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जनसंख्या असंतुलन ...भारत पर घातक प्रहार

जनसंख्या असंतुलन ...भारत पर घातक प्रहार
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यदि हम हिंदू, मुस्लिम शासकों के पिछले लगभग 1300 वर्षों के इतिहास को देखें तो हमें एक अतीव रक्तरंजित, छल-कपट से भरा हुआ, लूट, बलात्कार, धर्मांतरण, बलात कब्जे व हिंदू संस्कृति को जीर्ण शीर्ण करने से लेकर नष्ट भ्रष्ट करने के प्रयासों से पटा हुआ इतिहास दृष्टिगोचर होता है। जब मुस्लिम आक्रमणकारी मध्यकाल में आक्रान्ता के रूप में उत्तर-भारत के रास्ते आए, तब से ही उन्होंने अपना संघर्ष हिंदू धर्म के विरुद्ध घोषित कर दिया था। मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों ने 712 ईसवी में सिंध पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया और हिंदू राजा दहीर मारा गया। राजा की मृत्यु के बाद रानी और दूसरी औरतों ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया। 17 वर्ष से ज्यादा के जिन पुरूषों ने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार किया वे मौत के घाट उतार दिए गए और इस प्रकार धर्मांतरण की एक बड़ी घटना ने जन्म लिया, जिससे आगे के वर्षों में मुस्लिम आक्रान्ताओं को बड़ा आत्मविश्वास व साहस मिल गया।

बाद के सभी हिंदू राजाओं व मुस्लिम आक्रान्ताओं के मध्य होने वाले युध्दों में, मुस्लिमों की विजय होने पर विजेता मुस्लिमों ने गैर-मुस्लिमों को रौंदा, पराजितों को भयानक अपमानपूर्ण संहार सहना पड़ा व इन युद्धों के अंत में हिंदू धर्म स्थानों को मुस्लिम धर्म स्थान में बदल देनें की व बलात धर्मांतरण की कार्यवाही अवश्य होती थी। भारत का मध्यकालीन इतिहास मुस्लिमों द्वारा पाशविक हत्याओं, मारकाट, लूटपाट, जबरन धर्म-परिवर्तन, भारतीय संस्कृति के जबरन विनाश, हिंदू धर्म स्थलों को मिटाने व उस स्थान पर मस्जिदों को बनाने जैसी अनेकों घटनाओं से भरा पड़ा है। भारत में जनसंख्या असंतुलन के साशय, कुटिल प्रयास 1300 वर्षों के इतिहास के साथ आज देश में अपने चरम पर पहुंच गए हैं।

भारत के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यदि हमें भारत की सबसे बड़ी व संवेदनशील समस्या जनसंख्या को समझना है तो हमें इतिहास अवश्य पढऩा होगा। विशेषत: भारत में तुष्टिकरण का इतिहास। यदि हम भारत में जनसंख्या की चर्चा करें तो जनसंख्या असंतुलन की चर्चा आवश्यक हो जाती है और जनसंख्या असंतुलन की चर्चा करें तो भारतीय राजनीति के सबसे घृणित शब्द तुष्टिकरण की चर्चा आवश्यक हो जाती है। यहां आवश्यक हो जाता है कि हम इस तुष्टिकरण शब्द को भली भांति समझ लेवें। तुष्टिकरण के विषय में बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था कि कुछ वर्ग मौके का फायदा लेकर अपने स्वार्थ के लिए अवैधानिक मार्ग अपनाते हैं। शासन इस संबंध में उनकी सहायता करता है इसे ही अल्पसंख्यक तुष्टिकरण कहते हैं। बाबासाहेब साहब तुष्टिकरण को सदैव राष्ट्रविरोधी मानते थे। भारत के स्वातंत्र्योत्तर सात दशकों में से पांच से अधिक दशक तक शासन करने वाली कांग्रेस और कांग्रेस पार्टी को एक घरेलू कंपनी की तरह चलाने वाले गांधी परिवार ने भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण का जो काला अध्याय लिख डाला है वह आने वाले कई दशकों तक भारत को अपने दुष्परिणामों का दंश देता रहेगा।

जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने वाले तुष्टिकरण के वर्तमान उदाहरण

जनवरी 2004 और मार्च 2007 के बीच जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत और वामपंथी आतंकवादी हिंसक घटनाओं में कुल 3,647 निरपराध लोग मारे गए। पिछले एक दशक में भारत में 53,000 से ज्यादा लोग आतंकवादी हिंसा के शिकार हुए जिसमें अधिकांश हिंदू हैं, जबकि कारगिल समेत सभी युध्दों में महज 8,023 लोग मारे गए।

एक जांच-पड़ताल (अगस्त 2007 में प्रकाशित) जिस से पता चलता है कि अधिकांश जिहादी वारदातों में चाहे कितने ही बड़े पैमाने पर हिंसा क्यों न हुई हो और चाहे कितनी ही संपत्ति क्यों न नष्ट हुई हो-मामले दर्ज नहीं किए गए। अधिकांश मामलों की जांच किसी न किसी बहाने से रोक दी गई, क्योंकि खोज के सूत्र किसी खास समुदाय की ओर संकेत कर रहे थे। ये वर्तमान भारत में तुष्टिकरण के ज्वलंत उदाहरण हैं। हैदराबाद के लुंबिनी पार्क विस्फोट के तीन महीने पहले ठीक इसी तरह का विस्फोट मक्का मस्जिद में हुआ था, अभी तक इसकी जांच-पड़ताल एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। इस मामले में तीन संदेहास्पद व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था, बाद में उन्हें छोड़ दिया गया, वह इसलिए नहीं कि वे बेगुनाह थे, बल्कि ऐसा करने के लिए राजनैतिक दबाव पड़ा।

प्यु के अनुसार आगामी चार वर्षों में विश्व की जनसंख्या 9.3 अरब होगी व मुसलमानों की जनसंख्या 73 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ेगी व इसाई व हिंदुओं की वृद्धि दर क्रमश: मात्र 35 व 34 प्रतिशत ही रहेगी। जनसंख्या की औसत आयु की दृष्टि से भी आंकड़े मुस्लिमों के पक्ष में दिखते हैं। 2010 में विश्व की 27 प्रतिशत जनसँख्या औसत 15 साल से कम आयु की थी, वहीं तुलनात्मक रूप से 34 प्रतिशत मुस्लिम जनसँख्या 15 वर्ष से कम आयु के किशोरों की थी, जबकि हिंदुओं में यही औसत 30 था। आयु का यह अंतर आने वाले समय में मुस्लिमों को तीव्र जनसंख्या वृद्धि में सहयोग करेगा। प्यु ने अपने इन्हीं विश्लेषणों व तार्किक आधार पर जनसांख्यकीय संकेतक विकसित किये हैं जो यह स्पष्ट संकेत करते हैं कि वर्ष 2070 में इस्लाम विश्व का सबसे बड़ा मजहब होगा। यही वह लक्ष्य है जिसे लेकर मुस्लिम विश्व व भारत का मुस्लिम एक मिशन के साथ आगे बढ़ रहा है। यही वह चिंता व कारण है जिससे भारत के हिंदू समाज को, शासन को, सरकार को व विशेषत: वर्तमान पीढ़ी को जागृत, चिंतित व विचार मुद्रा में आ जाना चाहिए। यदि भारत में मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत बढ़ा तो इसका सीधा सा अर्थ होगा हिंदुत्व की समाप्ति, भारतीय संस्कृति की समाप्ति, भारतीय अस्मिता व सनातनी मूल्यों की समाप्ति।

भारतीय जनसंख्या के संदर्भ में प्यु रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट

वर्ष 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के धर्म आधारित विश्लेषण आने के बाद स्वाभाविक ही था कि देश में इस पर प्रतिक्रिया होगी व विभिन्न क्षेत्रों में चिंताएं भी व्याप्त होंगी। खेद है कि हम इस संदर्भ में तनिक विलम्ब से जागृत हुये हैं। अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में "प्यु रिसर्च सेंटर" ने भारत के संदर्भ में यह पहले ही कह दिया था कि भारत में हिंदू व मुस्लिम जनसँख्या में तेजी से बढ़ता असंतुलन भारत के कई राज्यों व सैकड़ों जिलों में अलगाव, अशांति, टकराव व सामाजिक दुर्भाव की स्थितियां उत्पन्न करेगा। "प्यु रिसर्च सेंटर" की यह रिपोर्ट जनसंख्या आंकड़ों के सामने आने के बाद पूर्णत: सत्य साबित हुई। सबसे बड़ी खतरनाक बात इस रिपोर्ट में हमें आगाह करते हुए यह कही गई है कि वर्ष 2050 तक भारत विश्व का सबसे अधिक मुस्लिम जनसँख्या वाला देश बन जाएगा। यह तथ्य भी विश्व को अशांति की आग में झौंक देने वाला सिद्ध होगा कि पूरी सम्पूर्ण विश्व में मुसलमानों और ईसाइयों की जनसँख्या लगभग बराबर हो जाएगी। प्यु ने इस अपनी रिपोर्ट में वर्ष 2070 तक इस्लाम के विश्व में सबसे बड़े सम्प्रदाय बन जाने की भविष्यवाणी भी की है। विश्व भर में मुस्लिमों द्वारा अपनाई जा रही अधिकतम प्रजनन दर के कारण यह स्थिति उत्पन्न होने वाली है। एक तथ्य यह भी है कि मुस्लिमों की जनसंख्या में यह वृद्धि कोई संयोग नहीं है, या कोई सामजिक प्रवृत्ति नहीं है बल्कि यह एक षड्यंत्र पूर्ण योजना का एक अंश है। मुस्लिमों में जनसंख्या को बढ़ाना व लक्षित क्षेत्र या देश में पहले निर्णायक होना व फिर वहां का शासक होना एक अभियान बन गया है। इस अभियान में सम्पूर्ण विश्व के मुस्लिम एक मत से मतान्ध होकर सम्मिलित हो गए हैं।

मतांतरण ही राष्ट्रांतरण है

हम यह भी जानते हैं कि आज हमारे देश में जितने भी मुस्लिम और ईसाई हैं, उनके पूर्वज पुरातन काल में हिन्दू ही थे, लेकिन मुगल आक्रांताओं के भय के कारण इन्होंने अपने आपको मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर लिया। परिवर्तन करना कोई गुनाह नहीं हैं, लेकिन अपने राष्ट्र की मुख्य धारा से कट जाना सबसे बड़ा अपराध है। इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि मत परिवर्तन करने से राष्ट्र का दुश्मन पैदा हो जाता है। वर्तमान में यह सब खुलेआम दिखाई दे रहा है कि जो व्यक्ति मतांतरित होकर जीवन यापन कर रहा है, वह देश की मुख्य धारा से कट चुका है। उसे भारत माता की जय बोलने में शर्म आती है, वह वंदे मातरम का जय घोष भी नहीं कर पा रहा है।

भारत में जनसंख्या असंतुलन के बहुत से कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण मतांतरण भी है। हम जानते हैं कि देश के कई हिस्सों में ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम संस्थाएं विदेशों के संकेत पर कार्य करते हुए भारत में हिन्दू जनसंख्या को घटाने का सुनियोजित अभियान चला रही हैं। जिसके कारण देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन के घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। आसाम और केरल के कई उदाहरण हमारे सामने हैं।

यह बहुत ही विसंगति कही जाएगी कि भारत की मूल अवधारणा को अंगीकार करने वाला समाज आज हेय की दृष्टि से देखा जा रहा है। उसे अपने धर्म अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है। इनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मतान्तरण के कार्य में लगी हुई वे संस्थाएं बन रही हैं, जो हिन्दुओं के विरोध में अभियान चला रही हैं। मतांतरण के कारण ही आज हिन्दू समाज के दुश्मन अपने ही देश में पैदा होते जा रहे हैं। 'स्वामी विवेकानंद ने हिन्दुओं के मतांतरण करने पर स्पष्ट रूप से कहा था कि हिन्दू समाज में से एक मुस्लिम या ईसाई बने इसका मतलब यह नहीं है कि एक हिन्दू कम हुआ बल्कि यही होता है कि हिन्दू समाज का एक और शत्रु बढ़ा। आज जो कुछ देश में दिखाई दे रहा है, उसका आभास हमारे महापुरुषों को पूर्व में ही हो चुका था। इसी प्रकार विद्वानों का भी मत है कि मतांतरण के कारण अपने ही देश का व्यक्ति अपने पूर्वजों की परम्परा और संस्कृति से कट जाता है। हम यह भी जानते हैं कि जो व्यक्ति अपनी महान परंपरा को नकारने का प्रयास करता है, वह दूसरों के सहारे कभी भी सफलता के मार्ग पर नहीं जा सकता। हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारी संस्कृति विश्व की अत्यंत ही श्रेष्ठ संस्कृति है। आज हमारी संस्कृति की ओर विश्व के कई देश उन्मुख हो रहे हैं।

हम यह भी जानते हैं कि आज हमारे देश में जितने भी मुस्लिम और ईसाई हैं, उनके पूर्वज पुरातन काल में हिन्दू ही थे, लेकिन मुगल आक्रांताओं के भय के कारण इन्होंने अपने आपको मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर लिया। परिवर्तन करना कोई गुनाह नहीं हैं, लेकिन अपने राष्ट्र की मुख्य धारा से कट जाना सबसे बड़ा अपराध है। इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि मत परिवर्तन करने से राष्ट्र का दुश्मन पैदा हो जाता है। वर्तमान में यह सब खुलेआम दिखाई दे रहा है कि जो व्यक्ति मतांतरित होकर जीवन यापन कर रहा है, वह देश की मुख्य धारा से कट चुका है। उसे भारत माता की जय बोलने में शर्म आती है, वह वंदे मातरम का जय घोष भी नहीं कर पा रहा है। क्या इसे देश भक्ति कहा जा सकता है। कदाचित नहीं। फिर ऐसे मत परिवर्तन से क्या फायदा। भारत में धर्मान्तरित हुए और मुस्लिम बने ऐसे ही मुस्लिमों ने दंगा फसाद कर भारत को तोड़कर पाकिस्तान बनाया है। जो मुस्लिम भारत में रहते हैं वे भी वन्दे मातरम बोलने को तैयार नहीं हैं। इस्लामी शिक्षा उन्हें भारत के महापुरुष, अवतारों से हटाकर इस्लाम मजहब निर्माता से जोड़ रही है। धर्मान्तरित मुस्लिम श्रीराम, कृृष्ण, बुद्ध, महावीर स्वामी का नाम लेना तो दूर उनसे घृणा करते हैं। धर्मान्तरण के कारण वे भारत के संतों, ग्रंथों से कटे हैं। एक प्रकार से धर्मान्तरण से उनकी राष्ट्रीयता व देशभक्ति पर प्रश्नवाचक चिन्ह निर्माण हुआ है।

महात्मा गांधी ने भी ईसाईकरण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि 'भारत में ईसाई मिशनरी के प्रयास का उद््देश्य है कि हिन्दुत्व को जड़ मूल से उखाड़कर उसके स्थान पर दूसरा मत थोपना।Ó वर्तमान में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे कि कोई ईसाई संस्था देश के वनवासी अंचल में अपना जाल स्थापित कर वहां रहने वाले भोले भाले उन हिन्दुओं को अपने मूल धर्म से काटने का प्रयास कर रहे हैं, जिन्होंने अपने धर्म को बचाने के लिए ही वनों में रहना स्वीकार किया। अंग्रेजों ने योजनापूर्वक अपने शासनकाल में भारत का ईसाईकरण करना आरंभ किया था। इस ईसाईकरण के कारण भारत का उत्तर पूर्वांचल उग्रवाद की चपेट में है। गोवा में पुर्तगाली शासनकाल में आए सेण्ट जेवियर ने इंक्वीजीशन कानून बनवाकर हिन्दुओं को मरवाया। सैकडों मंदिरों को ध्वस्त कराया और हिन्दू माताओं और पुरुषों पर अनगिनत अत्याचार करके बड़ी मात्रा में उन्हें ईसाई बनाया और आज भी भारत में ईसाई चर्च लोभ-लालच, छल-बल द्वारा मतांतरण कर रहा है। ईसाई चर्च भी ईसाई बने लोगों को भारत की मूल हिन्दू संस्कृृति व मूल्यों से काटकर विदेशी मूल्यों का दास बना रहा है। इसी कारण नियोगी कमीशन की रिपोर्ट में डॉ. बीएन नियोगी ने कहा कि 'भारत में ईसाईयों द्वारा मतांतरण, ईसाई वंश के प्रभुत्व को पुन: स्थापित करने की एक समान वैश्विक नीति का अंग है।

हमारे हिन्दू धर्म में सबके कल्याण का भाव समाहित है और विश्व बंधुत्व के भाव को अंगीकार करते हुए ही अपनी नीतियों को आत्मसात करता है। विश्व के अन्य किसी धर्म या मजहब में ऐसा भाव नहीं हैं। हिन्दू समाज ने कभी भी तलवार के दम पर अपने धर्म का विस्तार नहीं किया। हिन्दू दर्शन सनातन काल से सर्वस्पर्शी रहा है। यही कारण है कि स्वामी विवेकानंद ने जब शिकागो में अपने धर्म का परिचय दिया तो सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए। सबका एक ही मत था कि यही वास्तविक धर्म है। लेकिन आज भारत में क्या हो रहा है। मतांतरण के कारण तनाव की स्थितियां निर्मित हो रही हैं। उड़ीसा में बधवा आयोग का मत है कि मतांतरण से सामाजिक तनाव बढ़ा है। इसी प्रकार पूर्व न्यायाधीश वेणु गोपाल तमिलनाडु ने भी मतांतरण पर अपना भाव व्यक्त करते हुए कहा कि मतांतरण समाज में विद्वेष निर्माण करता है। इन्हीं विचारों को पुष्ट करने वाला निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उन हिन्दू लड़कियों के बारे में देते हुए लड़कियों से पूछा कि तुमने मुस्लिम लडकों से विवाह किया है तो क्या तुम्हें इस्लाम की जानकारी है? इस पर लड़कियों ने जानकारी से मना किया तो न्यायाधीश ने इस विवाह को निरस्त कर दिया। विद्वानों का यह सुविचारित मत है कि धर्मान्तरण से राष्ट्रान्तरण होता है। घर-वापसी से व्यक्ति समाज के विकास और उत्थान से जुड़ जाता है। घर वापसी यह भारत में प्राचीन काल से चल रही हैं। महर्षि देवल, विद्यारण्य स्वामी, रामानंदाचार्य, छत्रपति शिवाजी से लेकर चैतन्य महाप्रभु, दादूदयाल, ऋषि दयानंद, स्वामी श्रद्धानंद आदि महापुरुषों ने घर वापसी द्वारा समाज को देश-धर्म से जोडऩे का कार्य किया है।

वर्तमान में पूर्व में धर्मान्तरित हो चुके कई ईसाई और मुसलमान अपनी मूल धारा की ओर आना चाह रहे हैं। लेकिन उनके मन में इस बात का भय है कि उनका वर्तमान समाज क्या उनको ऐसा करने देगा। इसी भय के कारण ही आज कई लोग समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हालांकि इसके विपरीत कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी उनके अपने मत में ही बने रहने की राजनीति करने पर तुले हैं। यह वास्तविकता है कि कोई भी समाज तभी प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है, जब वह उस देश की मूल धारा के साथ समन्वय स्थापित करके अपना जीवन यापन करे। अन्यथा वह बहुत पीछे ही रह जाएगा। आज मुस्लिम समाज के पीछे रहने का मूल कारण भी यही है कि उनके समाज का बहुत बड़ा वर्ग राष्ट्र की मुख्य धारा से कटा हुआ है या फिर उन्हें कटा रहने के लिए प्रवृत किया जा रहा है। मुस्लिम समाज को भी चाहिए कि वह स्वेच्छा से भारत के साथ समन्वय स्थापित करे।

यह सत्य है कि किसी भी राष्ट्र का उत्थान उसके राष्ट्र भक्तों के परिश्रम व पुरुषार्थ पर ही संभव है। इसलिए समय की मांग है कि हिन्दू समाज अपने उन जातिबंधुओं का आह््वान करे कि यदि आप इस्लाम एवं ईसाइयत को छोडकर हिन्दू समाज में सम्मिलित होने को तैयार हैं तो हम आपको अपनी मूल जाति में सम्मिलित करने को तैयार हैं। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम भारत में रहने वाले संत-महंत-आचार्य के साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज को अपने स्नेह प्रेम के दोनों हाथ फैलाकर विधर्मी बने उन्हें स्वधर्मी बनाकर भारत से जोड़कर राष्ट्रीय धारा में सम्मिलित करेंगे। ज्ञान-विज्ञान सम्पन्न एक गौरवशाली भारत निर्माण करना ही आज का राष्ट्र धर्म है। घरवापसी मानव को राष्ट्रीय धारा से जोड़ती है। इसलिए भारत सरकार को धर्मान्तरण की रोक हेतु एक कड़ा कानून बनाना चाहिए जिससे देशभक्त समाज द्वारा भारत का शीघ्रगामी विकास संभव हो सके।

Updated : 14 Nov 2018 3:19 PM GMT
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प्रवीण गुगनानी

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