चंदेरी/ग्वालियर/वेबडेसक। मध्य प्रदेश में विंध्याचल पर्वत की श्रेणियों में बसे चंदेरी शहर इतिहास में शुरू से विख्यात रहा हैं कभी यह शहर महाभरत के किरदार राजा शिशुपाल की राजधानी के रूप में विख्यात रहा तो कालांतर में महान संगीतज्ञ बैजू बावरा के लिए जाना गया . बैजू बावरा का वास्तविक नाम पंडित बैजनाथ था, उनका जन्म साल 1542 में शरद पूर्णिमा की रात एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
बैजू बावरा को बचपन से गायन एवं संगीत का शौक था. बैजू का संगीत के प्रति प्रेम और रूचि उनकी उम्र के साथ बढ़ती चली गई उनके गले की मधुरता और गायन की चतुराई प्रभावशाली थी.बैजनाथ ध्रुपद में गायन की दीक्षा उस समय के मशहूर गुरु हरिदास स्वामी से वृंदावन में ग्रहण की थी। अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन,बैजू के गुरुभाई थे। बैजू राग दीपक गाकर तेल के दीप जला सकते थे, राग मेघ, मेघ मल्हार, या गौड़ मल्हार गाकर वर्षा करा सकते थे, राग बहार गाकर फूल खिला सकते थे और यहाँ तक कि राग मालकौंस गाकर पत्थर भी पिघला सकते थे।
बैजनाथ से बैजू बावरा बनने की कहानी
बचपन में बैजनाथ और बैजू के नाम से प्रसिद्ध इस संगीतज्ञ के बैजू बावरा बनने के पीछे इतिहासकार उनके प्रेम प्रसंग को मानते हैं। इतिहासकारो के अनुसार बैजू अपने ही शहर चंदेरी में रहने वाली एक लड़की कलावती से बचपन से प्रेम करते थे । कलावती बैजू की प्रेयसी होने के साथ साथ उनकी प्रेरणा स्रोत भी थीकला और बैजू का प्रेम प्रसंग जितना निश्छल, अद्वितीय एवं सुखद था, उसका अंत उतनी ही दुखद घटना से हुआ। कहा जाता है कि बैजू को अपने पिता के साथ तीर्थों के दर्शन के लिए चंदेरी से बाहर जाना पड़ा और उनका विछोह हो गया। वे बाद में भी नहीं मिले। उनकी प्रेम प्रसंग के इस अंत के बाद वह अपनी प्रेयसी के प्यार में पागल हो गए। इसी से लोग उन्हें बैजू बावरा कहने लगे।
मृगनयनी के संगीताचार्य
उस समय ग्वालियर के महाराज मानसिंह तोमर की रानी मृगनयनी अपनी सुंदरता के लिए सभी रजवाड़ो में जानी जाती थी उस रानी ने बैजू बावरा से ली थी संगीत की शिक्षा चंदेरी में रहते हुए जब बैजू को अपने संगीत का भविष्य अंधकार में नजर आया तो वह चंदेरी छोड़ ग्वालियर आ गए .जिसके बाद मानसिंह ने अपने दरबार में रख लिया एवं रानी मृगनयनी की संगीत शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी सौपी। ग्वालियर दरबार में रहते हुए बैजू ने बैजू ने ध्रुपद, मूजरीटोड़ी, मंगल गुजरी आदि नए-नए रागों का आविष्कार किया। मृगनयनी की शिक्षा समाप्त होने के बाद वह अपने गुरु हरिदास के पास चले गए।
तानसेन को हराया
किवंदंतियों के अनुसार एक बार अकबर ने अपने दरबार में एक संगीत प्रतियोगिता का आयोजन रखा। इस प्रतियोगितामें बादशाह ने यह शर्त रखी की जो तानसेन से यह मुकाबला जीतेगा वह वह मेरे दरबार में संगीतकार बनाया जायेगा एवं हारने वाले को मौत की सजा दी जायेगी . उस समय इस शर्त के कारण कोई भी संगीतज्ञ सामने नहीं आया लेकिन अपने गुरु हरिदास से आज्ञा लेकर वह इस प्रतियोगिता में भाग लिया। प्रतियोगिता के अंत में इतिहासकार फ़क़ीरुल्लाह के अनुसार बैजू ने तानसेन को प्रतियोगिता में हराया था और तानसेन ने बैजू के पैर छूकर अपने प्राणों की भीख मांगी थी। बैजू ने तानसेन को माफ़ कर दिया और ख़ुद ग्वालियर वापस चले गए।
देहान्त
बैजू का 71 वर्ष की आयु में मियादी बुख़ार के कारण चंदेरी में सन् 1613 ई. में वसन्त पंचमी के दिन देहान्त हो गया।
बैजू बावरा संगीत महोत्सव कल से
संस्कृति विभाग द्वारा बैजू बावरा समारोह का आयोजन चंदेरी स्थित राजा रानी महल में किया जायेगा। बैजू बावरा की याद में कराया जा रहा यह समारोह 21 से 23 जनवरी तक आयोजित होगा। इस कार्यक्रम में देश के ख्याति प्राप्त कलाकार भाग लेंगे। चंदेरी में बैजू बावरा की समाधि बनी है,जहां संगीत प्रेमी पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
जानकारी अनुसार 21 जनवरी से समारोह शुरू होगा। पहले दिन ध्रुपद केन्द्र ग्वालियर समूह गायन निर्देशन अभिजीत सुखदाणे, सहयोगी जगत नारायण शर्मा पखावज अंजनानाथ, कोलकाता गायन सहयोगी बिवास शंघई तबला, मजीद खान हारमोनियम, पं.विजय घाटे पुणे मेलांडिक रिदम, सहयोगी शीतल कोलवलकर कत्थक, सुरंजन खांडालकर गायन व हारमोनियम पर अपनी प्रस्तुति देंगे। इस समारोह में ग्वालियर अंचल सहित पूरे प्रदेश से संगीत प्रेमी पहुँचतेे हैं।जिसके लिए प्रशासन की ओर तैयारिया शुरू कर दी गई हैं।
22 जनवरी को पं.उमाकांत गुंदेचा, आनंद रमाकांत गुंदेचा भोपाल ध्रुपद गायन सहयोगी रमेश चंद्र जोशी पखावज पं.भजन सोपोरी नई दिल्ली, संतूर सहयोगी सरित दास तबला, ऋषि शंकर उपाध्याय पखावज, वरूण राजशेखरन घटम नीलांगी कलंत्रे जबलपुर कत्थक की प्रस्तुति देंगे।
23 जनवरी को मैहर बाध वृंद, मेहर वृंद वादन श्वेता जोशी, धार गायन सहयोगी शाहनवाज खां, तबला माजिद लतीफ खां, हारमोनियम देवेंद्र मंगला मुखी जयपुर कथक की प्रस्तुति देंगे।