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मेहगांव क्षेत्र में चर्चा का विषय बना कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे का प्रथम आगमन

मेहगांव क्षेत्र में चर्चा का विषय बना कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे का प्रथम आगमन
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भिण्ड। मेहगांव विधानसभा से कांग्रेस का टिकट हासिल करना पार्टी के प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई के कारण राजनैतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण राजनैतिक कद बढ़ाने वाला कह सकते हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा कांटों से भरा टिकट का यह ताज संभाल न पाना राजनीति के चन्द्रमा पर कलंक भी बन सकता है। ऐसा ही कुछ राजनैतिक भविष्य कांग्रेस के मेहगांव प्रत्याशी हेमंत कटारे का नजर आ रहा है। वे टिकट तो पिता की राजनैतिक विरासत के संबंधों और चौ. राकेश सिंह के विरोध फलस्वरूप हासिल करने में सफल रहे, लेकिन अब एक नए क्षेत्र में वे सफल हो पाएंगे या नहीं? यह यहां की जनता तय करेगी

लाव-लश्कर के साथ क्षेत्र में आने का क्या पड़ेगा असर

कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे टिकट मिलने के बाद पहली बार तीन सौ वाहनों के विशाल काफिले के साथ मेहगांव क्षेत्र में पहुंचे। सोशल मीडिया पर उनके बड़बोले समर्थकों द्वारा कमेन्ट डाले गए हैं, जिसमें क्षेत्र की सबसे बड़ी रियासत सिंधिया घराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया की आधा दर्जन गाडिय़ां हेमंत कटारे के विशाल काफिले के बीच फंस गई और हेमंत कटारे कांग्रेस जिंदाबाद नारों के बीच सिंधिया के सुरक्षा कर्मियों के हाथ-पांव फूल गए। सोशल मीडिया के लिए यह सुर्खी हो सकती है, लेकिन इस तरह का आचरण राजनैतिक और सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ परंपरा नहीं हो सकता। सिंधिया राजघराने के ज्योतिरादिय सिंधिया के स्वागत काफिलों से हर कोई परिचित होगा। जिस क्षेत्र में उनका काफिला पहुंचता था वहीं चर्चाओं की धूम मच जाती थी। उन्हें भी अपनी लोकप्रियता की खेती में चहुंओर हरियाली ही हरियाली नजर आती थी। चारों ओर से चाटुकारों के बीच घिरे रहने से वे वास्तविक जानकारी से अनविज्ञ रहते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि गुना जैसी सीट से सिंधिया खानदान को पहली बार पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस हार के घटनाक्रम ने न केवल सिंधिया की राजनीति की दिशा बदली बल्कि उनके व्यवहार में भी अब परिवर्तन देखा जा सकता है। उपचुनाव की घोघणा के बाद सिंधिया क्षेत्र में सामान्य रूप में कई दौरे शालीनता से कर चुके हैं। निश्चित रूप से जनता की अदालत के फैसले ने उनको राजतंत्र से लोकतंत्र की ओर बढऩे का रास्ता दिखाया है। अब राजशाही अंदाज में हेमंत कटारे का क्षेत्र में आना काफी चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसकी व्याख्या राजनैतिक विश्लेषकों, समर्थकों और सामान्य लोगों के बीच उनका अपना-अपना विश्लेषण हो सकता है, लेकिन आत्ममंथन का विषय तो बनता है।

तनने वाले को नहीं, झुकने वाले को मिलता है आशीर्वाद

भिण्ड जिले के कुछ नेताओं ने तेज तर्रार होने की छाप पूरे प्रदेश में बनाई थी। उन नेताओं की गिनती में रमाशंकर सिंह के बाद स्व. सत्यदेव कटारे का नाम आता है। इनकी हेकड़ी तेज तर्रारी को कुछ समय तक खूब पसंद किया गया और इन दोनों का ही राजनीति में खूब जलबा भी रहा, लेकिन एक समय के बाद जब इन दोनों को ही पराजय का मुंह देखना पड़ा। तब इनको भी एहसास हुआ। अटेर से विधायक का चुनाव जीतते रहे सत्यदेव कटारे को जब लोकसभा का प्रत्याशी बनाया गया। तब उनका परेड चौराहे की सभा में दिया गया भाषण कुछ अहम् से भरा हुआ था, जो उनकी राजनीति में बढ़ते कदम के लिए रुकावट का कारण बना था। वे चुनाव हारे थे, जिसके फलस्वरूप उन्होंने केन्द्रीय राजनीति में जाने का अवसर खोया था। इस भाषण में उन्होंने प्रतिद्वंदी उम्मीदबार डॉ. रामलखन सिंह पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उनकी राजनीति पैर छूने की है। रास्ते में बैल मिल जाय या गाड़ी सभी के पैर पडऩे की उनकी आदत है। इस वाक्य का स्व. कटारे के प्रसंशकों पर जो भी प्रभाव पड़ा हो, लेकिन उसका डॉ. रामलखन सिंह को चुनाव में लाभ मिला था तो कटारे को पहली बार चुनाव हारने का स्वाद मिल था। इसके बाद उनके व्यवहार में काफी परिवर्तन भी देखा गया था।

Updated : 11 Oct 2020 1:00 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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