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इस बार नहीं लगेगा भारत का दूसरा सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला, होगी सिर्फ पूजा
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बेगूसराय। वैश्विक महामारी कोरोना ने ना केवल अर्थव्यवस्था पर प्रहार किया है। बल्कि इसने समाजनीति और संस्कृति के साथ धार्मिक भावनाओं को भी आघात पहुंचाया है। इसी कड़ी में श्री कृष्ण भक्तों के सबसे बड़े त्योहार जन्माष्टमी की इस बार मात्र औपचारिकता पूरी की जाएगी।
कोरोना और लॉकडाउन के कारण 12 अगस्त को इस मौके पर कहीं कोई मेला या भीड़-भाड़ नहीं जुटाया जाएगा। इसके कारण बेगूसराय जिला को तीन करोड़ से भी अधिक के नुकसान होने का अनुमान है
तेघड़ा एवं उसके आसपास लगने वाला तीन दिवसीय मेला श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला बिहार का सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला है। यहां मेला देखने के लिए बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं, नेपाल, बंगाल, राजस्थान, दिल्ली, यूपी, असम, एमपी, उड़ीसा, झारखंड के साथ विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी आते हैं। रक्षाबंधन के बाद से ही यहां हर ओर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) की धूम मचनी शुरु हो जाती थी।
देश के बड़े-बड़े ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के भव्य मंदिर की तर्ज पर बड़े-बड़े गेट बनाए जाते थे। करीब 15 किलोमीटर से अधिक का एरिया दुल्हन की तरह सजाया जाता था। लेकिन इस वर्ष कोरोना के कारण हर ओर मातमी सन्नाटा पसरा हुआ है, कहीं कोई सजावट या तामझाम नहीं। सभी मंडप में परंपरा निभाने के लिए छोटी प्रतिमा रखकर मात्र पूजा-अर्चना कर विसर्जन कर दिया जाएगा। 1928 में तेघड़ा में मात्र एक जगह से शुरू मेला अब तेघड़ा से चकिया तक करीब 15 किलोमीटर लगने लगा है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि 1927 में तेघड़ा में प्लेग महामारी के रूप में फैल गई थी। बड़े पैमाने पर तेघड़ा के लोग दूसरे जगह जाकर बसना शुरू कर दिये थे। महामारी से बचने के लिए तेघड़ा के लोगों ने कई यज्ञ, अनुष्ठान, तंत्र-मंत्र का सहारा लिया, लेकिन कोई निदान नहीं निकला। इसी बीच 28 फरवरी 1927 को भारत भ्रमण के लिए निकली चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची, तो यहां की दुर्दशा देख सन्न रह गई। लोगों की स्थिति देख कर मंडली ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव (जन्माष्टमी) मनाने की सलाह दी और चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन मंडली की सलाह पर ही 1928 पहली बार वंशी पोद्दार के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया।