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दुनिया की समस्याओं का हल भारत से निकलेगा - लालजी टण्डन

- वैश्विक समस्याओं के समाधान निकालने में पर्यावरण कुम्भ की महत्वपूर्ण भूमिका होगी

Update: 2018-12-01 13:18 GMT

वाराणसी। वाराणसी स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में शनिवार से आयोजित दो दिवसीय वैचारिक 'पर्यावरण कुम्भ' के प्रथम सत्र में "पर्यावरण व भारतीय जीवन शैली" पर चर्चा-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने भारतीय परम्पराओं व संस्कृति को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति में जीवन का आनन्द नहीं है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बिहार राज्य के राज्यपाल लालजी टण्डन ने कहा कि हमारे ऋषियों ने कहा कि यह शरीर पांच तत्व से बना है और जब समाप्त होता है तो फिर पंचतत्व में विलीन हो जाता है। प्रकृति को तबाह किसी और ने कर रखा है और दोष भारत पर मढ़ा जा रहा है। हमारे यहां दिनचर्या के अनुसार सारे कर्म निर्धारित हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक समस्याओं के समाधान निकालने में यह कुम्भ महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि दुनिया के समस्याओं का हल भारत से निकलेगा।

मौसम विशेषज्ञ व संयुक्त राष्ट्र संघ में इकाई सदस्य लक्ष्मण सिंह राठौर ने कहा कि भारतीय चिंतन में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष उच्च जीवन शैली के सूत्र हैं। उन्होंने कहा कि देर रात में भोजन नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि सूर्यास्त के बाद शरीर में पाचन के जीवाणु सोने लगते हैं। डॉ. एसपी गौतम ने कहा कि भारतीय संस्कृति पर आधारित जीवन रहता तो आज पर्यावरण कुम्भ की आवश्यकता नहीं होती। अणु-परमाणु के प्रकृति की जानकारी भारत 1500 वर्ष पहले दे चुका है। लेकिन उसी जानकारी को 50-60 वर्ष पहले बताने वाले को नोबल पुरस्कार मिल रहा है। उन्होंने कहा कि उगते हुए सूर्य को प्रणाम करने की बात को हंसी में उड़ाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यह चापलूसी है। लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि उगते हुए सूर्य को वही प्रणाम कर सकता है, जिसमें समरसता का भाव है।

डॉ. पुनीत कुमार मिश्रा ने भारतीय जीवन शैली और स्वास्थ्य पर विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि हमारे मनीषियों ने पर्यावरण की महत्ता को समझा। उन्होंने ऐसी परम्पराएं विकसित की, जो प्रकृति के लिए शुभ साबित हुआ, लेकिन इधर बीच अपनी परम्पराओं से हम कटते जा रहे हैं। आज वायु की गुणवत्ता करब हो रही है। उन्होंने कहा कि अच्छी दृष्टि से सृष्टि को ठीक ढंग से संचालित किया जा सकता है।

डॉ. मिश्रा ने कहा कि हमारे ऋषि-मनीषियों ने प्रत्येक कार्य के लिए समय बनाया था। खाने-पीने से लेकर सोने तक की दिनचर्या भारत के लोगों ने बनाई है, जिसपर दुनिया चलकर स्वस्थ रह सकती है। उन्होंने कहा कि देश-दुनिया मे भ्रम फैलाया गया कि देशी घी न खाएं, नुकसान पहुंचाएगा और मार्केट के तेल उपयोग करने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन के लिए जो कुछ ढूंढ रहा है, वह पाश्चात्य संस्कृति में नहीं मिलेगा, इसके लिए भारतीय संस्कृति की ओर ही बढ़ना पड़ेगा।

इस अवसर पर देश के अन्य हिस्सों व वाराणसी के हजारों प्रतिभागियों ने पर्यावरण व भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी सहमति जताई।

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