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फूल की हवा में भी भाजपा के बड़े नेता कैसे चाट गए धूल, अरविंद सिंह भदौरिया की क्यों हुई शर्मनाक हार

अटेर में लाड़ली बहना व विकास पर निजी विरोध भारी पड़ गया

फूल की हवा में भी भाजपा के बड़े नेता कैसे चाट गए धूल, अरविंद सिंह भदौरिया की क्यों हुई शर्मनाक हार
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नईदिल्ली। विधानसभा चुनाव 2023 में ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस के मजबूत खंब उखड़ गए तो फूल की हवा में भी भारतीय जनता पार्टी के धुरंधर नेता भी धूल चाट गए। यह वे नेता हैं जिनको संगठन का महारथी माना जाता था। ऐसे नेताओं को तो अपनी संगठन क्षमता और कार्यशैली पर आत्मंथन करना ही चाहिए लेकिन संगठन शिल्पी भी अपनी पारखी नजर पर गौर करें कि कहीं उनकी भी नजर कमजोर तो नहीं हो रही। भिण्ड जिले की अटेर विधानसभा सीट से संगठन में तमाम पदों पर रह चुके अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता से भारतीय जनता युवा मोर्चा फिर भाजपा में आए प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया की शर्मनाक हार हुई है। यह संगठन के पारखी नेताओं के लिए चिंतन का विषय होना ही चाहिए।

राजनीति में पीएचडी फिर क्यों हारे ?

एमजेएस महाविद्यालय भिण्ड में छात्र राजनीति से सक्रिय हुए अरविंद सिंह भदौरिया 1987-88 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडऩे के बाद उस समय के विद्यार्थी परिषद के भीष्म पितामह कहे जाने वाले अधिवता महेश सिंह चौहान की कृपा से भिण्ड मेला परिसर में आयोजित प्रांतीय अधिवेशन में पूर्णकालिक निकले और कप्तान सिंह सोलंकी का संपर्क पाकर प्रदेश संगठन में बड़े नेताओं में शुमार हो गए। उनका कोई चुनाव क्षेत्र नहीं था इसलिए जातिगत समीकरण के मद्देनजर 2008 में जुगाड़ लगाकर भाजपा का टिकट लेकर अटेर विधानसभा से मैदान में आ गए। यह चुनाव जीते जरूर लेकिन वोट उनके 2003 में पराजित उमीदवार मुन्नासिंह भदौरिया के समकक्ष ही आए थे लेकिन फिर भी चुनावी समीकरण ऐसे बने कि उनका राजयोग सफल होने के साथ विधायक चुन लिए गए। फिर 2013 में अरविंद सिंह भारी अंतर से चुनाव हारे।

दुर्भाग्य वश 2017 में उप चुनाव हुआ जिसमें भी अरविंद सिंह की पराजय हुई फिर भी संगठन ने 2018 में उन्हें टिकट दिया और दो चुनाव हारने के बाद तीसरे में सफलता तो मिल गई लेकिन वे जीत को पचा नहीं पाए। बेशक 2018-23 का कार्यकाल अरविंद सिंह की नजर में विकास भरा हो सकता है लेकिन क्षेत्र में सत्ता की तानाशाही बढऩे से विरोध काफी बढ़ गया और 2023 में उनके खिलाफ मुहिम की चर्चा सड़कों पर होने लगी। निश्चित रूप से हवा खिलाफहोने की खबर भोपाल -दिल्ली तक सर्वे में पहुंची होगी फिर भी अरविंद सिंह संगठन के बड़े नेता थे इसलिए उनके टिकट बदलने की हिमाकत का खतरा कौन मोल लेता।

दद्दा टैक्स बना बड़ा कारण

अटेर विधानसभा क्षेत्र में पूरा चुनाव दद्दा टैक्स केन्द्रित रहा। क्या बाकई में अरविंद सिंह भदौरिया की हार का कारण दद्दा टैक्स है जिसने उन्हें बदनाम किया लेकिन दद्दा टैक्स है। यह भी जानना जरूरी है। दद्दा यानि मंत्री के अग्रज देवेन्द्र भदोरिया जो इस पूरे परिवार के पिता के बाद पालक जैसे हैं। वे शासकीय सेवा में थे। इस नाते अपने अनुजों की पढ़ाई लिखाई में पूरे सहयोगी रहे इसलिए वे परिवार के लिए समानीय भी हैं। बेशक अरविंद सिंह अटेर से विधायक चुने गए लेकिन वे संगठन यात्राओं में ज्यादा व्यस्त रहने से क्षेत्र को बहुत कम समय दे पाए। यदि आए भी तो वीआईपी हवाई यात्रा की तरह और जल्द लौट गए। ऐसी उनके समर्थकों व शुभ चिंतकों का मानना है। उनकी हार की असल वजह यह भी हो सकती है। दद्दा को तो दलालों ने यूं ही बदनाम कर दिया। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि लला के क्षेत्र में न आ पाने की भरपाई में लगे दद्दा की जिमेदारी ज्यादा बढ़ गई और क्षेत्र संभालते- संभालते वे दलाल किश्म के लोगों के शिकंजे में फंस गए। जिनके द्वारा क्षेत्र में दद्दा के नाम पर खूब धन उगाही की गई। उधर दद्दा सीधे जनता से जुडऩे के बजाय इस तरह के हर गांव में मौजूद एजेंटों के भरोसे हो गए और छोटे से काम के लिए उसी विशेष व्यक्ति के माध्यम से आने की सलाह देते रहे। परिणाम स्वरूप जिन मतदान केन्द्रों पर 2018 में भाजपा को बंपर वोट मिले थे उसमें भारी कमी आ गई और अटेर में लाड़ली बहना और विकास पर निजी विरोध भारी पड़ गया।

गांव स्तर की राजनीति में भाग लेना बना दुखदायी -

पंचायत चुनाव या पारिवारिक विवाद के कारण हर गांव में दो पार्टिया होती हैं। असर बड़े नेता स्थानीय विवाद में पडऩे से बचते हैं। अटेर क्षेत्र में मंत्री जी की स्थानीय विवादों में गहरी रुचि रही। जो पक्ष उनके पास पहुंचा वह सही हो या गलत उसकी मदद करने में पीछे नहीं रहे। ग्रामीणजन आपस में लड़ते हैं तो एक भी होते हैं लेकिन उनकी लड़ाई में जो रुचि लेता है वह निगाह पर चढ़ जाता है तो मौका मिलने पर उसे नहीं छोड़ते। ऐसा ही कुछ हुआ जिसका खामियाजा अरविंद सिंह भदौरिया को इस चुनाव में भुगतना पड़ा।

अहंकार भी हार का कारण - अरविंद सिंह भदौरिया की यों हुई शर्मनाक हार

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री रहे अरविंद सिंह भदौरिया ने संगठन के वरिष्ठ नेताओं में अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी इसलिए जिला संगठन से जुड़े पदाधिकारी उनकी निगाह में तुच्छ हो गए। संगठन में उन्होंने अपने जेबी लोगों को पदों से विभूषित करा दिया जो पद मिलने मात्र से अहसानों में इतने दबे थे कि उनमे सच कहने की हिमत नहीं थी। नतीजा अरविंद सिंह क्षेत्र की वास्तविकता से दूर होते चले गए। चुनाव मे अनाप-शनाप धन लुटाने से चुनाव जीता जा सकता है। यह अहंकार 2018 के चुनाव में मिली सफलता से और अधिक बढ़ गया। इस बार लोगों ने पैसा भी लिया और वोट भी नहीं दिया और लोग यह भी कहते सुने गए कि दलालों ने उनसे काम कराने के नाम पर जो पैसा ऐंठा था वह वापस आया है।

छोटे कर्मचारियों का स्थानांतरण

भिण्ड जिले में 2018 के चुनाव में अटेर विधानसभा से एक मात्र भाजपा के उमीदवार अरविंद सिंह भदौरिया चुनाव जीते थे। इस चुनाव में ब्राह्मण समाज ने उनका खुलकर समर्थन किया था। ब्राह्मण बाहुल्य कई गावों में उन्हें अच्छे मत मिले। जिसके फलस्वरूप कांग्रेस के हेमंत कटारे चुनाव हार गए। इसके बावजूद अरविंद सिंह भदौरिया के इशारे पर छांट-छांट कर ब्राह्मण वर्ग के छोटे कर्मचारी शिक्षक, पंचायत कर्मी एवं अन्य को दूर स्थानांतरित कर परेशान किया गया और खबर दी गई कि मंत्री या दद्दा की शरण में चले जाओ तो परेशानी से निजात मिल जाएगी। लोग मिलने भी गए लेकिन जब उनसे यह कहा गया कि वे अपने गांव के अमुक व्यक्ति लेकर आएं तब सुनेंगे। स्वाभिमानी कर्मचारी शिक्षक अमुक व्यक्ति के पास न जाकर स्थानांतरित स्थान पर जॉइन कर आया लेकिन 2023 में सबक सिखाने का संकल्प ले लिया और फिर हराकर आखिरकार बदला ले ही लिया।

Updated : 8 Dec 2023 9:19 AM GMT
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स्वदेश डेस्क

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