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सत्यपाल मलिक ने बिहार के विश्वविद्यालयों पर कसी थी नकेल, सभी ने विरोध में की थी लॉबिंग

Update: 2018-11-29 08:56 GMT

नई दिल्ली/ग्वालियर/स्वदेश वेब डेस्क। सत्यपाल मलिक को जब भाजपानीत सरकार ने बिहार का राज्यपाल बनाया तो लगा था कि नीतीश कुमार से बेहतर तालमेल बनाये रखने के लिए यह किया गया है। तालमेल बनने भी लगा था लेकिन मलिक ने जब राज्य के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व तथाकथित भ्रष्टाचारी कुलपतियों, प्रोफेसरों, अध्यापकों, रजिस्ट्रारों, निजी महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के मालिकों (जिसमें ज्यादातर राजनेता व बिल्डर हैं) पर नकेल कसना शुरू किया, तब उन सब ने गोलबंद होकर इनके विरुद्ध लॉबिंग शुरू कर दी। नतीजतन, इनका तबादला जम्मू-कश्मीर हो गया।

जम्मू-कश्मीर में उनसे पहले एक सेवानिवृत्त अफसर राज्यपाल थे। उनकी जगह पर सत्यपाल मलिक के आने से पक्ष व विपक्ष के नेताओं की उनसे सहजता से बातचीत होने लगी। सत्यपाल मलिक के घनिष्ठ रहे पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि मलिक ऐसे आदमी नहीं हैं जो आंख मूंद कर नेताओं की बात मानें। उनकी जगह पर यदि कोई पदलोलुप नौकरशाह या नेता होता तो वह ऐसा नहीं करता। उसको जो करने का संदेश जाता, उसे करता। राज्यपाल मलिक ने कुछ दिन पहले ग्वालियर में एक कार्यक्रम के दौरान जो कहा, "अगर दिल्ली की तरफ देखता तो राज्य में भाजपा के समर्थन से सज्जाद लोन की सरकार बनबाने का दवाब होता" यह बात दीगर है कि मलिक उस दबाव में नहीं आये, क्योंकि उससे उनकी बहुत भद्द होती। इसलिए उन्होंने विधानसभा ही भंग कर दी।

राज्यपाल के इस कदम से राज्य में जोड़ – तोड़ करके किसी की भी सरकार बनने की संभावना ही खत्म हो गई। अब तो लोकसभा के साथ राज्य विधानसभा का भी चुनाव कराना पड़ेगा और अगले चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस तथा कांग्रेस ने तालमेल करके चुनाव लड़ने की बात कही है। महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी अलग लड़ेगी। चुनाव के बाद यदि सरकार बनाने के लिए तालमेल की जरूरत पड़ी तो कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेस व पीडीपी एक साथ हो जायेंगे। यदि नहीं भी हों, तो कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस का तालमेल करके लड़ने से ही भाजपा को नुकसान होगा। मलिक ने अब कहा है कि उनका पद तो नहीं जाएगा लेकिन ट्रांसफर हो सकता है।


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