CG News: हाईकोर्ट ने पुलिस हिरासत में मौत पर सुनाया कड़ा फैसला, 4 पुलिसकर्मियों को 10 साल की सजा

Youth Death in Police Custody : बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुलिस हिरासत में हुई एक व्यक्ति की मौत के संवेदनशील मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि हिरासत में किसी व्यक्ति की मौत न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर गहरा आघात है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो यह समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह फैसला पुलिस सुधार और हिरासत में होने वाली हिंसा के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है।
सतीश नोरगे की हिरासत में मौत
यह मामला 2016 का है, जब जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम नरियरा निवासी सतीश नोरगे को मुलमुला थाना पुलिस ने शराब के नशे में हंगामा करने के आरोप में हिरासत में लिया था। कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उनके शरीर पर 26 गंभीर चोटों के निशान थे, जो पुलिस की पिटाई की ओर इशारा करते थे।
निचली अदालत का फैसला
जांच के बाद थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत, आरक्षक सुनील ध्रुव, दिलहरण मिरी, और सैनिक राजेश कुमार के खिलाफ धारा 302 (हत्या) और धारा 34 (साझा आपराधिक मंशा) के तहत केस दर्ज किया गया। 2019 में निचली अदालत ने चारों पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि, दोषियों ने इस सजा के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील दायर की। दूसरी ओर, मृतक की पत्नी ने भी हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सजा को और कठोर करने की मांग की।
हाईकोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की युगल पीठ में हुई। कोर्ट ने गहन विचार-विमर्श के बाद निम्नलिखित बिंदुओं पर फैसला सुनाया:
हत्या का इरादा नहीं था: कोर्ट ने माना कि यह हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी। इसलिए, इसे धारा 304 भाग-1 (गैर इरादतन हत्या) के तहत माना गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिसकर्मियों को यह आभास था कि लगातार शारीरिक प्रताड़ना से मृत्यु हो सकती है, फिर भी उन्होंने मारपीट की।
सजा में बदलाव: हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया।
SC/ST एक्ट की धाराएं हटाई गईं: अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपियों को मृतक की अनुसूचित जाति (SC) की पहचान की जानकारी थी। इसलिए, SC/ST एक्ट की धाराएं हटाते हुए थाना प्रभारी को इस विशेष आरोप से बरी कर दिया गया।
कोर्ट की तीखी टिप्पणी
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस की जवाबदेही पर जोर देते हुए कहा कि कानून के रखवालों की जिम्मेदारी सबसे बड़ी होती है। यदि वे अपनी सीमाएं लांघते हैं, तो समाज का भरोसा सबसे पहले उन पर से उठता है। कोर्ट ने हिरासत में हिंसा को कानून के शासन पर आघात बताया और इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
