Home > लेखक > किसान गुत्थीः कुछ सुझाव

किसान गुत्थीः कुछ सुझाव

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

किसान गुत्थीः कुछ सुझाव
X

सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आखिरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ से तूल पकड़ेगा। धरना देनेवाले पंजाब और हरियाणा के किसान काफी दमदार, मालदार और समझदार हैं और सरकार भी अपनी ओर से किसानों का गुस्सा मोल नहीं ले सकती है। इसीलिए 30 दिसंबर की इस वार्ता को सफल होना ही चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। दोनों पक्ष उन पर विचार कर सकते हैं।

पहला, खेती मूलतः राज्यों का विषय है। संविधान की धारा 246 में यह स्पष्ट कहा गया है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार राज्यों को (पंजाब, हरियाणा आदि) छूट क्यों नहीं दे देती? जिन राज्यों को ये तीनों कानून लागू करना हो, वे करें, जिन्हें न करना हो, वे न करें। वे खुद तय करें कि उनका फायदा किसमें है?

दूसरा, देश के 94 प्रतिशत किसान एमएसपी की दया पर निर्भर नहीं हैं। केंद्र सरकार चाहे तो सिर्फ 23 चीज़ों के ही क्यों, केरल सरकार की तरह दर्जनों अनाजों, फलों और सब्जियों के भी न्यूनतम मूल्य घोषित कर सकती है। उन्हें वह खरीदे ही यह जरूरी नहीं है।

तीसरा, किसान अपना माल खुले बाजार में खुद बेचते हैं। उन्हें इन सरकारी कानूनों से कोई फायदा या नुकसान नहीं है। ये किसान अपनी खेती और जमीन अभी भी ठेके पर देने के लिए मुक्त हैं। ये कानून बनाकर सरकार फिजूल का सिरदर्द क्यों मोल ले रही है?

चौथा, उपज के भंडारण की सीमा हटाना ठीक नहीं मालूम पड़ता है। भंडारण की सीमा लगाने का अधिकार सरकार को अपने हाथ में रखना चाहिए।

पांचवां, यदि कृषि-कानूनों को सरकार इज्जत का सवाल बनाए बैठी है तो इन छह प्रतिशत मालदार किसानों की टक्कर में वह 94 प्रतिशत छोटे किसानों के समानांतर धरने देश में जगह-जगह क्यों नहीं आयोजित कर सकती है?

Updated : 31 Dec 2020 8:47 AM GMT
Tags:    
author-thhumb

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

Swadesh Digital contributor help bring you the latest article around you


Next Story
Top