कनाडा में एक भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक की चिकित्सा सेवा न मिलने से मौत: मगर मीडिया में विमर्श नहीं

कनाडा में एक भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक की चिकित्सा सेवा न मिलने से मौत: मगर मीडिया में विमर्श नहीं
X
सोनाली मिश्रा

वह कोरोना काल था, जब पूरी दुनिया एक अनदेखे शत्रु से लड़ रही थी। किसी को नहीं पता था कि कैसे लड़ा जाए और कैसे बचा जाए। डॉक्टर से लेकर सरकार तक हर कोई अपने-अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रहा था और बस यही प्रार्थना कर रहा था कि कैसे भी हो, बस सुरक्षित रूप से ये समय कट जाए। भारत सरकार बहुत ही मजबूती से अपने नागरिकों के साथ खड़ी थी। वह एक अभिभावक की तरह अपने नागरिकों की हर आवश्यकता को पूर्ण करने के प्रयास में थी, मगर फिर भी औपनिवेशिक दृष्टि बोध से ग्रसित विदेशी मीडिया भारत का उपहास करता रहा। भारत की स्वास्थ्य सेवाओं का मजाक उड़ाता रहा और भारत में जलती चिताओं की तस्वीरें दिखा-दिखाकर बदनाम करता रहा।

वह ऐसा दौर था, जब पूरब से लेकर पश्चिम तक हाहाकार था और अमेरिका जैसे देश भी अपने नागरिकों को बचाने में सक्षम नहीं थे। वहाँ पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए महीनों तक का समय लग रहा था। मगर ये तमाम कमियाँ वहाँ का मीडिया दिखा नहीं रहा था। उसकी रुचि और हित केवल और केवल भारत को बदनाम करने में था, जबकि जहां से यह वायरस जन्मा, उस चीन को लेकर किसी भी प्रकार की नकारात्मक रिपोर्टिंग नहीं थी। आज यह बात क्यों उठ रही है, जबकि कोरोना को गुजरे काफी अरसा हो गया है और भारत ने अपनी कोरोना की वैक्सीन को भी विकसित कर लिया था।

आज यह बात दरअसल कनाडा की एक घटना को लेकर उठ रही है। कनाडा को एक विकसित और अत्याधुनिक देश माना जाता है। जहां पर जाने के लिए भारत से कई लोग हर खतरा उठाने के लिए तैयार रहते हैं। वे बस चाहते हैं कि कैसे भी वहाँ पहुँच जाएं, फिर वहाँ पर वे नस्लवाद के शिकार बनें या फिर किसी और चीज के, मगर एक बार वहाँ पहुँच जाएं। उसी कनाडा में 22 दिसंबर 2025 को एक भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक श्रीकुमार की मृत्यु एक ऐसे कारण से हुई, जिस कारण से भारत में सहज संभव नहीं लगती है। श्रीकुमार अपने तीन बच्चों को अनाथ छोड़कर चले गए हैं, कहने के लिए उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई, परंतु उनकी मृत्यु हुई है चिकित्सीय लापरवाही से और कनाडा की अक्षम चिकित्सीय व्यवस्था से!

क्या है मामला?

44 वर्षीय भारतीय कनाडाई नागरिक श्रीकुमार सीने में दर्द को लेकर कनाडा में अस्पताल गए। उन्हें कनाडा के एडमोंटन मे ग्रे नन्स कम्यूनिटी अस्पताल में तत्काल ही लेकर जाया गया। उन्हें काम करते-करते ही सीने में दर्द हुआ था। मगर तीन बच्चों के पिता श्रीकुमार को इलजा नहीं मिला। उन्हें अस्पताल के इमरजेंसी रूम में बैठाकर इंतजार कराया गया। यह आपातकाल था, मगर उस आपात स्थिति को अनदेखा किया गया। यह कहा गया कि सीने में दर्द कोई इमरजेंसी नहीं है। और कोई आधे या एक घंटे तक इंतजार नहीं कराया गया, बल्कि पूरे के पूरे आठ घंटे तक इंतजार कराया गया और वे इन आठ घंटे तक तड़पते रहे। उनके सीने में दर्द उठता रहा, वे दर्द से कराहते रहे, उनके पिता जब उनसे मिलने पहुंचे तो वे भी अपने बेटे को इस हाल में देखकर परेशान हो उठे। मगर फिर भी अस्पताल ने नहीं सुना।

12 बजे से इंतजार करते-करते रात में 8 बजे के बाद जब उनका नंबर आया तो वे इलाज के लिए जैसे ही पहुंचे, वैसे ही लगभग 10 सेकंड बैठे रहने के बाद, अपने पिता की ओर देखते हुए अपने सीने पर अपना हाथ रखा और देखते ही देखते श्रीकुमार की साँसों की डोर टूट गई। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। श्रीकुमार की जान बच सकती थी, यदि स्थिति की गंभीरता को समझ लिया जाता तो? यदि कनाडा में आपात चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होतीं तो? यदि वे इंसानों के प्रति संवेदनशील होते तो?

कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में स्वास्थ्य सेवाओं का है बुरा हाल

ऐसा नहीं है कि कनाडा में यह एकमात्र मामला हुआ हो। अमेरिका और कनाडा जैसे कथित विकसित देशों में अस्पतालों और डॉक्टर्स के लिए प्रतीक्षा समय बहुत अधिक है। और यह भारत की तुलना में बहुत अधिक है। भारत की चिकित्सा सेवाओं को आम तौर पर बहुत ही हेय दृष्टि से पश्चिमी मीडिया देखती है, परंतु वह यह नहीं बताती है कि अमेरिका में अस्पतालों और डॉक्टर्स के लिए वेटिंग समय अर्थात प्रतीक्षा का समय भारत की तुलना में बहुत अधिक है। और विशेषकर सर्जरी के लिए और विशेषज्ञ डॉक्टर्स के मामले में और भी अधिक है। भारत में जहां कुछ ही दिनों में या फिर तुरंत ही डॉक्टर्स का समय मिल जाता है, तो वहीं कथित विकसित कहे जाने वाले देशों में यह बहुत अधिक है।

कनाडा में तो यह इस सीमा तक है कि वहाँ पर हजारों की संख्या में कैंसर आदि के मरीज केवल इसलिए असमय काल का ग्रास बन जाते हैं क्योंकि समय पर उनकी बीमारी ही पता नहीं लग पाती है। कई मामलों में तो जब तक इलाज का समय आया, तब तक मरीज की मौत हो चुकी थी। वह बात दूसरी है कि ऐसी तमाम व्यवस्थागत विफलताओं को वहाँ का मीडिया छुपाकर रखता है और वहाँ का सारा पिछड़ापन भारत पर थोपता है।

वर्ष 2022 में पाकिस्तानी बच्ची की अत्यंत जटिल सर्जरी

जब इन दिनों कनाडा में एक भारतीय कनाडाई नागरिक की इस तरह से मौत की खबर छाई हुई है, तो इसी समय सोशल मीडिया पर वर्ष 2022 की एक घटना भी छाई हुई है, जिसमें एक पाकिस्तानी लड़की की बेहद जटिल सर्जरी एक भारतीय न्यूरॉसर्जन ने की थी। पाकिस्तान के सिंध से एक किशोरी अफ़शाँ गुल एक बहुत ही दुर्लभ स्थिति से परेशान थीं। उनकी गर्दन पूरे नब्बे अंश के कोण पर मुड़ी हुई थी। 13 वर्षीय गुल अपनी ज़िंदगी जी ही नहीं पा रही थीं। दरअसल जब वह मात्र दस महीने की थीं, तो वे अपनी बड़ी बहन के हाथों से नीचे गिर गई थीं। और उनकी गर्दन एकदम 90 अंश के कोण पर मुड़ गई। और इस प्रकार वह इस गंभीर स्थिति से पीड़ित हो गईं।

जीवन के 12 साल गुल ने इसी तरह काटे और वे जमीन पर पड़ी रहती थीं। मगर भारत में दिल्ली में अपोलो अस्पताल के डॉ राजगोपाल कृष्णन ने उन्हें इस पीड़ा से मुक्ति दिलाई। उन्होनें बेहद जटिल सर्जरीज कीं और अंतत: उस बच्ची को एक सामान्य जीवन दिया। हालांकि वह सामान्य बच्चों से बहुत पीछे थी, मगर यह आस थीकि वह जी जाएगी। और ये जटिल सर्जरीज राजगोपाल कृष्णन ने एकदम मुफ़्त में की थीं। यह भारत की चिकित्सा सेवा की तत्परता और सेवा भाव है। हाँ, यह सच है कि अभी भी कई खामियाँ हैं, और भारत सरकार उन तमाम खामियों पर काम भी कर रही है, परंतु यह भी बात सत्य है कि भारत कई कथित विकसित देशों की तुलना में एक बेहतर स्थान है, कम से कम चिकित्सा सुविधाओं के मामले में।

पश्चिम का औपनिवेशिक मीडिया कभी भी भारत की उपलब्धियों पर बात नहीं करता है, वह भारत के प्रति अतीव घृणा से भरा हुआ है और अपने प्रति आत्ममुग्धता से! तभी अपनी कमियों और खामियों पर वह व्यवस्थागत प्रश्न नहीं उठाता है, घटना की रिपोर्टिंग और व्यवस्थागत खामियों में अंतर है।और कनाडा में हुई यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना व्यवस्थागत खामियों का किस्सा हैं और कुछ नहीं!


लेखिका - सोनाली मिश्रा

Tags

Next Story