इस गांव में पादरी और पास्टर के लिए नो एंट्री: बस्तर में धर्मांतरण के खिलाफ लामबंद होने लगे आदिवासी

अर्जुन झा, जगदलपुर। बस्तर संभाग में धर्मांतरण गंभीर चिंता का विषय बन गया है। ज्यादातर आदिवासियों का धर्मांतरण कराया जा रहा है। चंगाई और प्रार्थना सभाओं की आड़ में धर्मांतरण का खेल चल रहा है। आलम यह है कि यहां मूल आदिवासियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है, उनकी पूजा पद्धति, आस्था स्थलों, धर्म परंपराओं और संस्कृति का हास होता जा रहा है। वहीं अपनी माटी और संस्कृति से जुड़े आदिवासियों ने अब धर्मांतरण के खिलाफ शंखनाद कर दिया है।
गांवों में बैठकें हो रही हैं। धर्मांतरण की गतिविधियों और संदिग्ध लोगों की आमदरफ्त पर नजर रखने के लिए निगरानी समितियां गठित की जा रही हैं। एक गांव में तो पादरी, पास्टर और मिशनरी से जुड़े लोगों के प्रवेश पर पाबंदी तक लगा दी गई है। इसके लिए बाकायदा गांव के बाहर मुख्य मार्ग पर बोर्ड भी लगाया गया है।
बस्तर संभाग में सात में से एक भी जिला ऐसा नहीं है, जो धर्मांतरण से अछूता हो। संभाग के सभी जिलों के गांव, कस्बों, शहरी क्षेत्रों में मिशनरी की गतिविधियां काफी बढ़ गईं हैं। बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों तक इनकी पैठ काफी बढ़ चुकी है।
चर्चों की संख्या में आश्चर्यजनक ढंग से वृद्धि हो गई है। बस्तर के आदिवासी तो जन्मजात भोलेभाले शांत और सरल स्वभाव के आ जाते हैं। वे जल्द ही हर किसी की बातों और प्रभाव में आ जाते हैं, चमत्कारों चमत्कृत विस्मित हो उठते हैं। उनके इसी भोलेपन का नाजायज फायदा धर्मांतरण कराने वाले लोग उठा रहे हैं।
नक्सलियों के गढ़ तक में भी ऐसी गतिविधियां बेखौफ चल रही हैं। ऐसे घटनाक्रमों को लेकर अपनी जमीन, संस्कृति, धर्म, आस्था और परंपराओं से जुड़े कट्टर आदिवासी चिंतित हैं। वे अपने समुदाय का अस्तित्व बचाने लामबंद हो रहे हैं। वे समुदाय के लोगों को समझा बुझा रहे हैं कि अपनी आस्था, संस्कृति और परंपराओं से मत डिगो, अपनी जड़ों से जुड़े रहो। ऎसी ही जमीनी पहल कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर ग्राम साल्हे से सामने आई है।
साल्हे में धर्मांतरण को लेकर आदिवासी समाज की सर्कल स्तरीय विशेष बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में साल्हे, ईरागांव, ठेकाढोड़ा सहित आसपास के ग्रामों के समाज प्रमुखों, जनप्रतिनिधियों एवं ग्रामीणों ने भाग लिया। बैठक में धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चर्चा की गई तथा समाज में इसकी रोकथाम को लेकर रणनीति बनाने पर जोर दिया गया।
कार्यक्रम में जिला पंचायत सदस्य देवेंद्र टेकाम, सर्व आदिवासी समाज के जिला उपाध्यक्ष ज्ञानसिंह गौर, जनपद सदस्य प्रमिला उसेंडी, साल्हे सरपंच संतोष पद्दा, ईरागांव सरपंच मनीता नेताम, नरेश कोमरा, पूर्व जनपद सदस्य जीवराखन सलाम, सर्कल अध्यक्ष रामकुमार कोला, सर्कल सचिव पुखराज आंचला, रतन मांडावी, विजय सोरी, हेमंत अमिला, कृष्णा कोसमा सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे। बैठक में सामाजिक एकता पर बल दिया गया। बैठक में एक स्वर में कहा गया कि क्षेत्र में बाहरी प्रभावों के चलते पारंपरिक संस्कृति और धर्म पर संकट उत्पन्न हो रहा है। समाज प्रमुखों ने लोगों से अपील की कि वे जागरूक रहें और अपनी पहचान व संस्कृति को बनाए रखने में सहयोग करें।
बैठक में यह प्रस्ताव भी रखा गया कि यदि किसी स्थान पर धर्मांतरण की गतिविधियां सामने आती हैं, तो उसकी सूचना तत्काल समाजिक संगठन एवं प्रशासन को दी जाए। साथ ही ग्राम स्तरीय निगरानी समितियां भी गठित की जाएं, जो ऎसी गतिविधियों पर नजर रखेंगी। यह बैठक सामाजिक समरसता बनाए रखने तथा आदिवासी समाज की एकजुटता को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखी जा रही है।
कुड़ाल गांव में नो एंट्री का बोर्ड
मिशनरी गतिविधियों को लेकर आदिवासियों और अन्य समुदायों के ग्रामीणों में आक्रोश चरम पर पहुंच गया है। इसका एक बड़ा उदाहरण कांकेर जिले से ही सामने आया है। कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखंड के ग्राम कुड़ाल में लगा एक बोर्ड सबका ध्यान खींच रहा है। इस बोर्ड पर शीर्षक लिखा है- ₹पास्टर और पादरी काप्रवेश सख्त मना है। " आगे लिखा है- 'ग्राम कुड़ाल, थाना भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र अंतर्गत आता है।
हमारे गांव में पेशा (पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 लागू है, जिसके अंतर्गत ग्रामसभा को अपनी परंपरा एवं रूढ़िवादी संस्कृति का संरक्षण करने का अधिकार है। अतः ग्रामसभा के प्रस्ताव के आधार पर हमारे गांव कुड़ाल में ईसाई धर्म के पास्टर, पादरी एवं बाहर गांव से आने वाले किसी भी धर्मांतरित व्यक्ति के प्रवेश एवं ईसाई धर्म की प्रार्थना प्रयोजन एवं धार्मिक आयोजन पर रोक लगाई जाती है।' कुल मिलाकर यह दृश्य बताता है कि आदिवासी समुदाय धर्मांतरण से किस कदर आहत है।
कहां हैं नन मामले में शोर मचाने वाले
एक दिन पहले ही दो ननों को ह्यूमन ट्रैफिकिंग और धर्मांतरण के आरोप में दुर्ग स्टेशन पर जीआरपी द्वारा हिरासत में लिए जाने को लेकर संसद में कांग्रेस और यूडीएफ ने जमकर हंगामा मचाया था। मीडिया में बयानबाजी कर भाजपा सरकारों पर हमला बोला गया। ये नन बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी युवतियों को कथित नर्सिंग ट्रेनिंग के लिए बाहर ले जा रही थीं। बजरंग दल की शिकायत पर जीआरपी ने यह कार्रवाई की है।
मामले की सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आएगी, मगर दो ननों के लिए आंसू बहाने वाले कांग्रेस और यूडीएफ के तथाकथित सेक्युलर नेताओं को बस्तर के लाखों आदिवासियों के आंसू क्यों नजर नहीं आते? वे धर्मांतरण और उन्हें आदिवासी समुदाय की घटती आबादी नजर क्यों नहीं आती?
इन दिनों जेल की हवा खा रहे बस्तर के एक आदिवासी नेता एवं कांग्रेस सरकार के पूर्व मंत्री ने तो ताल ठोंकते हुए दावा किया था- "बस्तर में एक भी धर्मांतरण नहीं हुआ है, कोई साबित कर दे तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।" तो क्या जमीन से जुड़े बस्तर के आदिवासी झूठ बोल रहे हैं?
