पत्थर वाला अस्पताल: पहले लगती थी लाइनें, अब हुआ वीरान
किसी पुरानी हवेली जैसे हुए हालात, घुसने में भी लगता है डर
ग्वालियर, न.सं.। लाखों लोगों को जीवन देने वाला अंचल का सबसे पुराना जयारोग्य अस्पताल का पत्थर वाले अस्पताल के नाम से प्रशिद्ध भवन का सूनसान हो गया है। 123 वर्ष पूराने पत्थर वाले भवन में पहले जहां मरीज भर्ती होने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते थे। अब वहां वीरानी सी छा गई है। आज उस भवन में घुसने में भी सामान्य व्यक्ति को भी भय लगने लगा है। इसका कारण यह है कि पत्थर वाले भवन में संचालित विभागों को नवनिर्मित एक हजार बिस्तर का अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया है।इस ऐतिहासिक भवन की सौंदर्यता देखने लायक है। पत्थरों से मिलकर बना इस भवन की दीवारें आज भी मजबूती के साथ खड़ी है और उसक गगन चुंबी इमारत मानो हवाओं से बात करती हो।
दरअसल मरीजों के बढ़ते भार को देखते हुए पॉटरीज की जमीन पर नवनिर्मित एक हजार बिस्तर के अस्पताल को शुरू कर दिया गया है। उक्त अस्पताल के शुरू होने से पत्थर वाले भवन में संचालित मेडिसिन, सर्जरी, आर्थोपेडिक, ईएनटी व चर्म रोग विभाग को भी नए अस्पताल में स्थानांतरित किया जा चुका है। इसलिए अब जयारोग्य का सबसे पुराना भवन पूरी तरह खाली हो चुका है और भवन के कई हिस्सों में ताले भी लटका दिए गए हैं। जबकि उक्त भवन में एक माह पूर्व तक मरीजों व उनके परिजनों की 24 घंटे चहल पहल बनी रहती थी। इसके अलावा यहां 24 घंटे चिकित्सक भी मौजूद रहते थे। लेकिन अब यहां के वार्डों की स्थिति देख लोगों को डर लगाता है। क्योंकि वार्डों में चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। अब यहां मरीजों व उनके परिजनों की चहल पहल होने की जगह कबूतरों की आवाजे सुनाई देती हैं। ऐसे में अब इस खाली भवन में लोग अंदर जाने से भी डरने लगे हैं।
1883 में रखी गई थी नींव, 50 पलंग से हुई थी शुरूआत
सिंधिया राजवंश द्वारा सन 1883 में शहर में एक साथ तीन भवनों की नींव रखी गई थी। इसमें पत्थर वाले भवन के सहित एमएलबी महाविद्यालय एवं विक्टोरिया मार्केट का भवन शामिल है। इसमें पत्थर वाला भवन 1889 में बनकर तैयार हो गया था। पहले यह जिला अस्पताल था जिसे 1889 में जयारोग्य चिकित्सालय नाम दिया गया। जयारोग्य के पूर्व अधीक्षक डॉ. एसएम तिवारी ने बताया कि प्रारंभ में यह अस्पताल 50 बिस्तर का था। वर्तमान में जिन आवासों में चिकित्सक रहते हैं वे मरीजों के रहने के लिए प्राइवेट रूम हुआ करते थे। 1946 में गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय धोबी घाट पर प्रारंभ हुआ था। 1948 में जीआरएमसी का भवन बनकर तैयार हुआ था, जिसका उद्घाटन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था। केआरएच का 1954 प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने किया था। जिसके बाद अस्पताल के विभिन्न विभागों का विस्तार होता गया।
1962 में हुआ था माधव डिस्पेंसरी का शुभारम्भ
सन 1962 से पूर्व जयारोग्य में पहुंचने वाले मरीजों की ओपीडी माधव डिस्पेंसरी अस्पताल के सामने स्थित क्षय रोग अस्पताल में संचालित की जाती थी, जिसे कटोरा अस्पताल में नाम से भी जाना जाता था। जहां वर्तमान में एमडीआर टीबी अस्पताल संचालित किया जा रहा है। लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या और अस्पताल के विस्तार को देखते हुए सन 1962 में माधव डिस्पेंसरी का शुभारम्भ किया गया, जहां अभी तक जयारोग्य के अधिकांश विभागों की ओपीडी संचालित की जाती थी। लेकिन एक हजार बिस्तर के अस्पताल में ओपीडी स्थानांतरित होने से माधव डिस्पेंसरी भी खाली हो गई है।
तीन तल के भवन में 300 पलंगों की क्षमता
पत्थर वाले भवन में तीन तल है, जिसमें 300 वर्तमान में पलंगों भी क्षमता है। इसमें भूतल तल पर मेडिसिन व ईएनटी, प्रथम तल पर सर्जरी एवं द्वितीय तल पर हड्डी रोग विभाग संचालित हुआ करता था। लेकिन मरीजों की संख्या अधिक होने के कारण यहां अतिरिक्त पलंगा भी लगाए गए थे, जो भी मरीजों के लिए कम पडऩे लगे थे।
संग्राहलय बनाने की मांग
ऐतिहासिक पत्थर वाले भवन में संग्राहलय बनाए जाने की मांग की जा रही है। जिससे गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय में पढऩे वाले विद्यार्थियों को यहां के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल सके और जयारोग्य अस्पताल का गौरवशाली इतिहास पढऩे व देखने को मिलेगा। गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय से सेवा निवृत्त डॉ. एस. माकीझा का कहना है कि इस भवन में संग्राहलय बनाना चाहिए। साथ ही संग्राहलय में पुराने समय के उपकरणों को रखना भी चाहिए, जिससे विद्यार्थी इतिहास को समझ सकें।
विक्टोरिया की तरह सवारना चाहिए भवन
जयारोग्य के पूर्व अधीक्षक डॉ. एसएम तिवारी का कहना है कि पत्थर वाले भवन को बाडा पर स्थित विक्टोरिया मार्केट के भवन को सवारना चाहिए। जिससे यहां आने वाले लोग भवन के इतिहास को जान सकें।