बेतवा केन लिंक परियोजना लेगी 21 लाख 10 हजार हेक्टेयर में फैले पेड़ों की बलि

Update: 2021-06-14 18:17 GMT

सागर/श्याम चौरसिया। बुंदेलखंड के कंठ तर करने के लिए प्रस्तावित हजारो करोड़ लागत की भारत की पहली बेतवा केन लिंक परियोजना विकास की बहुत बड़ी ओर बहुमूल्य कीमत चुकायेगी। कुछ पर्यावरण विदों ने परियोजना को प्राकृतिक भूगोलिक,संरचना के लिए गम्भीर खतरा बताया। मगर सदियों से बून्द बून्द पानी के लिए जंग करते आ रहे बुंदेलखंड के तारण के लिए इसके सिवा अन्य कोई विकल्प भी नही दिखता।

जल स्तर के गोते लगा जाने से जनवरी आते आते कुए, बाबड़िया,हैंड पम्प, नलकूप टें बोलने लगते। मॉर्च में तो दमोह, पन्ना, हमीरपुर, बांधा में मुहवाद, आपसी विवाद के अप्रिय नजारे आम है। सिंचाई साधनों के अभाव में खेती की दशा भी अच्छी नही है। रोजगार के लिए पलायन बड़ी समस्या है। आर्थिक रूप से कमजोर तबके को शासन यदि विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बूते न पालें तो भुखमरी का तांडव देखा जा सकता है। मानव तस्करी की भी खबरें चौकाती हैं। क्रय शक्ति कमजोर होने की वजह से अपराध भी अपेक्षाकृत अधिक होते है।

यदि उतर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का बंटवारा कर दिया जाता है तो बुंदेलखंड एक अलग राज्य के रूप में उभर सकता है। राजनीतिक और प्रशासनिक पेंचों की वजह से ये अभी दूर की कौड़ी माना जा सकता है। ये तो तय हो चुका है कि बेतवा केन से संगम करेगी। करने से पहले वह 03 सो km लंबे भूभाग के 21 लाख 10 हजार हेक्टेयर में फैले पेड़ों की बलि लेगी। छतरपुर के बकतरा हीरा खदान भी करीब 10 हेक्टर वनों पर आरी चलवाने की जुगत में है। वनों को बचाने के लिए छतरपुर में विरोध चालू हो चुका है। विरोध ने हीरा खदान ठेकेदार के फाख्ता उड़ा रखे है।

बेतवा-केन संगम की बलि चढ़ने वाले वनों को बचाने के लिए भी देर सबेर कही की मेघा पाटकर मैदान में उतर आए। मगर सरदार सरोवर ओर नर्मदा बेसिन की इंद्रा सागर सहित 06 अन्य परियोजनाओं से आई आर्थिक सम्रद्धि ओर खेती की कायाकल्प के सुनहरी अनुभव ओर यथार्थ विभोर कर देता है।

किसी काल मे निमाड़ के खरगोन, खंडवा,धार,बड़वानी, अलीराजपुर,झाबुआ की गत भी बुंदेलखंड से 19 नही थी। लेकिन नर्मदा बेसिन के जलाशयों, सरदार सरोवर ने तकदीर तस्वीर बदल दी। क्रय शक्ति ने ऐसी छलांग लगाई की अब आदिवासियों के फलियों में भी महंगे इलेक्टानिक उपकरणों, वाहनों ने डेरा डाल लिया। पलायन अब 40% रह गया। घुमन्तु जीवन की रफ्तार धीमी पड़ी। आज की पीढ़ी बेहत्तर शिक्षा हासिल कर रही है। प्रतियोगी परीक्षाओं में बाजी भी मार रहे है। ये दर्शन बुंदेलखंड के लिए सबक हो सकता है।

बुंदेलखंड की सबसे बड़ी जरूरत कृषि उत्पादन को राष्ट्रीय औसत तक लाना है। पेयजल के लिए होते अप्रिय संग्राम ओर आर्थिक अपराधों से मुक्ति पाना है। इसके लिए चाहिए भरपूर पानी। और ये दुर्लभ पानी सिर्फ बेतवा का केन से संगम ही सुलभ करवा सकता है। यदि 2003 में ही परियोजना पर अमल हो जाता तो विकास का शिखर 18 साल पीछे न जाता। 2004 में मनमोहन सिंह सरकार ने परियोजना को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया। हवाला खाली खजाने का देते हुए कहा था- रुपये पेड़ पर नही लगते। पर पिछले 18 सालों में बेतवा में बही अथाह जलराशि ने रुपयों के पेड़ लगा दिए।


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