सरकारी अस्पतालों की लैबों की हालत खस्ता, निजी लैब वसूल रहे दोगुना दाम

सरकारी अस्पतालों की लैबों की हालत खस्ता, निजी लैब वसूल रहे दोगुना दाम
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राजधानी के सरकारी अस्पतालों की लैब सेवाएं इन दिनों बदहाली के दौर से गुजर रही हैं। मशीनों की खराबी, तकनीकी स्टाफ की कमी और मेंटेनेंस के अभाव के कारण जरूरी जांचें समय पर नहीं हो पा रही हैं। स्थिति यह है कि अंबेडकर अस्पताल में कुल उपलब्ध जांच का सिर्फ 35 प्रतिशत कार्य ही संभव हो पा रहा है, जबकि शेष जांच मशीनों की खराबी और अव्यवस्था के कारण लंबित पड़ी रहती हैं।

रिपोर्ट समय पर न मिलने से मरीजों का इलाज भी बीच में अटक जाता है। मरीजों के परिजनों को मजबूरी में निजी लैब का सहारा लेना पड़ रहा है, जिससे उन्हें सामान्य से दोगुना शुल्क देना पड़ रहा है।

सरकारी जांच व्यवस्था चरमराई, निजी लैब की चांदी

सरकारी लैबों की कमजोर स्थिति का सीधा लाभ शहर में संचालित 300 से अधिक निजी लैब उठा रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में ब्लड टेस्ट, एक्स-रे, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसी जांच मुफ्त या कम लागत पर होती हैं, वहीं निजी केंद्रों में हजारों रुपए खर्च करना पड़ता है।

अस्पतालों में जांच मशीनें कई जगह खराब पड़ी हैं। नियमित मेंटेनेंस न होने से कई उपकरण बेकार पड़े हैं। रीजेंट्स की कमी भी जांच प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है। तकनीकी स्टाफ की कमी के कारण उपलब्ध मशीनों की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि रिपोर्ट समय पर न मिलने से इलाज प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे मरीजों की हालत गंभीर तक हो सकती है।

रिपोर्ट बनाने में देरी

जिले में बेहतर जांच सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापित हमर लैब भी अत्यधिक दबाव में काम कर रही है। पीएचसी से आने वाले अधिकांश सैम्पल इसी लैब में भेजे जा रहे हैं। जबकि दावा किया गया था कि पीएचसी स्तर पर 63 प्रकार की जांच उपलब्ध होंगी, वास्तविकता में केवल 21 जांच ही हो पा रही हैं।

पंडरी जिला अस्पताल स्थित हमर लैब में रोजाना 200-225 मरीज जांच कराने पहुंचते हैं, इसके अलावा 20-25 अतिरिक्त सैंपल पीएचसी से आते हैं। इतने बड़े दबाव के बावजूद लैब में मात्र आठ कर्मचारी पदस्थ हैं, जिसके कारण सैम्पलिंग, जांच प्रक्रिया और रिपोर्ट बनाने में भारी देरी हो रही है। लैब प्रबंधन ने बताया कि यहां 144 प्रकार की टेस्ट संभव हैं, लेकिन फिलहाल केवल 90-95 जांच ही संचालित की जा रही हैं।

अस्पताल में उपलब्ध मशीनों से नियमित जांच की जा रही है। कुछ उपकरण बदलने की आवश्यकता है। सीजीएमएससी को प्रस्ताव भेजा गया है और टेंडर भी जारी हो चुका है। उम्मीद है कि जल्द नई मशीनें उपलब्ध होंगी।

केस 1: रिपोर्ट में देरी, 800 की जगह 1500 रुपए

हाल ही में एक गंभीर एनीमिया से पीड़ित महिला मरीज की रक्त संबंधी जांच अंबेडकर अस्पताल में समय पर नहीं हो सकी। डॉक्टरों ने तुरंत रिपोर्ट की जरूरत बताई, लेकिन लैब स्टाफ ने मशीन खराब होने का हवाला देकर दो दिन का समय मांग लिया। मजबूरी में परिजन उसे पास की निजी लैब ले गए, जहां सामान्य 800 रुपए वाली जांच के लिए 1500 रुपए खर्च करने पड़े। रिपोर्ट देरी से मिलने पर इलाज की प्रक्रिया भी देर से शुरू हुई, जिससे मरीज की स्थिति और बिगड़ गई।

केस 2: पीएचसी से आने वाले सैंपल ने बढ़ाई परेशानी

कुछ दिनों पहले हमर लैब में बीमार बच्ची का सैंपल सुबह 10 बजे लिया गया, लेकिन स्टाफ के अनुसार, रिपोर्ट शाम तक भी तैयार नहीं हो सकी। कारण पीएचसी से आए अतिरिक्त सैंपल और मशीनों के धीमे चलने की समस्या। परिजन कई बार काउंटर का चक्कर लगाते रहे, पर तय समय पर रिपोर्ट नहीं मिली। डॉक्टर ने रिपोर्ट के आधार पर दवा बदलनी थी, पर देरी के कारण बच्ची को रातभर पुराने उपचार पर ही रखना पड़ा। अगले दिन रिपोर्ट मिलने के बाद ही उचित इलाज शुरू हो सका।

अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया

• शुभ्रा ठाकुर, पीआरओ, अंबेडकर अस्पताल: “लैब में विभिक्ष रोगों की जांच के लिए सैंपल आते हैं। हमारा प्रयास रहता है कि रिपोर्ट समय पर दी जाए। कुछ टेस्ट प्रभावित हैं, जिन्हें सुधारने की प्रक्रिया जारी है।”

• डॉ. मिथलेश चौधरी, सीएमएचओ, रायपुर: “उपलब्ध मशीनों से नियमित जांच की जा रही है। कुछ उपकरण बदलने की आवश्यकता है। सुधार के लिए प्रस्ताव और टेंडर प्रक्रिया जारी है।”

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