कोरोना ने छीनी खुशी तो बनी आत्मनिर्भर, 25 हजार दीदीयां स्वरोजगार से चला रहीं परिवार

कपड़ा उद्योग, सिलाई, कैंटीन, ऑनलाइन डिलीवरी, घर का उपयोगी समान कर रहीं तैयार

Update: 2020-10-05 01:00 GMT

ग्वालियर, न.सं.। अदृश्य  कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिला दिया। लाखों लोगों की जिंदगी लीलने के साथ ही इस महामारी ने कई लोगों को शारीरिक, मानसिक व्याधियों के साथ-साथ रोजी-रोटी पर भी ताले डाल दिए। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों के सामने सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया जो दो वक्त की कमाई कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। रोजगार छिनने के बाद घर में चूल्हा-चौका तक सीमित रहने वाली महिलाओं व थोड़ा-बहुत पढ़ी-लिखी दीदीयों को जिला पंचायत ने आत्मनिर्भर बनाने के भागीरथी प्रयास शुरू किए। यहीं से शुरू हुआ जीवन में खुशहाली लाने के लिए अविरलधारा का वह प्रवाह जो आज जिले की करीब 25 हजार दीदीयों को आत्मनिर्भर बनाया। आज यह दीदीयों स्वयं का रोजगार स्थापित कर पूरे परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। इससे लोगों की जिंदगी में पुन: खुशियां लौट आई है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्व सहायता समूहों की महिलाओं को अलग-अलग विधाओं में जिला पंचायत आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है। अलग-अलग पंचायतों में महिलाओं के कामकाज और उनके कौशल को देखते हुए एनआरएलएम के तहत उन्हें सहयोग दिया जाता है और स्व सहायता समूह बनाकर काम शुरू भी करा दिया जाता है। जिले में अलग-अलग विधाओं में खानपान, कपड़ा उद्योग, सिलाई, कैंटीन, ऑनलाइन डिलीवरी, घर का उपयोगी समान तैयार करना, गणवेश सिलाई से लेकर एनआरएलएम में स्व सहायता समूहों की यह महिलाएं पारंगत होकर आत्मनिर्भर हो गई हैं। यह दीदीयां जिलाधीश कार्यालय, जिला पंचायत की कैंटीन, ऑनलाइन सब्जी फल सप्लाई सर्व एप, गणवेश सिलाई, कड़कनाथ पालन, मशरूम उत्पादन आदि कार्य कर रही हैं। जिले में 25 हजार से ज्यादा दीदी कार्यरत हैं, जो अलग-अलग विधाओं में काम कर रही हैं। एनआरएलएम के माध्यम से यह अब साहूकारों के चक्कर से भी बच गई हैं और समूह की आय से ही खुद के कार्य के लिए राशि मिल जाती है।

होटल मैनेजमेंट में किया जाएगा दक्ष

स्वसहायता समूहों की इन दीदीयों को होटल मैनेजमेंट के गुर भी सिखाने की तैयारी जिला पंचायत ने की है। खानपान में हुनर रखने वाली महिलाओं को विश्वस्तरीय कैपे की बारीकियां सिखाई जाएंगी। इसके लिए होटल मैनेजमेंट के सबसे प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट (आईएचएम) से स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को जिला पंचायत पाठ्यक्रम कराएगा। यह सीमित अवधि के कोर्स होंगे, जिसमें पूरा प्लान जिला पंचायत का होगा। 30-30 के बैच पहले शुरू कराए जा रहे हैं और इसके बाद रोटेशन बना दिया जाएगा। यह महिलाएं कोर्स करने के बाद खुद उच्च स्तरीय रेस्त्रां-कैफे की शुरुआत करेंगी।

ऑनलाइन ऐप को बनाया हथियार, लोगों तक पहुंचाया सामान

कोरोना काल में महिलाएं सबसे अधिक आत्मनिर्भर बनी हैं। इन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जिला पंचायत ने भी महती भूमिका निभाई। महिलाओं को स्व सहायता समूहों से जोड़ा और महिलाओं ने कोरोना संक्रमण काल में दो लाख से ज्यादा मास्क बनाकर उपलब्ध कराया। जिला पंचायत के माध्यम से इन मास्कों को अलग-अलग विभाग और बाजार में भी भेजा गया है। इसके अलावा सर्व ऐप यानि कोरोना संक्रमण के समय में ऑनलाइन फल सब्जी से लेकर अन्य सामान उपलब्ध कराने के इस जिला पंचायत के ऐप का प्रयोग सफल हुआ और इसे भी दीदी की टीम ने ही चलाकर दिखाया।

कड़कनाथ से कड़क कमाई, खुशहाल हुई जिंदगी

स्व-सहायता समूहों से जुड़ीं डबरा के ग्राम सिरोल की महिलाओं की अतिरिक्त आमदनी कड़कनाथ से बढ़ गई है। गांव की सहरिया जनजाति की महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने स्व-सहायता समूहों से जोड़कर कड़कनाथ मुर्गी पालन का काम शुरू कराया। शुरुआत में इस गांव की 58 सहरिया महिलाओं को स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय एवं पशुपालन विभाग के जरिए कड़कनाथ के 40-40 चूजे दिलाए गए थे। चूजे जब बड़े होकर कड़कनाथ मुर्गा बने तो हर मुर्गा 800 से लेकर 1000 रुपए तक बिका। मिशन के तहत बाद में हर महिला को 100-100 चूजे मुहैया कराए गए। हर महिला को कुछ ही महीनों में 30 से 40 हजार रुपए की अतिरिक्त आमदनी हो रही है। सिरोल के लक्ष्मीबाई स्व-सहायता समूह से जुड़ीं श्रीमती रामबाई आदिवासी बताती हैं कि हमने बेमन से 40 चूजे लिए थे। मुर्गी पालन के प्रति उनका पुराना अनुभव ठीक नहीं था। पर इस बार उनकी आशंका निर्मूल साबित हुई। वे कहती हैं कि हमारे चूजे छह से आठ महीने में ही बड़े हो गए। जब लोगों को पता चला तो हमारे घर पर कड़कनाथ मुर्गा व अंडे खरीदने के लिए लोगों की कतार लगने लगी। हमने 800 से 1000 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से मुर्गे बेचे। लॉकडाउन के समय तो लोग 2000 रुपए तक का मुर्गा खरीदकर ले गए। रामबाई की तरह गांव की अन्य 58 आदिवासी महिलाएं भी कड़कनाथ मुर्गीपालन से इतनी ही कमाई कर रही हैं। सिरोल गाँव से प्रेरित होकर जिले के घाटीगांव जनपद पंचायत के ग्राम बरई, नयागांव, घाटीगांव व सौजना, भितरवार के ग्राम सूरजपुर व फतेहपुर एवं जनपद पंचायत मुरार के ग्राम हस्तिनापुर में निवासरत आदिवासी महिलाओं को भी इस व्यवसाय से जोड़ा गया है।

इनका कहना है

जिले में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को अलग-अलग तरह का प्रशिक्षण दिया गया। बाद में वह स्वयं का काम कर परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। इन दीदीयों को आईएचएम द्वारा ट्रेनिंग कराने की योजना है, ताकि वह होटल मैनेजमेंट के गुर भी सीखे सकें। जिले में कड़कनाथ मुर्गी पालन में भी बहुत सी महिलाएं आत्मनिर्भर बनी हैं।

-शिवम वर्मा, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत

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