जहां मिली भगवान बुद्ध की निशानियां, वहां अब दुग्ध क्रांति पर जोर

मनीष सिंह
रायपुर। कोंडागांव जिले का भोंगापाल... जो लिए जाना जाता है। सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत के इस क्षेत्र की जनजातीय महिलाएं डेयरी विकास के क्षेत्र में कदम रख कर अपनी किस्मत लिख रही हैं। नक्सल दहशत के लिए कुख्यात बस्तर का यह क्षेत्र अब अपनी पहचान को नई परिभाषा देने में जुट गया है। सुरक्षाबलों के आक्रामक अभियानों के कारण नक्सलियों की बंदूकें खामोश हुई तो स्थानीय लोग प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर अपना जीवन स्तर ठीक करने में लग गए हैं। कफिर, कोंडागांव और नारायणपुर की सीमा पर बसा भोंगापाल गांव अब डेयरी विकास में अपनी नई पहचान बना रहा है।
नक्सलियों की बंदूकें खामोश हुई तो जीवन स्तर सुधारने में जुटे स्थानीय निवासी
इसका उदाहरण है गांव की वो 47 महिलाएं जिन्होंने दुग्ध उत्पादन में कुछ नया करने का बीड़ा उठाया। उनकी ख्याति जब गांव से बाहर पहुंची तो शासन प्रशासन का भी ध्यान गया। लिहाजा प्रशासन ने एनडीडीबी के माध्यम से कांकेर और कोंडागांव जिले में एक पायलट प्रोजेक्ट लांच किया और यहां की जनजातीय महिलाओं की इससे जोड़ा। यहां प्रोजेक्ट की शुरुआत से ही डेयरी उत्पादन में जबर्दस्त वृद्धि देखी गई। 47 में से 24 महिलाओं को 8 से 10 लीटर प्रतिदिन उत्पादन क्षमता वाली साहीवाल नस्ल की गायें दी गई। ये मवेशी राजस्थान और पंजाब से मंगाए गए थे।
बस्तर संभाग में दुग्ध क्रांति
- 25 कार्यशील दुग्ध समितियां
- ४००६ दुध प्रदायक वर्तमान में
- 16060 लीटर प्रतिदिन संकलन
- 15 वर्षों में 400 कार गांवों को दुग्ध समिति से जोड़ने का लक्ष्य
- 9000 दूध प्रदायक जुड़ेंगे
- 43 हजार लीटर दूध संकलन का लक्ष्य
- 28000 सीटमा दुग्ध शीतलीकरण केंद्र साधित करने का लक्ष्य
- 01 लाख लीटर क्षमता का नवीन दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र की स्थापना का लक्ष्य
डेयरी महासंघ से जुड़े
डेयरी इकाई स्थापना के बाद घरेलू उपयोग पश्चात अतिशेष दूध का क्रय दुग्ध महासंघ द्वारा निर्धारित मूल्य पर किया जाने लगा है। दुग्ध संकलन को सरल करने के लिए दुग्ध महासंघ द्वारा नये दुग्ध समिति की स्थापना एवं दुग्ध संकलन मार्ग का गठन किया गया है। एक अनुसूचित जनजाति महिला हितग्राही द्वारा लगभग 12 लीटर दूध प्रतिदिन दुग्ध समिति में दिया जा
