खसरे को देवी के प्रकोप से न जोड़े, बचने के लिए आवश्यक कराएं टीकाकरण

जिले में इस वर्ष सामने आए 38 सम्भावित मरीज

Update: 2023-03-16 00:30 GMT

ग्वालियर, न.सं.। खसरा पर जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 16 मार्च को खसरा टीकाकरण दिवस आयोजित किया जाता है। खसरा एक अत्यधिक संक्रामक वायरल बीमारी है, जो ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करती है। लेकिन कई लोग इस रोग को देवी का प्रकोप समझ कर उपचार नहीं लेते। जबकि यह एक वैक्सीन से रोके जाने वाली 12 बीमारियों में से सबसे अधिक घातक वायरस जनित बीमारी है। यही कारण है कि जिले में इस वर्ष खसरा सम्भावित 38 मरीज सामने आए हैं, जिनकी जांच कराई जा रही है। इसके अलावा इस वर्ष खसरा के दो एवं रूबेला के दो पुष्ट मरीज भी सामने आ चुके हैं।

जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. आर.के. गुप्ता का कहना है कि केन्द्र सरकार ने दिसम्बर 2023 तक खसरा मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसलिए खसरे की बीमारी को खत्म करने के लिए 95 प्रतिशत टीकाकरण आवश्यक है। जिले की बात करें तो वर्तमान में पहला टीका 107 और दूसरा टीका 105 प्रतिशत बच्चों को लगाया जा चुका है। ऐसा इसलिए कि पहला टीका 9 माह एवं दूसरा टीका 16 माह में लगाया जाता है। लेकिन कई बच्चों के परिजन खसरे का टीका 16 माह के बाद ही लगवाते हैं, इसलिए यह प्रतिशत ज्यादा है।

2019 में आया था एमआर का टीका

डॉ. गुप्ता ने बताया कि खसरे की बीमारी के लिए भारत में सबसे पहले 19 नवम्बर 1985 में खसरे का टीका लगाया था। लेकिन उक्त टीके में 15 जनवरी 2019 में संसोधित करते हुए एमआर का टीका टीकाकरण अभियान में शामिल किया गया। एमआर टीके से खसरा के अलावा रूबेला से भी बचाव किया जा सकता है।

खसरा कैसे फैलता है

खसरा एक वायरस के कारण होता है, जो एक संक्रमित बच्चे या वयस्क के नाक और गले में उत्पन्न होता है, इसमें अत्यधिक संक्रामक होने की संभावना होती है। इसका मतलब है कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या बात करने पर हवा में बूंदें फैलती हैं। नतीजतन, जब अन्य लोग उन्हें सांस लेते हैं, तो वे संक्रमित हो सकते हैं।

यह हैं खसरे के लक्षण

यह एक फ्लू का स्ट्रेन है, इसके लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं जिसमें तेज बुखार, थकान, गंभीर खांसी, लाल या खून वाली आंखें, और नाक बहना शामिल हैं। खसरा भी शरीर पर लाल चकत्ते पैदा कर सकता है, जो सिर से शुरू होता है और फिर शरीर के अन्य भागों में चला जाता है।

मार्च-अप्रैल व सितम्बर-अक्टूबर में फैलने की होती है सम्भावना

गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय के बाल एवं शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अजय गौड़ का कहना है कि मार्च-अप्रैल एवं सितम्बर-अक्टूबर के समय मौसम में परिवर्तन होता है। जिस कारण संक्रमित बीमारियों भी इसी समय फैलती हैं। इन दिनों माता के दिन भी होते हैं। इसलिए लोगों ने खसरे की बीमारी को देवी का प्रकोप समझ कर उपचार नहीं कराते। लेकिन इस बीमारी का बचाव एक मात्र टीका ही है। इसलिए उक्त बीमारी से बचने के लिए बच्चों को एमआर का टीका जरूर लगवाएं।

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