जिंदा रहना है भारत में तो मर्यादा बहुत जरूरी है: सुरेंद्र दुबे की इन कविताओं की विदेशों में भी गूंज

सुरेंद्र दुबे की इन कविताओं की विदेशों में भी गूंज
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Famous Poems of Padma Shri Dr. Surendra Dubey : रायपुर। ''जिंदा रहना है भारत में तो मर्यादा बहुत जरूरी है, पाँच अगस्त का सूरज राघव को लाने वाला है, राम भक्त जयघोष करो मंदिर बनने वाला है'' ये जोशीली और भक्तिमय पंक्तियाँ छत्तीसगढ़ के ‘ब्लैक डायमंड’ और पद्मश्री हास्य कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे की कलम से निकली हैं। इन पंक्तियों में भक्ति, उत्साह और मर्यादा का ऐसा संगम है कि सुनने वाला झूम उठता है।

छत्तीसगढ़ का ‘हास्य का हीरा’

डॉ. सुरेंद्र दुबे, जिन्हें प्यार से ‘ब्लैक डायमंड’ कहा जाता था, अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएँ आज भी दिलों में धड़कती हैं। चाहे कोरोना का खौफ हो या उनकी मृत्यु की झूठी अफवाह, इस हास्य-व्यंग्य के उस्ताद ने हर गंभीर बात को ठहाकों में बदल दिया। उनकी एक मशहूर पंक्ति, “टेंशन में मत रहना बाबू, टाइगर अभी जिंदा है!” आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ी है। छत्तीसगढ़ी बोली और हिंदी के मिश्रण से उन्होंने हास्य की ऐसी जादूगरी की, जो देश-विदेश में गूंजी।

गंजपारा में जन्में थे डॉ. सुरेंद्र दुबे

डॉ. सुरेंद्र दुबे का जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा शहर के गंजपारा में हुआ था। उन्होंने बेमेतरा में ही अपनी शिक्षा पूरी की और स्थानीय रामलीला मंच से कला के क्षेत्र में कदम रखा। पेशे से आयुर्वेदाचार्य होने के बावजूद उन्होंने हास्य और व्यंग्य कविता के माध्यम से अपनी पहचान बनाई। उनकी रचनाएं सामाजिक विसंगतियों पर हास्य के साथ गहरे संदेश देती थीं, जो उन्हें मंचों और टेलीविजन कार्यक्रमों में बेहद लोकप्रिय बनाती थीं।

अमेरिका, कनाडा, मॉरीशस में लहराया छत्तीसगढ़ी संस्कृति का परचम

उन्होंने मिथक मंथन, दो पांव का आदमी, और सवाल ही सवाल है सहित पांच पुस्तकें लिखीं। उनकी कविताओं पर तीन विश्वविद्यालयों में पीएचडी शोध हुए, जो उनकी साहित्यिक गहराई को दर्शाता है। डॉ. दुबे ने देश-विदेश में सैकड़ों कवि सम्मेलनों में हिस्सा लिया और अमेरिका, कनाडा, मॉरीशस जैसे देशों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति का परचम लहराया। उनकी ठेठ छत्तीसगढ़ी शैली और जीवंत प्रस्तुति ने लाखों लोगों का दिल जीता।

मंच, टीवी और छत्तीसगढ़ी गौरव

कवि सम्मेलनों से लेकर टीवी शो तक, डॉ. दुबे की मंचीय उपस्थिति ऐसी थी कि लोग हँसते-हँसते दोहरे हो जाते थे। वह छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पहले सचिव भी रहे, जिससे उनकी क्षेत्रीय संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा झलकती है। उनकी कविताएँ न सिर्फ हँसाती थीं, बल्कि समाज को आईना भी दिखाती थीं।

सम्मान और पुरस्कार

साल 2008 में 'काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार' से सम्मानित

साल 2010 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री सम्मान

वर्ष 2012 में पंडित सुंदरलाल शर्मा सम्मान, अट्टहास सम्मान

संयुक्त राज्य अमेरिका में लीडिंग पोएट ऑफ इंडिया सम्मान

अमेरिका के वाशिंगटन में हास्य शिरोमणि सम्मान 2019 से सम्मानित

उनकी रचनाओं पर देश के तीन विश्वविद्यालयों ने पीएचडी की उपाधि भी प्रदान की है।

हास्य-व्यंग्य साहित्य की पांच पुस्तकें लिखीं

साहित्यिक योगदान के लिये देश-विदेश में सम्मानित

बता दें कि, हिंदी साहित्य में उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें काका हाथरसी सम्मान भी मिला है। सुरेंद्र दुबे ने 5 किताबें लिखी हैं। मंच और टीवी शो में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इतना ही नहीं वें छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पहले सचिव थे। यहां पढ़िए उनकी कुछ फेमस कविताएं, जो आज भी लोगों की जुबान पर हैं।

दु के पहाड़ा ल चार बार पढ़,

आमटहा भाटा ला

खा के मुनगा ल चिचोर,

राजिम में नहा के

डोंगरगढ़ म चढ़,

एला कहिथे

छत्तीसगढ़ ।।

राम हमारे रोम-रोम में राम धर्म की धूरी है।

जिन्दा रहना है भारत में तो मर्यादा बहुत जरूरी है।

पांच अगस्त का सूरज राघव को लाने वाला है।

पांच शतक का धुंध सुहासा छटने वाला है।

राम भक्त जयघोष करो मंदिर बनने वाला है।

अपनी मौत की अफवाह पर कविता लिखी-

ये थीं मौत की झूठी खबर पर लिखी खुद सुरेंद्र दुबे की कविता की पंक्तियां

मेरे दरवाजे पर लोग आ गए

यह कहते हुए की दुबे जी निपट गे भैया

बहुत हंसात रिहीस..

मैं निकला बोला- अरे चुप यह हास्य का कोकड़ा है, ठहाके का परिंदा है

टेंशन में मत रहना बाबू टाइगर अभी जिंदा है.

मेरी पत्नी को एक आदमी ने फोन किया

वो बोला- दुबे जी निपट गे,

मेरी पत्नी बोली ऐसे हमारे भाग्य कहां है

रात को आए हैं पनीर खाए हैं

पिज़्ज़ा उनका पसंदीदा है

टेंशन में तो मैं हूं कि टाइगर अभी जिंदा है.

एक आदमी उदास दिखा मैंने पूछा तो बोला मरघट की लकड़ी वाला हूं

बोला वहां की लकड़ी वापस नहीं हो सकती आपको तो मरना पड़ेगा

नहीं तो मेरे 1600 रुपए का नुकसान हो जाएगा

मैंने कहा- अरे टेंशन में मत रह पगले टाइगर अभी जिंदा है.

कोरोना के “शोले” से बचकर..

कोरोना की “दिवार” गिराकर..

कोरोना की “ज़ंजीर” तोड़कर..

वो “मुक़द्दर का सिकंदर”..

फिर “शहंशाह” बनेगा ।।

कवि डॉक्टर सुरेंद्र दुबे

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