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दिग्गी के समक्ष अबूझ पहेली बन गईं प्रज्ञा

Update: 2019-04-18 14:49 GMT

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल में कांग्रेस उम्मीदवार और प्रदेश के दो बार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारकर कांग्रेस और दिग्विजय सिंह दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। प्रज्ञा का नाम सामने आते ही देशभर में भगवा और हिन्दुत्व पर बहस तेज हो गई है। मालेगांव विस्फोट से लेकर प्रज्ञा को जमानत मिलने तक की चर्चा अब लोगों की जुबान पर है। फिर खुद प्रज्ञा ने यह कहकर बहस को गरमा दिया है कि वे दिग्विजय सिंह की करतूतों को जनता के बीच ले जाएंगी। धर्मयुद्ध की लड़ाई में प्रज्ञा विधर्मियों को धूल चटाएंगी। साध्वी ने नौ साल तक जेल में जो यातना, त्रासदी और अपमान सहा है उसे जनता के बीच ले जाने के लिए उन्हें इससे अच्छा मंच और कहां मिल सकता था? हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को साबित करने के लिए पहले उनकी गिरफ्तारी, फिर मकोका थोपकर मानवीय यातना देकर उन्हें मजबूर किया गया कि वे उस जुर्म को स्वीकारें जो उन्होंने किया ही नहीं था। लेकिन, वक्त की दरकार थी, प्रज्ञा ने वह सब सहा, वह भी जीवन दांव पर लगाकर। साध्वी ने राष्ट्रधर्म को सर्वाेपरि माना है फिर अपना स्वाभिमान।

भोपाल का राजनीतिक पारा जैसे-जैसे चढ़ेगा राष्ट्रवाद की लहरें भी भोपाल के समानांतर मध्य प्रदेश से उपर उठकर अन्य राज्यों की ओर रूख करेंगी। कांग्रेस के दिग्गज नेता और प्रदेश के दो बार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुकाबले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर राजनीति में भले ही उन्नीस हों पर चुनावी बिसात में जरूर वह दिग्गी के समक्ष अबूझ पहेली बन गईं हैं। तभी सवाल है कि अपुष्ट और आधारहीन तथ्यों के सहारे 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्द को गढ़ने वाले दिग्विजय सिंह क्या इस हिंदुत्व के चेहरे का सामना कर भी पाएंगे? इतिहास गवाह है, स्त्री हठ के सामने बड़े से बड़ा सूरमा भी धराशायी हुआ है। प्रज्ञा ठाकुर स्त्री होने के साथ-साथ वे साध्वी भी हैं। उनकी हठ अगर भगवा को सम्मान दिलाने की ही है तो जनता को तय करना होगा कि राष्ट्र के सम्मान के लिए साध्वी के बढ़े हुए कदमों को और अधिक शक्ति प्रदान करे। साध्वी जानती हैं कि लोकतंत्र में बिना जनसमर्थन के क्रांति लाना असंभव है। तभी प्रज्ञा ने चुनाव में उतरकर विधर्मियों को ललकारा है।

महाभारत काल में अजेय योद्धा माने जाने वाले गंगा पुत्र भीष्म ने भी शक्ति के गुरूर में अम्बे और अम्बालिका का अपमान किया था, बाद में वही दुर्बल स्त्री भीष्म के विनाश का कारण बनी। इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त करने वाले भीष्म का अंत करने के लिए भले ही उसे बार-बार जन्म लेना पड़ा हो।

वक्त कभी भी एक जैसा नहीं होता। उसका पहिया घूमता रहता है। प्रज्ञा के सामने वक्त ने ही दस्तक दी है। एक स्त्री फिर साध्वी। जो नौ साल तक जेल में यातना सहती रही हो, निर्दाेष होकर भी दोषी होने का कलंक माथे पर लिए घुटती रही हो। यह वक्त ही है जिसने एक लंबे अरसे के बाद प्रज्ञा को अवसर दिया है। वह सब बताने का, जो उनके साथ अमानवीय बर्ताव हुआ। वक्त ने आज फिर करवट बदली है। प्रज्ञा का संबल अगर उनका आत्मबल है तो उसके पीछे उनका धर्मपरायण होना है। तभी वह दिग्विजय सिंह को अनैतिक करार देकर उन पर हमलावर हो चली हैं। 

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