नैक के मूल्यांकन के मानक बदले जा रहे हैं : प्रो पटवर्धन

नईदिल्ली/वेबडेस्क। उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए ग्रेडिंग प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण निकाय "राष्ट्रीय प्रत्यायन एवं मूल्यांकन परिषद"नैक की भूमिका नई शिक्षा नीति के लिए समग्र रूप में सहायक बनने की होगी। इसके लिए दीर्धकालिक रणनीति बनाकर काम किया जा रहा है। नैक के अध्यक्ष प्रो भूषण पटवर्धन देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता को लेकर बेहद गंभीर है।उन्होंने नई शिक्षा नीति के साथ नैक को भारत की ज्ञान परम्परा और सामयिक आवश्यकताओं के साथ संयुक्त करने की बात भी कही हैं।इंदौर में विधा भारती द्वारा आयोजित समागम में हिस्सा लेने आये प्रो पतवर्धन ने विशेष बातचीत में कहा कि
मूल रूप से नैक का गठन उच्च शिक्षण संस्थानों को कार्यविधि एवं गुणवत्ता को समुन्नत करना है और इसके लिए हम कुछ बुनियादी बदलाबों पर काम कर रहे हैं।नैक की कार्यविधि को पहले की तुलना में काफी सरलीकृत किया गया है और अब सभी उच्च शिक्षण संस्थान इसे अपना रहे हैं।हमने मूल्यांकन एवं प्रत्यायन के सभी मानकों को सार्वजनिक कर दिया है इससे पहले यह पैरामीटर गोपनीय रखे जाते थे।अब यह पब्लिक डोमिन सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध हैं।प्रो पटवर्धन के अनुसार नैक से अनिवार्य अधिमान्यता को नई शिक्षा नीति में काफी कुछ कवर किया जा रहा है क्योंकि अब यह नियम बनाया जा रहा है कि जो भी संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में रहेंगे उन्हें प्रत्यायन एवं मूल्यांकन की प्रक्रिया तो अपनानी ही पड़ेगी।उन्होंने स्वीकार किया कि
इस मूल्यांकन को लेकर एक भय का माहौल संस्थानों में रहता है कि उन्हें कौन सा ग्रेड मिलेगा?उसके नफे नुकसान पर चर्चा होती हैं।श्री पटवर्धन के अनुसार अब एक ऐसे फार्मूले पर काम किया जा रहा है जो विश्विद्यालय या संस्थानों के अंदर संकाय वार ग्रेडिंग को सुनिश्चित करेगा।फिलहाल किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज को अ प्लस प्लस ग्रेड मिलती है तो इसका आशय यह नही है कि उस संस्थान के सभी विभाग इसी ग्रेड के है।नई नीति में हम विभाग बार ग्रेडिंग का नवाचार भी ला रहे है।यह स्वेच्छिक होगा।इससे छात्रों के पास बेहतर संकाय चुनने के अधिक अवसर होंगे।
प्रो पटवर्धन ने बताया कि कुछ समय पूर्व आरम्भ किया गया प्रोविजनल एक्रीडेशन का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है,क्योंकि हम मानते है कि यह प्रोविजनल या अस्थाई नही हो सकता है।मुल्यांकन और प्रत्यायन एक अनिवार्यता है जो सीधे संस्थान की गुणवत्ता से जुड़ा है।प्रो पटवर्धन के अनुसार मौजूदा इनपुट बेस्ड(संसाधन मूलक) मूल्याकंन को हम बदलने की शुरुआत कर रहे हैं अभी व्यवस्था यह है कि संस्थानों के पास जमीन,भवन,शिक्षक औऱ अन्य सुविधाएं कितनी है, इसे देखकर हम उस संस्थान की ग्रेडिंग करते है लेकिन यह तरीके संस्थान के समग्र मूल्यांकन को सुनिश्चित नही करता है ।एक संस्थान सामाजिक रूप से क्या योगदान दे रहा है इसका मूल्याकंन तो उसके छात्रों की सक्षमता और कौशल से ही पता चल सकता है ।इसलिए नैक अब एक नया एसेसमेंट मेकेनिज्म बनाने जा रहा है।इसके तहत छात्रों को केंद्रित कर प्रक्रिया अपनाई जाएगी।प्रो पटवर्धन के मुताबिक इस नई मूल्यांकन प्रविधि को "टेक्नोलॉजी एनेबल्ड फॉर्मेटिव अससेमेंट" नाम से जाना जाएगा।
भारतीय ज्ञान परम्परा महज एक विषय नही -
प्रो पतबर्धन के अनुसार भारतीय ज्ञान परम्परा को एक विषय के रूप में सीमित करना ठीक नही है बल्कि हमारे सभी विषयों पर इसकी आधारभूत छाप सुनिश्चित होना चाहिए।भारत में स्वाधीनता के बाद पहली बार भारतीय ज्ञान परंपरा औऱ देशज ज्ञान को शिक्षण व्यवस्था में प्रतिष्ठित किया जा रहा है।हमारी कालजयी 14 विधा और 64 कलाओं का समावेश नई शिक्षा नीति में किया गया है इससे पूर्व इन्हें हिकारत के भाव से ही देखा गया है।बहुविषयक नवाचार के साथ भारतीय ज्ञान परंपरा को संयुक्त किये जाने को लेकर प्रो पटवर्धन ने कहा कि इस बात में आखिरी क्या आपत्ति है कि किसी भारतीय छात्र को अपने विषय में निष्णात होने के साथ भारतीय ज्ञान परम्परा का समानंतर भान न हो।हमारी शिक्षण व्यवस्था में भारतीयता का गौरव भाव हमेशा कमतर बनाकर रखा गया।नई शिक्षा नीति में अब यह भेदभाव समाप्त हो रहा है।
फ्रायड नही पतंजलि के बिना मनोविज्ञान अधूरा -
प्रो पटवर्धन ने कहा कि हम मनोविज्ञान पढ़ते है लेकिन केवल फ्रायड तक सीमित होकर लेकिन सच्चाई यह है कि पतंजलि के बिना भारतीय छात्र कैसे मनोविज्ञान पढ़ सकते है?कौटिल्य के बगैर राजनीति विज्ञान और पाणिनि को भुलाकर भाषा विज्ञान संभव नही है।नई शिक्षा नीति के वैशिष्ट्य की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि देशज ज्ञान के माध्यम से हम भारत को वैश्विक रूप से उसके मूल के साथ स्थापित करना चाहते हैं।भारतीय विश्वविद्यालयों का करिकुलम तब तक पूरा नही माना जायेगा जब तक कि हर संकाय का छात्र भारतीय ज्ञान परंपरा से दीक्षित न हो।
आधुनिक विज्ञान आज भी भारतीय ज्ञान से अनभिज्ञ -
उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में बहुत सी बातें ऐसी है जो।आज भी आधुनिक विज्ञान को नही पता है इसलिए हमें नई शिक्षा नीति पर काम करते हुए शोध के पष्चिमी आइडियाज पर काम करने के स्थान पर हमारी ज्ञान परम्परा की छोड़ दी गईं उपकल्पनाओं पर काम होना चाहिये।प्रो पटवर्धन के अनुसार संस्कृत केवल भाषा नही बल्कि ज्ञान का स्रोत है।हाल ही में आयुर्वेदिक अवधारणाओं को हमने नए तरीके से समझने के लिए शोध की दिशा को बदलकर भारतीय बनाने पर काम किया है।आयुर्वेद में वात,पित्त कफ का जेनेटिक आधार संभव है इसे लेकर शोध हेतु विशेषज्ञ संस्थाओं का एक नेटवर्क बनाकर संस्कृत के स्रोतों पर शोध किया गया।नतीजतन आज एक अलग शाखा
"आयुजीनोमिक्स " उभर कर सामने आई है जो यह प्रमाणित करती है कि वात,पित्त कफ का जेनेटिक्स सिग्नेचर अलग होता है।यही कारण है कि एक आयुर्वेदिक डॉक्टर एक ही बीमारी के लिए लोगों को अलग अलग दवा देता है।प्रो पटवर्धन के अनुसार ऐसे हजार क्षेत्र है जो भारतीय ज्ञान परंपरा में मौजूद है और इन पर वैज्ञानिक दृष्टि से शोध कार्य हो तो हम भी रिसर्च के क्षेत्र में लीडर बन सकते हैं।
