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यूपी : सपा से शिवपाल की बगावत और बसपा की गठबंधन के प्रति बेरुखी से रालोद मुखिया की मुश्किलें बढ़ी

Update: 2018-10-16 06:10 GMT

मेरठ/स्वदेश वेब डेस्क। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के खिलाड़ी रहे रालोद मुखिया अजित सिंह इस समय अपने राजनीतिक अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं। उन्हें भाजपा के खिलाफ बन रहे महागठबंधन में ही अपना सियासी भविष्य नजर आ रहा है लेकिन सपा से शिवपाल की बगावत और बसपा की गठबंधन के प्रति बेरुखी ने रालोद मुखिया की मुश्किलें बढ़ा दी है। ऐसे में वह अपने परंपरागत जाट वोट बैंक को सहेजने की जुगत में लगे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटा होने के कारण अजित सिंह उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी बनना चाहते थे तो मुलायम सिंह यादव खुद को राजनैतिक उत्तराधिकारी मानते थे। इसी बात को लेकर नब्बे के दशक में मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह में यूपी का मुख्यमंत्री बनने को चली खींचतान में जनता दल टूट गया था और बाजी मुलायम सिंह के हाथ लगी थी। अजित ने अपना अलग जनता दल अजित बनाकर राजनीति शुरू कर दी। इसके बाद से ही बागपत समेत वेस्ट यूपी में अजित सिंह का डंका बजने लगा। अपनी राजनीतिक यात्रा में अजित ने कई पार्टियों का दामन थामा तो कभी अपनी पार्टी बनाई। एक बार कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव पड़ा तो एक बार भाकियू संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के साथ मिलकर भारतीय किसान कामगार पार्टी बनाई। खुद का बनाया जनता दल अजित भी खत्म हो गया। भाजपा और सपा के साथ भी गठबंधन करके चुनाव पड़े। बसपा से भी गलबहियां करने की नाकाम कोशिश की।

1998 के लोकसभा चुनाव अजित को भाजपा के सोमपाल शास्त्री के हाथ करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से लगा रालोद को झटकाअभी तक किसानों के मुद्दे उठाकर रालोद खुद को किसान हितैषी साबित करने की कोशिश करता था। रालोद के साथ परंपरागत जाटों के साथ मुस्लिम भी जुटते थे। 2013 में मुजफ्फरनगर व शामली दंगों के बाद हालात पूरी तरह से बदल गए। जाटों और मुस्लिमों के बीच फासला पैदा हो गया। इसी कारण 2014 के लोकसभा चुनावों में अजित सिंह व उनके बेटे जयंत चैधरी चुनाव हार गए।

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में भी रालोद का सूपड़ा साफ हो गया।महागठबंधन पर टिकी है आसरालोद मुखिया की अपना राजनीतिक अस्तित्व कायम रखने की आस बसपा, बसपा और कांग्रेस के संभावित महागठबंधन पर टिकी है। इसके सहारे ही वह अपनी नैया 2019 के लोकसभा चुनावों में पार कराने का सपना देख रहे हैं। अजित की इस मंशा पर सपा से टूटकर सेक्युलर मोर्चा बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव ने पानी फेर दिया है, साथ ही बसपा प्रमुख मायावती की गठबंधन से बेरूखी ने भी चिंतित कर दिया है।

मायावती द्वारा बार-बार गठबंधन को लेकर की जा रही बयानबाजी से संभावित महागठबंधन खतरे में दिखाई दे रहा है। गठबंधन होने पर अजित को खुद के जाट, मुस्लिम और दलित वोटरों के सहारे चुनाव जीतने की उम्मीद है। अकेले दम पर वह भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है।जाटों को साधने के लिए कार्यक्रमरालोद मुखिया अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चैधरी ने जाट वोटरों को अपने पाले में करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हुए हैं। कभी पद्यात्रा को कभी जनसंवाद और जनसभाओं के जरिए रालोद नेता जनसंपर्क अभियान चलाए हुए हैं। उनकी मंशा 2019 के लोकसभा चुनावों में परंपरागत जाट वोटरों को रालोद के पक्ष में लाने की है। 

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