चंबल की उजली तस्वीर दिखाती है लघु फिल्म पनिहाई
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भूमि पेंडारकर, सुशांत जोशी, मनोज वाजपेयी की सोनचिडिय़ा की डकैतों पर फिल्मायी फिल्म को चंबल की पनिहाई जवाब देगी। सोनचिरैया में जहां वीर प्रसूता चंबल अंचल के पुराने डकैतों पर मसाला सिनेमा देखने को मिलेगा वहीं लघु फिल्म पनिहाई बदलते चंबल की तस्वीर पेश करेगी। चंबल में पनिहाई फिल्म के जरिए वीर प्रसूता चंबल क्षेत्र में आ रहे सामाजिक बदलाव, बुराइयों के प्रति जनआंदोलन एवं संत हरगिरी महाराज के समाज को दिशा देने वाले संकल्पों का फिल्मांकन किया गया है।
पनिहाई असल में चंबल की स्याह छवि को बार-बार महिमा मंडित करने का सकारात्मक विरोध है। बेशक पनिहाई तीन घंटे की मुंबई मसाला फिल्म नहीं है न ही उसका बॉलीवुड की नामदार फिल्मों की तरह करोड़ों का बजट है। फिल्म में करोड़ों में साइन होने वाले मुंबइया स्टार भी नहीं हैं मगर ये फिल्म वास्तव में चंबल की स्टार कहलाने का पूरा हक रखती है।
सिनेमा की ताकत क्या होती है और कैसे सिनेमा के दृश्य लोगों के मानस को किसी भी संदर्भ में अच्छा या बुरा बना सकते हैं। डाकुओं और बागियों का दौर चंबल ने देखा है तो बीहड़ में सालों तक मप्र से लेकर पड़ोसी राजस्थान और यूपी की पुलिस ने सर्चिंग की है। मल्लाह युवती फूलन का दस्यु सुंदरी फूलन देवी बनने का दर्दनाक मंजर भी चंबलवासियों के जेहन में है मगर सिर्फ ये काले अध्याय ही चंबल के खाते में नहीं हैं। डकैतों के आत्मसमर्पण के आशावादी दिन भी ख्यात कलमकार प्रभाश जोशी ने शब्दों से देश दुनिया तक पहुंचाए थे। डकैत समस्या के खिलाफ यहां गांधीवादी प्रयास भी सफल हुए हैं। अब तो चंबल में बीहड़ के वे बुरे दिन खत्म हुए सालों हो गए हैं। अब ये क्षेत्र विकास की रफ्तार पर गतिमान हैं और अब सामाजिक बुराइयों के खिलाफ कदमताल कर रहा है। चंबल क्षेत्र में साधु-संतों की महान परंपरा है। करह वाले बाबा से लेकर आज के संत हरगिरी महाराज वीर प्रसूता चंबल क्षेत्र को उन्नति की नई दिशा दिखा रहे हैं। शॉर्ट फिल्म पनिहाई चंबल के इसी उजले पक्ष को कैमरे की नजर से लाखों लोगों के सामने लाने का जरिया बन रही है। पनिहाई फिल्म के जरिए चंबल की उजली तस्वीर को साकार करने का काम मुरैना के विजय मनोहर तिवारी ने किया है। वे आधे घंटे की इस फिल्म के निर्देशक हैं। फिल्म की खासियत है कि इसमें अधिकांश कलाकार मुरैना और भिण्ड के स्थानीय हैं जो इस फिल्म और उसके प्रति जज्बाती तौर से जुड़े हुए हैं। फिल्म पनिहाई में उस बदलते चंबल को फिल्माया गया है जो मृत्युभोज जैसी पुरातन प्रथा को तेजी से पीछे छोड़ रहा है। विजय तिवारी की यह फिल्म संत हरगिरी महाराज के नेतृत्व में शुरु हुए सामाजिक परिवर्तन के महाआंदोलन को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करती है। कैसे वीर प्रसूता भूमि चंबल के निवासी एक संत के आहवान पर दहेज जैसी गहराई से जमी बुराई के खिलाफ एकजुट होने लगते हैं और धीरे-धीरे कुछ लोगों का दहेज के खिलाफ संकल्प एक घर से दूसरे घर होते हुए एक महाअभियान बनने की ओर बढ़ता है। फिल्म का नाम पनिहाई है सो बिना पनिहाई पर बात हुए फिल्म कैसे बनती। जीहां पनिहाई चंबल क्षेत्र में वो बुराई थी जहां किसी के पालतू पशु आदि बलपूर्वक इसलिए दबंग पकड़ लेते थे कि उसके बदले कुछ पैसा आदि वसूला जाए। गलत ढंग से वसूला गया ये पैसा ही पनिहाई है। ये पनिहाई नाम की बुराई सभ्य समाज में निरंतर निंदा के बाद एक संत हर गिरि महाराज के आह्वान पर धार्मिक कार्य के रुप में जड़ से खत्म हो रही है। अपनी धुन के पक्के संत हरगिरी महाराज समाज को सुधारने का रामकाज अनवरत रुप से कर रहे हैं। वे आज चंबल के संकल्प की आवाज हैं और सबसे खुशी की बात है कि अच्छाई के लिए हजारों हाथ उनके साथ उठ रहे हैं। मृत्युभोज हो या दहेज प्रथा हर सामाजिक बुराई के प्रति उन्होंने पूरे चंबल क्षेत्र नहीं नहीं ग्वालियर और मप्र के विभिन्न इलाकों में नई ऊर्जा भरी है। संत हरगिरी महाराज के आह्वान पर गुर्जर समाज के सैकड़ों लोग शराब के धंधे से तौबा कर चुके हैं तो पूरे अंचल में हजारों लोगों ने शराब को जीवन भर के लिए खराब मान लिया है। पनिहाई फिल्म में चंबल अंचल से शुरु हुआ ये शराबबंदी आंदोलन भी पर्दे पर गूंजता नजर आता है। आधे घंटे की पनिहाई फिल्म चंबल अंचल की उजली तस्वीर मुरैना और भिण्ड की स्थानीय भाषा में करती नजर आती है। ये फिल्म करोड़ों में बनने वाली मसाला फिल्म की तरह चमक-दमक भरी भले न हो मगर इसमें चंबल की अच्छाई और संकल्प जरुर चमकता हुआ नजर आता है। पनिहाई वीर प्रसूता चंबल से चंबल की ब्रांडिंग की ईमानदार शुरुआत है। बड़ी मंजिलों तक पहुंचने वाले बड़े होते होंगे मगर उनसे बड़ी शख्सियत बड़ी शुरुआत करने वाले होते हैं। संत हरगिरी महाराज का सामाजिक जागरण आंदोलन चंबल अंचल से प्रेरक शुरुआत है और इस शुरुआत को सिने मंच पर उतारने वाली पनिहाई फिल्म भी एक शानदार प्रयास है।
-विवेक पाठक
Naveen Savita
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