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रामजन्म भूमि फिल्म पर फतवों का अलोकतांत्रिक सेंसर

रामजन्म भूमि फिल्म पर फतवों का अलोकतांत्रिक सेंसर
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मध्यप्रदेश में उलेमाओं की संस्था ऑल इंडिया उलमा बोर्ड ने मुसलमानों को रामजन्मभूमि फिल्म न देखने का फतवा जारी किया है। बोर्ड ने फतवे में फिल्म की मुस्लिम अभिनेत्री को इस्लाम में आस्था बहाल करने को भी कहा है। एक अनदेखी अनजानी फिल्म के खिलाफ इस फतवे ने एक नयी बहस को जन्म दिया है। रचनाधर्म और रचनाकर्म पर फतवों की इस निरंतर अवैधाानिक सेंसरशिप पर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं।

सवाल उठता है कि क्या भारत में सेंसर से पास किसी फिल्म को देखने या न देखने का फैसला मुल्ले मौलवी और उलेमा करेंगे। क्या देश में फिल्मों, सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों के सेंसरशिप की एक समानांतर व्यवस्था भी चल रही है। क्या ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने इस फिल्म को रिलीज से पहले देख लिया है और अगर इसमें कुछ आपत्तिजनक है तो उसके द्वारा फिल्म रिलीज पर कानूनी तरीके से आपत्ति क्यों नहीं की जाती।? क्यों फिल्म को मिलने वाले सेंसर सर्टिफिकेट को विधिक तरीके से रोका जाता।? आखिर फतवों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने का अधिकार इन स्वयंभू मजहबी अदालतों को किसने दिया।? आखिर यह देश संविधान और कानून से चल रहा है तो फिर ऐसे गैरकानूनी फतवों और उनको जारी करने वालों पर कार्रवाई अविलंब क्यों नहीं की जाती।

रामजन्मभूमि फिल्म में काम करने वाली अभिनेत्री स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र नागरिक है। उन्हें अपना रचनाकर्म दिखाकर किसी भी फिल्म में काम करने की पूरी स्वतंत्रता है। वो महिला अदाकारा किसी फिल्म में हिन्दू सीमा बने या मुस्लिम सलमा ये उनकी निजता और स्वतंत्रता है। वे मक्का मदीना फिल्म में काम करें, वेटिकन सिटी, या रामजन्मभूमि में ये उनकी रुचि का विषय है। एक फिल्मी कलाकार हर फिल्म में जो चाहे वो किरदार निभा सकता है। ये उसकी रोजी रोटी का मसला है। क्या कोई फतवे वाला किसी भूखे और बेरोजगार कलाकार का पेट भरने के लिए भी अपने अनुनायियों को फतवा जारी करता है, अगर नहीं तो फिर अपनी रोटी खुद कमाने वाले कलाकारों के कामकाज में ऐसा हिटलरी खलल क्यों?

भारत में धार्मिक विषयों पर क्या पहली बार फिल्म बनी है? क्या उन सबको इन फतवे वाले स्वयंभू अदालत वालों ने रोका था। क्या आमिर खान ने प्रमुखत: हिन्दू के साथ ही मुस्लिम और ईसाई धर्म पर गहरे कटाक्ष करते हुए फिल्म नहीं बनाई थी। क्या हिन्दुओं के आराध्य भोलेनाथ को पीके में असहाय और लाचार बताकर दौड़ाया नहीं गया था। क्या आमिर खान मस्जिद में शराब की बोतल और चर्च में नारियल फोडऩे की जिद करते दृश्य नहीं करते दिखे थे। क्या मोहल्ला अस्सी फिल्म को लेकर इन फतवेदारों ने फतवे जारी किए थे जब शिव बने कलाकार को अशोभनीय संवाद करते दिखाया गया था। क्या धार्मिक फतवे केवल किसी धर्म विशेष और उसकी मान्यताओं पर किसी भी प्रकार के लोकतांत्रिक विचार को रोकने के लिए हैं। क्या भारतीय संविधान ने ऐसा विशेषाधिकार सिर्फ चुनिंदा रचनाकर्मियों को दे रखा है। क्या धार्मिक मुद्दों पर फिल्मों से कटाक्ष करने का पट्टा और ठेका केवल आमिर खान और उनके अंधमित्र जोड़ीदार राजकुमार हीरानी का है और नवफिल्मकार सैयद वसीम रिजवी की जगह सिर्फ ब्रांडेड आमिर खान ही महाभारत से लेकर रामजन्मभूमि जैसे विषयों पर फिल्म बनाने का हक रखते हंै।

क्या एक धर्म पर किसी भी तरह से संबंधित रचनाकर्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बाहर है और बाकी पर रचनाधर्म और प्रयोगधर्मियों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मैदान अटा पड़ा है। ये बड़ा मुद्दा है इस पर ईमानदारी से बहस होना चाहिए जिससे सार्थक निष्कर्ष निकल सकें।

नि:संदेह संवेदनशील फिल्में समाज में रिलीज होंगी या नहीं होगी या किस काटछांट या संशोधन से रिलीज होंगी ये तय करना सेंसर बोर्ड का काम है। जो लोकतांत्रिक भारत में इस काम के लिए गठित किया गया निष्पक्ष सरकारी निकाय है।

कथित तौर से 29 अप्रैल को रिलीज होने जा रही रामजन्मभूमि फिल्म पर किसी उलेमा, मौलवी और मुल्ले को प्रतिबंध लगाने का कोई अधिकार नहीं है। फिल्म का प्रदर्शन उचित या अनुचित संविधान द्वारा तय निकाय करें यही सबसे बेहतर है। पद्मावत फिल्म को लेकर अगर करणी सेना ने राजस्थान में स्वयं की सेंसरशिप लगाने की कोशिश की थी तो ये गैरकानूनी तरीके थे जो देश ने कतई स्वीकार नहीं किए। सुप्रीम कोर्ट को बधाई दी जानी चाहिए कि उसके द्वारा फिल्म पर आपत्तियों के लिए दोटूक कानूनी प्रक्रिया अपनाने का कड़ा संदेश दिया गया जिसके बाद देश में पद्मावत रिलीज हुई और स्वतंत्रता के साथ लाखों लोगों ने देखी भी।

रामजन्मभूमि फिल्म को लेकर भी यही समान नीति की अपेक्षा फिल्म से जुड़े कलाकार और उसको देखने की इच्छा रखने वाले करते हैं। जिसे आपत्ति हो वो कानून का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र है। सेंसर में शिकायत के लिए आजाद है मगर आजाद भारत में वो हिटलरी आदेशों और फतवों के लिए कतई आजादी की अपेक्षा नहीं करें।

-विवेक पाठक

Updated : 23 March 2019 7:39 PM GMT
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Naveen Savita

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