भीमा-कोरेगांव हिंसा केस : सुप्रीम कोर्ट ने अगले चार हफ्ते के लिए नजरबंदी बढ़ाई

Update: 2018-09-28 06:47 GMT

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नक्सल कनेक्शन के आरोप में गिरफ्तारी और फिर नजरबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए ऐक्टिविस्ट् को कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि ये गिरफ्तारियां राजनीतिक असहमति की वजह से नहीं हुई हैं। कोर्ट ने SIT जांच की मांग खारिज करते हुए ऐक्टिविस्ट्स की हिरासत 4 हफ्ते और बढ़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस को आगे जांच जारी रखने को भी कहा है।

आपको बता दें कि पांच ऐक्टविस्ट्स वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनान गोन्साल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को पहले गिरफ्तार और फिर नजरबंद रखा गया है। अब इनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है। इन ऐक्टिविस्ट्स की तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में एसआईटी जांच की मांग के लिए इतिहासकार रोमिला थापर एवं अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं। पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिए कहा। पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं। पिछले साल 31 दिसंबर को 'एल्गार परिषद' के सम्मेलन के बाद राज्य के भीमा- कोरेगांव में हिंसा की घटना के बाद दर्ज एक एफआईआर के संबंध में महाराष्ट्र पुलिस ने इन्हें 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 19 सितंबर को कहा था कि वह मामले पर पैनी नजर बनाए रखेगा क्योंकि सिर्फ अनुमान के आधार पर आजादी की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर, अश्विनी कुमार और वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि समूचा मामला मनगढ़ंत है और पांचों कार्यकर्ताओं की आजादी के संरक्षण के लिये पर्याप्त सुरक्षा दी जानी चाहिए। वहीं, पुलिस का दावा है कि कार्यकर्ता नक्सलियों की मदद कर रहे थे और उसने पुख्ता सबूतों के आधार पर गिरफ्तारी की है। 



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