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सीवीसी की भूमिका की न्यायिक जांच की मांग

सीबीआई निदेशक की बहाली पर कांग्रेस ने घेरा सरकार को

Update: 2019-01-10 14:49 GMT

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय द्वारा सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की बहाली को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने सीबीआई जैसी महत्वपर्ण सरकारी संस्था की विश्वसनीयता व प्रामाणिकता से खिलवाड़ किया है। सीबीआई निदेशक को पद से हटाने से लेकर 23 और 24 अक्टूबर की मध्य रात्रि में की गई कार्रवाई की न्यायिक जांच की मांग की है। पार्टी प्रवक्ता आनंद शर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सीबीआई से संबंधित पिछले दो दिनों का घटनाक्रम एक विशेष टिप्पणी की मांग करता है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग ;सीवीसीद्ध के कहने पर सरकार ने जिस तरह औचक कार्रवाई की उससे घटना की गंभीरता समझ में आती है। शर्मा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि सरकार का वह निर्णय सीवीसी की शिफारिश पर आधारित था।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सीवीसी को भी ये अधिकार नहीं है कि वो सीबीआई के निदेशक को नियुक्त करे, उनको पद से हटाए या उनका तबादला करे। ना ही दिल्ली पुलिस स्पेशल एस्टैब्लिशमैंट एक्ट में ऐसा कोई अधिकार किसी को दिया गया है। और अब जो उच्च स्तरीय समिति बनी है, वह सीबीआई निदेशक की नियुक्ति करती है। उसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। विपक्ष के नेता सहित उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। इसमें सीवीसी की भूमिका नगण्य है।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि पिछले दो दिन संसद में प्रधानमंत्री बहस से दूर ही रहे। सदन में प्रधनमंत्री से सवाल पूछे जाते जिसका जवाब नहीं मिलता। सीबीआई निदेशक की बहाली के बाद वे जैसे ही अपने कार्यालय पहंुचे प्रधानमंत्री मोदी ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। बैठक की रिपोर्ट विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे को नहीं बताई गई।

उन्होंने कहा कि ये न्यायोचित होगा कि वो 77 दिन, जब सीबीआई के निदेशक को एक गलत फैसले से उनको छुट्टी पर भेजा गया। वो 77 दिन इनको वापस दिए जाने चाहिए। क्योंकि सीबीआई के निदेशक का दो साल का फिक्स टेन्योर है। हम किसी व्यक्ति की बात नहीं बल्कि एक संस्था की विश्वसनीयता, प्रमाणिकता व निष्पक्षता की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार ने सीबीआई को एक संस्था के रुप में पूर्ण रुप से कमजोर करने और बर्बाद करने का काम किया, जिससे सीबीआई की अपनी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग चुका है। उसके बाद अब हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होना चाहिए, सर्वोच्च न्यायालय को भी इस पर गौर करना चाहिए।

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