विश्वकर्मा के श्राप से गांव में नही होते प्रसव

Update: 2021-07-30 09:03 GMT

कुरावर/श्याम चौरसिया। सेटेलाइट ओर संचार क्रांति के युग मे ग्राम साका श्याम जी मे प्रसव न होना, गले नही उतर सकता है। चमत्कार ओर हैरतंगेज है कि प्रसव के लिए प्रसूता को गांव के बाहर बने लेबर रूम में या फिर अन्यत्र ले जाना पड़ता है। लेबर रूम जब बना नही था। तब गांव के बाहर बेल गाड़ी या ट्रेक्टर में दाई प्रसव कराती थी।

इस चमत्कारी अनहोनी की तह में ग्रामीण विश्वकर्मा के श्राप को बताते हुए कहते है कि देवता जब मंदिर का निर्माण कर रहे थे तब किसी प्रसूता के रुदन से शिल्पियों का ध्यान भंग हो गया। वे कुपित हो मंदिर का अधबना छोड़ ओर गाँव मे भविष्य में प्रसव न होने का श्राप देकर चलते बने। नतीजन सदियों से गांव में प्रसव नही हुए। किसी ने श्राप को चुनोती देते हुए प्रसव कराने की चेष्टा की तो न तो प्रसूता बची ओर न परिवार।

किवदंती है। श्याम जी का मंदिर का निर्माण देवताओं ने सिर्फ 01 रात में किया। भारत के अनेक मंदिरों के बारे में ये किवदन्तियां प्रचलित है। विदिशा के गंज बासौदा के पास उदयपुरा के मंदिर के बारे में यही मान्यता है। ज्योतिष और नक्षत्र के ज्ञाताओं के अनुसार प्राचीन काल मे मंदिरों का निर्माण पुष्प नक्षत्र में ही किया जाता था।नक्षत्र 27 दिनों में बदलते है। यानी 26 दिनों तक शिल्पी लगन के साथ पत्थरो की घड़ाई करते थे। पवित्र पुष्प नक्षत्र में उन पत्थरो को चुन देते थे। 24 पुष्प नक्षत्रों को एक दिन-रात मॉन लिया जाता था।12 नक्षत्रों को 01 रात।जाहिर।ये मंदिर बनाम छत्री का निर्माण 12 पुष्प नक्षत्रों में सम्पन्न हुआ होगा।

एतिहासिक किवदंती अलग है। वैदिक युगीन कोटरा के राजा श्याम सिंह मुगलों से लोहा लेते समय खेत रहे। मुगलों के कोप से बचने के लिए रानी ने गुर्जरों के ग्राम साका में शरण ली।रानी ने पति श्याम सिंह की स्मृति में भव्य,दिव्य,कलात्मक विशाल छत्री का निर्माण करवाया। छत्री के गर्भ गृह से लेकर शिखर तक ओर चारो तरफ पौराणिक ओर धार्मिक दंत कथाओं के कलात्मक शिल्प बने/सजे है।ये शिल्प अपने आप मे ज्ञान का भंडार है।विश्व विद्यालय है। इसे देखने के लिए देश, विदेश से सैकड़ों सैलानी रोज आते है। छत्री का सरक्षण किया जा रहा है।

मुगलों से युद्ध के निशान कोटरा के पास की पहाड़ी पर पचासों कब्र के रूप में देखे जा सकते है। इसी पहाड़ी पर एक दरगाह बनी हुई है। कहते है। युद्ध मे मुगलों का सरदार भी खेत रहा था। मुगलों ने देवस्थान को तोड़ उसे दरगाह में बदल दिया। सम्रद्ध कोटरों को मुगलों ने लूट लिया। कालांतर में एक इतिहासिक सम्रद्ध नगर नूर हीन, संभावना विहीन गाँव मे बदल, समय पर बोझ बन गया।

ग्राम साका श्याम जी राजमार्ग जबलपुर से महज 04 किलोमीटर, भोपाल से 70, नरसिंहगढ़ से 14, कुरावर से 12 किलोमीटर दूर है।


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