भाजपा 2014 और सपा उपचुनाव के नतीजे दोहराने की कोशिश में
-छोटे लोहिया ने कांग्रेस का फूलपुर सीट से खत्म किया दबदबा -2014 में पहली बार फूलपुर से खिला कमल
प्रयागराज। लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी दल जहां एक-एक सीट पर जीत के लिए अपनी रणनीति को सफल बनाने में जुटे हुए हैं, वहीं फूलपुर संसदीय क्षेत्र पर सबकी नजरें गढ़ी हैं। कभी कांग्रेस का अभेद किला मानी जाने वाली इस संसदीय सीट पर धीरे-धीरे पार्टी का प्रभुत्व खत्म होता चला गया। उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की लेकिन इस बार भाजपा 2014 का इतिहास दोहराने की पूरी कोशिश में है।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र होने के कारण फूलपुर को कभी बेहद महत्वपूर्ण लोकसभा सीट माना जाता था। 1984 तक कांग्रेस का यहां दबदबा रहा। लेकिन जनता की उपेक्षा के चलते बाद में यह संसदीय सीट गैर कांग्रेसी पार्टी के पास चली गई।
इस संसदीय सीट से तीन बार 1952, 1957 और 1962 में पंडित जवाहरलाल नेहरू सांसद रहे। उनके विजय रथ को रोकने के लिए 1962 में प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने स्वयं यहां से चुनाव लड़ा। हालांकि वह जीत नहीं पाए।
1964 में नेहरू के निधन के बाद उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित सांसद चुनी गई। 1967 में भी वह सांसद चुनी गई लेकिन संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद 1969 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उपचुनाव हुआ, जिसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिलदेव मालवीय कांग्रेस के प्रत्याशी थे। उनके खिलाफ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने छोटे लोहिया कहे जाने वाले जनेश्वर मिश्र को मैदान में उतारा। इस चुनाव में जनेश्वर मिश्र ने कांग्रेस को पटखनी दी और सांसद चुने गए।
इसके बाद 1971 में यहां से पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए। आपातकाल के दौर में 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने यहां से रामपूजन पटेल को उतारा लेकिन जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने यहां से जीत हासिल की। बाद में कमला बहुगुणा ख़ुद कांग्रेस में शामिल हो गईं। 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो इस सीट से लोकदल के उम्मीदवार प्रफेसर बी.डी.सिंह ने जीत दर्ज की।
1984 में हुए चुनाव कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने इस सीट को जीतकर एक बार फिर इस सीट को कांग्रेस के हवाले किया। लेकिन कांग्रेस से जीतने के बाद रामपूजन पटेल जनता दल में शामिल हो गए। 1989 और 1991 का चुनाव रामपूजन पटेल ने जनता दल के टिकट पर ही जीता। 1996 से 2004 के बीच हुए चार लोकसभा चुनावों में यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीतते रहे। दो बार जंगबहादुर पटेल सपा से सांसद रहे और इसके बाद सपा से ही धर्मराज पटेल भी दो बार सांसद चुने गए। इसके बाद सपा ने धर्मराज का टिकट काटकर 2004 में बाहुबली अतीक अहमद को अपना प्रत्याशी बनाया और वह भी विजयी हुए।
अतीक अहमद के बाद 2009 में पहली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने भी जीत हासिल की। दरअसल तब तक प्रदेश की राजनीति में बसपा काफी मजबूत हो चुकी थी और इस दौरान बसपा के विधायक राजूपाल की हत्या के बाद स्थानीय समीकरण तेजी से बदले। इस हत्याकांड में घिरे अतीक अहमद की वजह से फूलपुर क्षेत्र की जनता सपा से नाराज हो गई। ऐसी स्थित में बसपा ने कपिल मुनि करवरिया को 2009 में यहां अपना प्रत्याशी बनाया और वह विजयी हुए। बसपा के लिए यह जीत इसलिए बेहद खास थी क्योंकि उसकी पार्टी के संस्थापक कांशीराम स्वयं यहां से चुनाव हार चुके थे।
इसके बाद 2014 में फूलपुर की जनता ने केशव प्रसाद मौर्य को अपना सांसद बनाया। मोदी लहर में भाजपा ने पहली बार भारी मतों से फूलपुर संसदीय सीट पर जीत हासिल की। बाद में विधानसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद केशव मौर्य प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए गए। इस वजह से उन्हे अपनी संसदीय सीट छोड़नी पड़ी। इसके बाद हुए उपचुनाव में बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा और समाजवादी पार्टी ने भाजपा से ये सीट छीन कर बड़ी जीत दर्ज की। सपा उम्मीदवार नागेंद्र पटेल भाजपा उम्मीदवार कौशलेंद्र पटेल को हराकर लोकसभा पहुंचे। भाजपा की इस हार के पीछे बाहरी उम्मीदवार को टिकट देना बड़ा कारण माना गया। इसके बाद से ही भाजपा ने मिशन 2019 के तहत इस सीट पर जीत के लिए कमर कसी। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि इस बार हर हाल में यहां से पार्टी का उम्मीदवार जीत दर्ज करेगा। वहीं गठबंधन में यह सीट सपा के हिस्से में आयी और पार्टी उपचुनाव का रिकार्ड दोहराने की कोशिश में है।