महावीर दोहा मुक्तक-मंजरी
Author: डॉ. महावीर प्रसाद चंसौलिया
Reviewer: अवधेश कुमार चंसौलिया।
संवेदनाओं का समुच्च्य महावीर दोहा मुक्तक मंजरी
काव्य संवेदना का जनक है। संवेदना से करूणा तथा दया का भाव जाग्रत होता है। सामाजिक करूणा से समाज में समरसता, सहृदयता सहायता और परस्पर सद्भाव का वातावरण निर्मित होता है। समाज और कविता का अन्योन्याश्रित संबंध है। समाज सतत रूप से गतिशील है, इसी तरह कविता भी। कविता में समाज प्रतिबिम्बित होता है। समाज की हर हलचल कविता में चित्रित होती है।
डॉ. महावीर प्रसाद चंसौलिया की जीवनानुभूतिया सत्य के अधिक निकट हैं। छोटी से छोटी घटना ओझल नहीं हो सकती। समाज पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत है। समाज की हलचल को वे बहुत ही बारीकी से देखते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं फिर उस पर अपनी राय देते हैं। इसलिए उनके काव्य में अनुभव की प्रामाणिकता अन्य कवियों से भिन्न है। आयुर्वेद, ज्योतिष, शकुन विचार, आहार विहार, पर्यावरण एवं साहित्य का विशिष्ट ज्ञान है। बहुज्ञता उनके काव्य की पहचान है।
चंसौलिया अपनी बातों को दोहा कुण्डलियां कवित्व मुक्तक तथा दोहा मुक्तक में करते हैं। इसलिए इनके कथ्य में सामाजिक कसावट रहती है। अकविता के युग में छंदबद्धता लुप्तप्राय है। छंद विधान बहुत श्रमसाध्य और दुष्कर कार्य है यह कार्य हर किसी के वश का नहीं है। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहना बहुत ही मुश्किल काम है। दोहामुक्तककार चंसौलिया के लिए ऐसा करना सहज और सरल है। वर्तमान समय की उच्छंखृलता, अनैतिकता, अन्याय ठगी, भ्रष्टाचार, संस्कार विहीनता उनको बहुत दु:ख पहुंचाती है। इसलिए उनका मन विचलित होकर कह उठता है-
अर्थतंत्र की नींव पर
खड़ा दिखे जनतंत्र
निर्वाचन बाजार में
वोटर विक्रय तंत्र
सरकारंे गिर-गिर उठें
नोटों का आधार
महावीर अब दिख रहा
भ्रष्टाचार स्वतंत्र।
देश में भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे गिरती है। अत: ऊपर से भ्रष्टाचार बंद हो जाए तो नीचे अपने आप बंद हो जाएगा।
कृतिकार प्रसाद चंसौलिया की कलम सभी उन स्थानों पर चोट करती है जो नैतिक दृष्टि से कमजोर हैं, वे स्वस्थ व्यक्तित्व और स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु प्रतिबद्ध हैं इसलिए वे सलाह देते हैंं-
वर्तमान जीवन जियो
सदा करो प्रभुध्यान,
सकारात्मक सोचकर,
क्रियाशील गतिमान।
महावीर कर्मठ बनो,
संभव सभी सुजान।
शारीरिक दृष्टि से भी स्वस्थ रहने हेतु व आयुर्वेदिक नुस्खे बताते हैं।
ऐसे अनेक नुस्खे पुस्तक में हैं।
संयुक्त परिवार, मां की महिमा, स्त्री का महत्व एवं नैतिकता पर कृतिकार ने बहुत कुछ लिखा है। संग्रह के दोहा मुक्तक भटके हुए समाज के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करते हैं। इनसे हमारी निराशा, दैन्य, पलायन और हताशा नष्ट होती है और जिजीविषा के भाव में आशातीत वृद्धि होती है। समसामयिक जीवन की विसंगतियों का यथार्थ चित्रण बखूबी मिलता है। सामाजिक पतन की इनमें चिंता भी और सुझाव भी गलत का प्रतिरोध है साथ ही शुभ के लिए प्रोत्साहन भी मौजूद है। पुस्तक छोटी और पठनीय है। इसमें संग्रहीत दोहा मुक्तकों में पाठकों को जोडऩे की क्षमता निश्चित रूप से विद्यमान है।