यमुना किनारे दिल्ली का राष्ट्रीय स्मृति स्थल शुक्रवार को कालचक्र का गवाह बना। उस महान कर्मयोद्धा के अंतिम दर्शनों का। अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम झलक पा लेने को देश के कोने-कोने से जनसैलाब उमड़ आया। जिसमें चार पीढिय़ों का अनूठा व अलौकिक संगम था। 102 साल का बूढ़ा लाठी टेकता विलख रहा था तो चौदह साल की बच्ची एक कोने में खड़ी वाजपेयी की मार्मिक कविता पढ़ती-सुनाती सिसकियां ले रही थी। रो-रोकर आंखें भर रही थी। नवयुवक तिरंगा हाथों में लिए वाजपेयी के लिए नारे लगा रहे थे। राजसत्ता नतमस्तक थी। जनसमुदाय विलखित था। महानायक के महाप्रयाण के इस अंतिम दृश्य को मानो हर कोई अपनी आंखों में उतार लेना चाहता था। वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने जैसे ही मुखाग्नि दी, वे पंचतत्व में विलीन हो गए। अंतिम समय में वायु देव और हल्की फुहारों ने आकर प्रकृति की उपस्थिति का एहसास कराया। महाप्रयाण के क्षणों में विचारों का अंतरनाद भर आए टब में पानी के थपेड़ों की तरह कोरों से टकराने लगा। अंतरमन में कहीं एक दुख पसरता फिर असहमतियां खोदी हुई मिट्टी की तरह गंध देने लगी। अटलजी नहीं रहे, राजनीति में जिन लोगों के लिए सहमतियों असहमतियों के बावजूद एक सम्मान का स्थान रहा, वो अब कहां मिलेगा? वाजपेयी ने अपनी कार्यकुशलता, कार्यशैली व कर्म के सिद्धांत की एक बड़ी लकीर खींच दी। कौन होगा आगे का वाहक? क्या कोई उनके पदचिन्हों पर चल भी पाएगा? लोकतंत्र किस मार्ग पर चलेगा? कौन इस लोकतंत्र ध्वजाधारी का अनुसरण करेगा? ये कुछ सवाल हैं जो नई पीढ़ी के नेताओं के जेहन में जरूर उभर रहे होंगे। काल के कपाल पर अटलजी ने जो लिखा, उसे अटलजी ही मिटा सकते थे। क्या कोई इस लकीर को मिटा पाएगा?
प्रधानमंत्री रहते अटल जी ने खुद को स्वयंसेवक कहलाने में ही गर्व महसूस किया। वे कहा करते थे, 'मैं आज प्रधानमंत्री हूं कल नहीं रहूंगा। लेकिन, स्वयंसेवक हमेशा रहूंगा।Ó वे कभी भी पद के आसक्त नहीं रहे। उनके पार्थिव शरीर को सुबह छह, कृष्ण मेनन मार्ग से भाजपा मुख्यालय ले जाते समय लोग रो-रोकर अश्रुपूर्ण विदाई दे रहे थे। आईटीओ से गुजरते हुए दीनदयाल मार्ग स्थित पार्टी कार्यालय में उनका पार्थिव शरीर जहां से गुजरता लोग साथ चल देते। नम आंखों से विदाई देते। सम्मान में सिर झुक जाता। कोई शव यात्रा में चलने लगता तो कोई वहीं बैठकर रुदन करने लग जाता। लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते। उनकी रैली में जुटने वाली भीड़ से ज्यादा लोग शुक्रवार को भाजपा कार्यालय में जमा थे। यह अटल जी के रूप में कोई दिव्य शक्ति ही थी जो लोगों को सोचने पर विवश कर देती। कोई विरले लोग ही धरा पर अवतति होते हैं। उनमें से अटलजी भी एक थे, जो सदैव अटल रहे। अपने सिद्धांतों के प्रति। राष्ट्र के प्रति। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा अध्यक्ष अमितशाह सहित चार किमी पैदल चलकर स्मृति स्थल पहुंचे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत बड़ी हस्तियां इस महाप्रयाण का गवाह थीं। सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सलामी दी। भूटान नरेश जिग्मे खेसर, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका के विदेश मंत्रियों समेत कई विदेशी नेताओं ने भी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी।
अंतिम समय में उनकी कविता उस सत्य का एहसास करा रही थी...
जन्म-मरण अविरत फेरा, जीवन बंजारों का डेरा
आज यहां कल कहां कूच है, कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा प्रकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौले
अपने ही मन से कुछ बोलें।