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अल्पसंख्यक कौन? छात्रवृत्ति और मदरसा शिक्षकों के प्रशिक्षण का मुद्दा गरमाया

- प्रधानमंत्री को संत महासभा का पत्र, कहा - केन्द्र सरकार पहले यह बताये कि अल्पसंख्यक कौन है?

Update: 2019-06-12 12:26 GMT

नई दिल्ली, 12 जून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने अपनी दूसरी पारी में अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए तीन तलाक मुद्दे पर तथा पांच करोड़ अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति और अन्य कई मदद देने, मदरसों के शिक्षकों को तरह-तरह के प्रशिक्षण दिलवाने के लिए तेजी से पहल शुरू की है। इसे लेकर कई हिन्दूवादी संगठन अचरज व्यक्त करते हुए खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। इन्होंने केन्द्र सरकार से अल्पसंख्यक कौन हैं? इसको स्पष्ट करने की मांग की है। इनका कहना है कि आबादी के हिसाब से भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं।

इसी आधार पर अखिल भारतीय संत महासभा के राष्ट्रीय मंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि केन्द्र सरकार पहले यह तय करे कि कौन अल्पसंख्यक है? इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन करे या अंतरराष्ट्रीय मानक को स्वीकार करे। स्वामी जितेन्द्रानंद ने 'हिन्दुस्थान समाचार' को फोन पर बातचीत में बताया कि अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार किसी देश की आबादी की तीन से पांच प्रतिशत जनसंख्या को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है जबकि भारत में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 19 करोड़ है।

स्वामी जितेन्द्रानंद का कहना है, "सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में कहा था कि अल्पसंख्यक की स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि राज्य स्तर पर तय की जानी चाहिए। इस पर सरकार ने अभी तक कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है कि कौन अल्पसंख्यक है? केन्द्र सरकार इसे टालने के लिए कह रही है कि राज्य सरकारें तय करेंगी कि कौन अल्पसंख्यक है जबकि हम चाहते हैं कि केन्द्र सरकार तय करे कि भारत में कौन अल्पसंख्यक है।" स्वामी जितेन्द्रानंद आगे कहते हैं, "भारत में लगभग पांच हजार यहूदी हैं। इनमें से अधिक संख्या गुजरात व तटवर्ती इलाकों में है लेकिन केंद्र सरकार इन यहूदियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मुद्दे पर चुप्पी साधे है। अल्पसंख्यक का मतलब यहां मुसलमान और उसका तुष्टीकरण हो गया है। इसलिए इस मामले में हिन्दू जनमानस को यह जानने का हक है कि अल्पसंख्यक कौन है और केन्द्र व राज्य सरकारों की अल्पसंख्यक योजनाओं का सबसे अधिक लाभ किसे मिल रहा है।"

यह मुद्दा केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की उपरोक्त ताजा घोषणा के बाद और तूल पकड़ लिया है। उन्होंने 10 जून, 2019 को अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन संस्था 'मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान' (एमएईएफ) की 65वीं आमसभा की बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अल्पसंख्यक समाज के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के लिए पांच वर्षों में पांच करोड़ विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जाएगी, जिसमें 50 फीसद लड़कियां होंगी। उन्होंने कहा , ''अल्पसंख्यक वर्ग की स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ दी लड़कियों को देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों से ब्रिज कोर्स करा कर उन्हें शिक्षा और रोजगार से जोड़ा जाएगा।"

नकवी ने कहा कि देश भर के मदरसों में मुख्यधारा की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए मदरसा शिक्षकों को विभिन्न शिक्षण संस्थानों से प्रशिक्षण दिलवाया जायेगा, ताकि वे मदरसों में मुख्यधारा की शिक्षा- हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, कम्प्यूटर आदि पढ़ा सकें। यह अगले माह से शुरू हो जायेगा।

इधर, सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग वाले ज्ञापन पर तीन महीने में फैसला ले। कई संगठनों ने अल्पसंख्यक की परिभाषा को लेकर 2017 में अल्‍पसंख्‍यक आयोग को ज्ञापन देकर जवाब मांगा था लेकिन आयोग इस पर कन्नी काटता रहा है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने उसे इस पर 90 दिन में जवाब देने को कहा है। (हि.स.)

 

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