उपराष्ट्रपति ने कहा - ग्रामीण और शहरी क्ष्ेात्रों के विकास में भारी विषमताएं
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि देश की आजादी के सत्तर सालों बाद भी हम गांधीजी का ग्रामीण विकास का सपना साकार नहीं कर पाये हैं। असमान और एकतरफा विकास के चलते ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्र के मुकाबले काफी पीछे रह गया है। हमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के इस अंतर को खत्म करना होगा।
उपराष्ट्रपति ने कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बताते हुए कहा कि सरकार के एजेंडे में इसे शीर्ष स्थान मिलना चाहिए। नायडू सोमवार को यहां वाई फोर डी फाउंडेशन द्वारा आयोजित न्यू इंडिया कॉन्क्लेव के उद्धाटन अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कृषि को ज्यादा से ज्यादा आमदनी वाला व्यवसाय बनाए जाने की जरूरत है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें मुर्गी पालन, बागवानी, रेशम पालन, मधुमक्खी पालन और डेयरी जैसी कृषि से जुड़ी गतिविधियां अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। गांवों में बसे किसानों के लिए सस्ती दरों पर कर्ज की उपलब्धता और बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। केवल कर्ज माफी और मुफ्त बिजली प्रदान करने वाली योजनाओं से काम नहीं चलने वाला।
शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के बीच इस विषमता को जल्दी पाटना जरुरी है ताकि अगले 10 से 15 वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के भारत के प्रयास बाधित नहीं हों। ग्रामीण आबादी की समृद्धि में कृषि की अहम भूमिका के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों को आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया जाना जरूरी है।
उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर युवाओं से देश एवं खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों को गरीबी और निरक्षरता तथा लैंगिक असमानता व जातिवाद जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्त करने के लिए आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने और देश की बड़ी आबादी का इस्तेमाल देश के विकास में सुनिश्चित हो सके इसके लिए देश के युवाओं में ज्ञान, कौशल व प्रगतिशील विचारों का सही समन्वय जरूरी है।