ठेकेदारों और अधिकारियों की जुगलबंदी, 84 करोड़ का ईपीएफ घोटाला
प्रधानमंत्री कार्यालय से शिकायत करने के बाद अब सीबीआई जांच की मांग
ग्वालियर,न.सं.। इन दिनों नगर निगम के अधिकारी किसी न किसी मामले में जांच के घेरे में दिखाई दे रहे है। नगर निगम में आउटसोर्स कर्मचारियों की फर्जी भर्ती के मामले में कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों के नाम सामने आ रहे है। लेकिन अधिकारियों पर कार्रवाई न करते हुए कर्मचारियों पर गाज गिराई जा रही है। आउटसोर्स कर्मचारियों की फर्जी भर्ती का मामला अभी थमा भी नहीं है कि एक बार फिर से ठेकेदारों और अधिकारियों की जुगलबंदी से नगर निगम में ठेके पर काम करने वाले 1398 कर्मचारियों के ईपीएफ का 84 करोड़ के घोटाला का मामला फिर से सामने आया है। हालांकि यह मामला वर्ष 2020 से चला आ रहा है, लेकिन आउटसोर्स कर्मचारियों की फर्जी भर्ती के साथ अब इस मामले ने भी तूल पकड़ लिया है। इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय तक शिकायत की गई और एक पत्र भी प्रधानमंत्री कार्यालय से आया था। लेकिन दो साल से अधिक समय बीतने के बावजूद अब तक न तो ठेका लेने वाली कपंनियों पर कार्यवाही की गई और न ही भुगतान करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई एक्शन लिया गया।
देश की विभिन्न फैक्ट्री एवं संस्थानों में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को भविष्य निधि(ईपीएफ) के रूप में पैसा काटा जाता है। इसमें वेतन की13.5 प्रतिशत राशि कर्मचारी के वेतन से एवं इतना ही पैसा ठेकेदार द्वारा ईपीएफ फण्ड में जमा कराया जाता है। यह पैसा इसलिए जमा कराया जाता है ताकि किसी भी विपदा एवं आपत्ति में कर्मचारी पैसा निकालकर अपना काम चला सके। नगर निगम में कलेक्ट्रेट दर पर कर्मचारी रखे गए हैं। इसमें कुशल, अकुशल का अलग-अलग वेतन है। इन कर्मचारियों का लगभग एक हजार रुपय महीना वेतन से कटता है और इतनी ही राशि ठेकेदार को ईपीएफ में जमा करनी होती है। दो हजार रुपए महीना एक कर्मचारी का ईपीएफ होता है जो 24 हजार रुपये एक साल का हो जाता है।
राज सिक्योरिटी ने बताई थी 531 कर्मचारियों की संख्या
लोकसूचना के अंतर्गत प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर एंव ईपीएफ आयुक्त के पत्र क्रमांक/भनि /क्षेका/भोपाल/प्रवर्तन/सी-6/मप्र/13748/8492 3 फरवरी 2020 के अनुसार राजसिक्योरिटी के द्वारा नगर निगम में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों की संख्या 531बताई गई थी जिनकी यूएन आई डी 5 मार्च 2019 को बनाई गई थी जिनका ईपीएफ ईएस आई का पैसा पचास लाख रुपए जमा कराया गया था। जबकि नगर निगम ग्वालियर में 1882 आउटसोर्स कर्मचारियों का वेतन दिसंबर 2016 से निकाली जा रहा था।
तत्कालीन आयुक्त ने 300 कर्मचारियों को निकाला था
इस मामले में जब स्वयंसेवक अधिकारी कर्मचारी संघ मध्यप्रदेश ने शिकायत की तो फरवरी माह में 2020 में निगम में शिविर लगाकर यूएन आई डी बनवाई गई थी जिसमें राजसिक्योरिटीद्वारा बकाया कर्मचारियों की नियुक्ति जनवरी 2020बताकर यूएन आईडी बनाकर ईपीएफ का पैसा जमा कराया गया। फर्जी भर्ती घोटाले को छुपाने व ईपीएफ घोटाले को छुपाने के लिए तत्कालीन आयुक्त संदीप माकिन द्वारा लगभग 300 आउटसोर्स कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया था, उनकी जगहा नई भर्ती करके यूएन आई डी बनाई गई।
220 कर्मचारियों की नहीं बनी यूएनआईडी
अभी भी लगभग 220 कर्मचारियों की यूएन आईडी नहीं बनाई गई है न ही ईपीएफ ईएसआई का पैसा जमा कराया गया है। इस मामले में जब शिकायत की गई तो आनन फानन में दिखाने के लिए समिति गठित की गई। जिसको एक माह में अपना प्रतिवेदन देना था लेकिन निगम अधिकारियों के द्वारा मिली भगत करके कंपनी को फायदा पहुंचाने एंव फर्जी भर्ती घोटाला छुपाने के लिए सिर्फ बकाया कर्मचारियों की यूएनआईडी बनाकर नगर निगम के ईपीएफ के नाम पर फर्जी भुगतान लिया गया है
कर्मचारियों के खाते से पैसा काटा
2016से वर्तमान तक ईपीएफ ईएस आई के नाम पर 42करोड़ रुपये नगर निगम से कंपनी के द्वारा प्राप्त किए गए है। निगम कर्मचारियों के खाते से भी पैसा काटा गया लेकिन जमा नही कराया गया है। लगभग 84 करोड़ रुपये ईपीएफ के जमा करने है दूसरी तरफ दिसंबर 2016 से जनवरी 2020 तक 1398 कर्मचारियो के नाम पर लगभग 11184000 रुपये का फर्जी वेतन निकाला गया है। जो ऑन रिकॉर्ड है।
इस पूरे घोटालो को खुलवाने के लिए हम शीघ्र उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे है। यह पूरा घोटाला व्यापम से भी बड़ा है। हम इस घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर हे है।
विष्णुदत्त शर्मा
प्रदेश महामंत्री
स्वयंसेवक अधिकारी कर्मचारी संघ