशल्या

नवरात्रि का तृतीय दिवस : मर्यादा का दूसरा नाम है कौशल्या

महिमा तारे

नवरात्रि का तृतीय दिवस : मर्यादा का दूसरा नाम है कौशल्या
X

जैसा कि आप जानते हैं कि नवरात्रि के पावन पर्व पर हम रामायण की नौ महिला पात्रों पर सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका आज तीसरा दिवस है। आज हम माता कौशल्या की महानता के बारे में आलेख प्रकाशित कर रहे हैं।

कौशल्या राजा दशरथ की तीन प्रमुख रानियों में सबसे ज्येष्ठ थी। जिनका परिचय देवताओं ने 'ह्रींÓ कहकर कराया है। 'ह्रींÓ का अर्थ है मर्यादा। कौशल्या जी कौशल प्रदेश (वर्तमान में छत्तीसगढ़) की राजकुमारी थी।

हम सब जानते हैं कि चक्रवर्ती सम्राट दशरथ को लंबे वैवाहिक जीवन के बाद भी संतान न होने पर उन्होंने पुत्र कामेष्ठी यज्ञ कराया था। यज्ञ से प्रसन्न होकर देवताओं ने खीर के रूप में प्रसाद दिया। जिसका आधा भाग राजा दशरथ ने कौशल्या को दिया। खीर के इस आधे भाग से कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया। मर्यादा ही मर्यादा पुरूषोतम को जन्म दे सकती है। श्रीराम जिसके गर्भ से उत्पन्न हों वो कोख कितनी विशिष्ट होगी और कौशल्या के आध्यात्मिक धरातल पर हम अंदाजा लगा सकते हैं। कौशल्या ने अपने धर्माचरण से अयोध्या को सम्पूर्णता दी है। मर्यादा की वह देवी हैं पर एक मां भी हैं। वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ द्वारा राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राजगद्दी देने के निर्णय को सुनकर वे विकल हो उठती हैं। वाल्मीकि जी ने पूरा का पूरा सर्ग (४७) को महारानी कौशल्या का विलाप नाम दिया है। राजा दशरथ ने धर्म के अधीन होकर यह सब किया है। वे अच्छी तरह जानती हैं, पर राम जैसे पुत्र से १४ वर्ष अलग रहने और राम कैसे वन में रहेंगे, यह सोच-सोच कर वे शोक मग्न हैं। राजा दशरथ भी शोक में डूबे हैं वे कौशल्या को हाथ जोड़कर कहते हैं कि तुम तो धर्म को जानने वाली हो। भले बुरे को जानने वाली हो, तुम्हारा इस तरह का शोक करना शोभा नहीं देता। ऐसे में उनका उत्तर बड़ा मार्मिक है वे कहती हैं- मैं स्त्री धर्म को जानती हूं। इस समय जो भी मैं कह रही हूं वह पुत्र शोक से पीडि़त होकर कह रही हूं। मैं जानती हूं शोक धर्म को नष्ट कर देता है, शोक के समान कोई शत्रु नहीं है। श्रीराम को गए अभी पांच रातें ही बीती हैं, पर ये पांच रातें मेरे लिए पांच वर्ष के समान हैं। कौशल्या का यह विलाप अनुचित भी नहीं है। राम धर्म के प्रतीक हैं और जब धर्म जीवन से दूर रहता हो तो विलाप सहज ही है।

यह सच है कि राम के वनवास जाने के निर्णय से वह व्यथित हुई हैं। पर, शीघ्र ही वह स्वयं को संभाल भी लेती हैं। दो ऐसे प्रसंग हैं, पहला वह अपने पति दशरथ का अपमान करती हैं, लेकिन परिस्थिति समझने के बाद वही दशरथ को धैर्य भी देती हैं। इतना ही नहीं राम के वन गमन के बाद 14 वर्षों तक वह कैकेयी को भी ढांढस देती हैं। ऐसा ही वह भरत से भी अपना आक्रोश प्रगट करती हैं, लेकिन भरत के निर्मल प्रेम को देख कर वह क्षमा भी मांगती है। जीवन में भावावेश में त्रुटि होना सहज है, पर भूल का पता लगने पर क्षमा मांगना विशेष है।

कौशल्या स्वयं मर्यादा की ही देवी थीं। वह धर्म की प्रतीक थीं। राजा दशरथ से धर्म, अध्यात्म आदि विषयों पर वह गहरी मंत्रणा भी करती थीं। यही नहीं राम के वन गमन के बाद एवं पति के निधन के बाद जब समूची अयोध्या अवसाद में थी। कौशल्या ने ही घर के एक बुजुर्ग के नाते न केवल कुटुम्ब को एकत्र रखा, अपितु भरत अयोध्या का संचालन ठीक से करें, इस हेतु आशीर्वाद भी दिया।

Updated : 1 Oct 2019 2:00 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh News

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top