चीन की चाशनी में लिपटा ‘लेफ्ट मीडिया’

चीन की चाशनी में लिपटा ‘लेफ्ट मीडिया’
चीन दुनियाभर में मीडिया संस्थानों/पत्रकारों को पैसे देकर अपनी छवि चमकाने और दूसरे देशों के खिलाफ दुष्प्रचार को अंजाम दे रहा है।
लोकेन्द्र सिंह (स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक)

भारत के कुछ मीडिया संस्थानों को लेकर सामान्य नागरिकों के मन में अकसर प्रश्न उठते हैं कि उनके समाचारों एवं विचारों में भारत विरोध की बू क्यों आती है? जब देश समाधानमूलक पत्रकारिता की अपेक्षा करता है, तब ये अपनी रिपोर्टिंग से बनावटी विवादों को जन्म क्यों देते हैं? ये चीन और पाकिस्तान परस्त क्यों दिखायी देते हैं? इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तर अमेरिकी समाचारपत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट से मिलते हैं। यह रिपोर्ट खुलासा करती है कि चीन दुनियाभर में मीडिया संस्थानों/पत्रकारों को पैसे देकर अपनी छवि चमकाने और दूसरे देशों के खिलाफ दुष्प्रचार को अंजाम दे रहा है। इस तरह चीन अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध ‘धुंआ रहित युद्ध’ भी लड़ रहा है। चीन के इस एजेंडा को चलाने में श्रीलंकाई मूल का अमेरिकी कारोबारी नेविल रॉय सिंघम किंगपिंग के तौर पर सामने आया है। नेविल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की प्रचार शाखा से जुड़ा है। यह रिपोर्ट खुलासा करती है कि चीन के दलाल नेविल ने कम्युनिस्ट खेमे की वेबसाइट ‘न्यूज क्लिक’ को करोड़ों रुपये की फंडिंग की है। न्यूज क्लिक और उससे जुड़े पत्रकारों की पत्रकारिता का विश्लेषण करें, तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है कि चीन से किस बात के लिए उन्हें पैसा मिला होगा।

हालांकि जो देशभक्त प्रबुद्ध वर्ग है उसे इस खुलासे से कतई आश्चर्य नहीं हुआ होगा क्योंकि देश बाह्य ताकतों के इशारे पर काम करने का कम्युनिस्टों का इतिहास रहा है। एक समय में कम्युनिस्ट खेमा रूस से संचालित होता था, लेकिन जब रूस में तानाशाही कम्युनिज्म व्यवस्था धराशाही हो गई तब उन्होंने कम्युनिस्ट चीन के साथ अपने संबंध जोड़ लिए। याद हो, जब 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब भारत के कम्युनिस्ट नेता एवं बुद्धिजीवी आक्रांता देश के पाले में जाकर खड़े हो गए। भारत पर आक्रमण करने के लिए चीन का विरोध करने की जगह, कम्युनिस्ट उसके पक्ष में सड़कों पर रैलियां निकाल रहे थे और भारत की ही आलोचना कर रहे थे। कम्युनिस्ट मीडिया का चीन की गोदी में बैठना कोई मजबूरी नहीं, अपितु उसका स्वाभाविक चरित्र ही है। आज जब भारत तेजी से विश्व पटल पर प्रभावशाली भूमिका को प्राप्त कर रहा है, तब कम्युनिस्ट मीडिया चीन के इशारे पर भारत की छवि को खराब करने के व्यभिचार में शामिल हो गया है। किसी कठपुतली की भाँति भारत में सक्रिय कम्युनिस्ट मीडिया अपने आका चीन की अंगुलियों के इशारे पर नाच रहा है। असली गोदी मीडिया तो यही है।

हैरानी की बात है कि अमेरिकी समाचारपत्र न्यूयॉर्क टाइम्स में जब भी भारत विरोधी समाचार या लेख प्रकाशित होते हैं, तब समूचा प्रगतिशील खेमा एवं तथाकथित सेकुलर बिरादरी उनकी कतरनें किसी विजयी ध्वज की तरह लहराते हुए हो-हल्ला मचाते हैं। परंतु जब उसी समाचार पत्र ने एक खतरनाक सच को उजागर किया है, तब यह खेमा या तो चुप है या फिर मुंह भी खोल रहा है तो उस रिपोर्ट पर प्रश्न उठाने के लिए। याद हो, वर्ष 2021 में ही प्रवर्तन निदेशालय की जाँच में यह बात सामने आ गई थी कि ‘न्यूज क्लिक’ को जो विदेशी निवेश मिल रहा है, उसमें भारी अनियमितता है। उस समय भी चीनी दलाल नेविल रॉय सिंघम का नाम सामने आया था। उस समय न्यूज क्लिक के प्रधान संपादक और निदेशक प्रबीर पुरकायस्थ के कार्यालय और आवास पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी के दौरान माओवादी नवलखा और सीपीएम के आईटी सेल से जुड़े बप्पादित्य सिन्हा को भुगतान से संबंधित दस्तावेज भी जब्त किए गए थे। अब उन लोगों एवं राजनीतिक दलों का चरित्र भी देश की आम जनता को समझ आ रहा है, जिन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ‘न्यूज क्लिक’ पर प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई का विरोध किया था। स्मरण रहे कि कम्युनिस्ट पार्टियों सहित कांग्रेस ने भी प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को स्वतंत्रत मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था। लेकिन आज एक बार फिर जब भारत विरोध के लिए कुख्यात वामपंथी मीडिया ‘न्यूज क्लिक’ का सच सामने आया है, तब यह मुंह में दही जमाकर बैठ गए हैं।

यदि हम प्रवर्तन निदेशालय की जाँच-पड़ताल और अमेरिकी समाचारपत्र न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का अध्ययन करें, तो दोनों में बहुत साम्य दिखायी देता है। इससे साफ होता है कि प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई बेबुनियाद नहीं थी। ‘न्यूज क्लिक’ और उससे जुड़े पत्रकार एवं एक्टिविस्ट चीन से धन प्राप्त करके भारत विरोधी विमर्श को खड़ा करने के काम में संलग्न थे। इस खुलासे के बाद अब भारत सरकार को नये सिरे से न्यूज क्लिक और उसके जैसी अन्य वेबसाइटों की जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। आशंका है कि चीन की चासनी में केवल ‘न्यूज क्लिक’ अकेला नहीं लिपटा है, बल्कि इसमें अन्य वेबसाइट एवं स्वतंत्र पत्रकार भी लिप्त होंगे। यह बहुत गंभीर मामला है। भारत के विरुद्ध चीन की ओर से जारी अदृश्य युद्ध में इस प्रकार के समाचार संस्थान चीनी पिट्‌ठू हैं। ये समाचार संस्थान अप्रत्यक्ष रूप से चीन के एजेंडे को समाज में फैलाने के काम में लगे हुए हैं। समय रहते इन सबको उजागर करना और संविधान सम्मत कार्रवाई करना अत्यंत आवश्यक है।

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में चीनी दुष्प्रचार और एजेंडा चलाने के लिए ‘न्यूज क्लिक’ को नेविल की कंपनियों एवं उसके समर्थन वाले दूसरे स्रोतों से लगभग 38 करोड़ रुपये मिले हैं। इसमें से 20 करोड़ रुपये निर्यात भुगतान के रूप में मिले हैं, जबकि 10 करोड़ रुपये एफडीआई के तौर पर मिले। इसके अलावा 1.5 करोड़ रुपये कार्यालय संधारण के तौर पर मिले। इसके अलावा शेष रकम सीधे तौर पर ‘न्यूज क्लिक’ के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ को मिली है। वहीं, प्रवर्तन निदेशालय न्यूज क्लिक पोर्टल चलाने वाली कंपनी को 86 करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी धनराशि मिलने की जाँच कर रहा है। निदेशालय की जाँच के अनुसार, न्यूज क्लिक को विदेश में सेवा के बदले मार्च 2018 तक जस्टिस एंड एजुकेशन फंड इंक, अमेरिका, द ट्राइकॉन्टिनेंटल लि. अमेरिका, जीएसपीएएन एलएलसी अमेरिका और सेंट्रो पॉपुलर डी मिडास, ब्राजील से क्रमश: 76.84 करोड़ रुपये, 1.61 करोड़ रुपये, 26.98 लाख रुपये और 2.03 लाख रुपये प्राप्त हुए। लेकिन निदेशालय को छापे के दौरान उसे न्यूज पोर्टल की तरफ से इन कंपनियों को सेवा प्रदान करने के संबंध में कोई सबूत नहीं मिले। यानी इतनी बड़ी रकम न्यूज क्लिक को क्यों मिली, इसका कोई उत्तर नहीं है। यह सब तथ्य भी वामपंथी मीडिया ‘न्यूज क्लिक’ के वास्तिवक चरित्र की ओर संकेत करते हैं।

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