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शिष्टाचार की आड़ में अवसरवादिता मंशा साधने की कवायद ?

Update: 2019-01-30 18:48 GMT
गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के साथ शिष्टाचार मुलाकात को राजनीतिक अवसरवाद में बदल दिया। पर्रिकर के साथ अगर कांग्रेस अध्यक्ष की यह निजी मुलाकात थी तब उसकी निजता सार्वजनिक मंच से उजागर कर देना क्या शिष्टाचार के दायरे में माना जाएगा या अवसरवादिता के। जैसा कि पर्रिकर ने अपने पत्र में इस शिष्टाचारी मुलाकात को अवसरवादी करार दिया है। पता नहीं उस पांच मिनट की मुलाकात में दोनों के बीच क्या बात हुई। पर हां! मुलाकात के कुछ ही घंटों बाद राहुल गांधी का सार्वजनिक बयान कई सवाल पैदा कर गया। क्या शिष्टाचार की आढ में कोई सोची-समझी चाल थी? या फिर राफेल मसले को और रंग देने के लिए उन्होंने उस मुलाकात से ही बाहर थी। वे न तो मीडिया के सवालों को ठीक से समझ पा रही थीं और न ही अनुकूल उत्तर दे पा रही थी। 


राजनीति संभावनाओं का खेल है। दलीय व्यवस्था में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए दूसरे को नाकाम साबित कर खुद को सत्ता का असली हकदार माना जाता है। इसके लिए झूठ एक अचूक और उपयुक्त शस्त्र माना जाता है। और इसके लिए आरोपों को गढ़ा जाता है। रफाल इस लिहाज से ऐसा ही शिगूफा है जिसे सच साबित करने के लिए कांग्रेस निरंतर और लगातार पूछ से पूछ जोड़ती जा रही है।

'मी टू' के बाद अब अगली शख्सियत कोई है तो वो हैं गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर। जिनको लेकर कांग्रेस हलकों में कई तरह की भ्रांतिया फैलाई जा रही हैं। उनके बैडरूम से लेकर कार्यालय में रफाल के राज बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दबाव के चलते ही पर्रिकर को पत्र सार्वजनिक करना पड़ा। पर्रिकर अपने स्वास्थ्य को लेकर जिस तरह संघर्ष कर रहे हैं उसको लेकर भी मिथ्याचार कम नहीं हैं। कहा जा रहा है उनको बीमारी में ले जाने के लिए इंजेक्शन दिए गए ताकि वे कुछ बोलने की स्थिति में ही न रह पाएं।

स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की मौत लेकर अगर भ्रांतियां फैलाई जा सकती हैं। उन्हें ईवीएम में हैकिंग का राजदार बताया जा सकता है तब पर्रिकर को क्यों नहीं? आखिर वे पूर्व रक्षामंत्री जो ठहरे।

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