वृंदावनी सारंग ने मंच पर प्रकट किए स्वामी हरिदास के श्यामा-श्याम
ब्रजभूषण गोस्वामी की आलापचारी ने श्रोताओं के चित्त को कर दिया प्रमुदित
ग्वालियर। शिष्य तानसेन के बाद गुरू स्वामी हरिदासजी के पद से गुरूवार को तानसेन समारोह की प्रात:कालीन संगीत सभा में श्रोताओं ने प्रियाप्रियतम की अंगमाधुरी और मुखचंद्र छटा की एकरसता का अनुभव ध्रुपद गायन में किया। नई दिल्ली से आए देश के प्रख्यात ध्रुपद गायक पं. ब्रजभूषण गोस्वामी ने मंच पर बैठते ही मध्यान के राग 'सामंत सारंग' में आलाप लेना शुरू किया। काफी थाट के इस राग में क्रियाघन और सम्पुट को केंद्र में रखकर जैसे—जैसे 'नोम तोम' की बढ़त होती गयी, वैसे—वैसे श्रोताओं के नेत्रबंद होते गए। गमक के साथ दुगुन, चौगुन, अठगुन और आढ़ के साथ ब्रजभूषण की आलापचारी ने श्रोताओं के चित्त को प्रमुदित कर दिया।
'गंधार' और 'धैवत' के साथ जिस तरह से ब्रजभूषण ने आलापचारी के अंत में दोनों 'निषादों' का प्रयोग किया, उससे उनकी संगीत साधना और गुरूकृपा दोनों स्पष्ट दिखायी दी। आलाप के बाद अब बारी थी शब्द रचना की। ब्रजभूषण के साथ पखावज पर साथ देने के लिए मंच पर प्रख्यात पखावजी अखिलेश गुंदेचा ने पखावज मिलायी और ब्रजभूषण ने चौताल में शुरू की तानसेन की रचना 'आज मेरे भाग जागे, प्रिय भोर ही सुध लई'। स्थायी, अन्तरा, संचारी और आभोग के साथ चार, छह और आठ मात्रा से उठी तिहाईयों ने श्रोताओं को प्रत्येक सम पर ताली बजाने को मजबूर कर दिया। इसके बाद ब्रजभूषण ने 'राग वृंदावनी सारंग' में तानसेन के गुरू श्रीस्वामी हरिदास जी के पद 'श्रीराधा दुलारी मान तज, प्राण पायो जात है री मेरी सज' सुनाकर मंच पर वृंदावन रस प्रकट कर दिया। पद में जहां 'प रे म रे' का सुंदर स्पर्श था तो वहीं अखिलेश गुंदेचा ने 'सूलताल' में दमदार तिहाईयों का प्रयोग कर जोरदार संगत की।