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एससी-एसटी कानून को फिर सख्त बनाने संबंधी विधेयक को संसद की मंजूरी

Update: 2018-08-09 15:45 GMT

नई दिल्ली। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए कानूनी प्रावधानों को पहले जैसा ही सख्त बनाने के उद्देश्य से लाया गया अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारक (संशोधन) विधेयक 2018 को आज संसद की मंजूरी मिल गई । राज्यसभा ने इस विधेयक को आज सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। लोकसभा इस विधेयक को गत सोमवार को मंजूरी दे चुकी है।

इस विधेयक के पारित होने के साथ ही उच्चतम न्यायालय द्वारा तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान पर लगाई गई रोक भी समाप्त हो गई है।

दलित उत्पीड़न विरोधी कानून के कुछ प्रावधानों को नरम बनाने संबंधी उच्चतम न्यायालय के एक फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार ने इस अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण (संशोधन) विधेयक 2018 पेश किया ।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत की ओर से पेश किए गए इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सहित विपक्षी दल को सदस्यों ने सरकार से आग्रह किया कि वह इस नए कानून को संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल करें ताकि इसे न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा जा सके। इन सदस्यों का तर्क था कि ऐसा न होने पर नए कानून को न्यायपालिका में चुनौती दी जाएगी और संभावना है कि न्यायपालिका की ओर से फिर प्रतिकूल फैसला आए।

चर्चा में कांग्रेस की कुमारी शैलजा, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के डी. राजा और शिवसेना के संजय राउत सहित कई सदस्यों ने हिस्सा लिया।

इस विधेयक में कानून को पहले की तरह सख्त बनाए रखने का प्रावधान किया गया है। दलित उत्पीड़न के आरोपी को शिकायत के बाद तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है और उसको अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी। सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।

उच्चतम न्यायालय की एक खंडपीठ ने गत 20 मार्च को इस कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ ऐहतियाती बदलाव किए थे। इसके बाद देश भर में दलित संगठनों ने आंदोलन किया था तथा दो अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था।

दलित आंदोलन के कारण नरेन्द्र मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले से उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर संसद में विधेयक पेश करने की घोषणा की थी।

अब संशोधित विधेयक में उन सभी पुराने प्रावधानों को शामिल किया जाएगा, जिसे उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में हटा दिया था। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था।

इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए। इन पर होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सकें। इस कानून के तहत किसी की जाति को आधार बनाते हुए उस अपमानिक करने को गैर जमानती अपराध माना गया है।

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