राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण शीघ्र होना चाहिए : डॉ. मोहन भागवत
"भविष्य का भारत" राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण विषय पर तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का समापन
नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला विषयक "भविष्य का भारत - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का दृष्टिकोण" के समापन सत्र में 215 प्रश्नों के उत्तर देते हुए ना केवल लोगों की जिज्ञासाओं को शांत किया, वरन अपने सम्बोधन में संघ का परिचय देते हुए लोगों को संघ से जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा कि - "राम मंदिर का निर्माण राम जन्मभूमि पर शीघ्र होना चाहिए। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और यदि ऐसा हो गया तो मुसलमानों पर उठने वाली उंगलिया कम हो जाएँगी।"
इसके अलावा उन्होंने देश के लिए नई शिक्षा नीति की आवश्यकता बताते हुए कहा कि इसमें आधुनिक शिक्षा पद्धति और पुरातन परंपरा का समावेश होना चाहिए। जिससे बच्चे ज्ञानवान और संस्कारित बनें।
तीन दिनों तक चली व्याख्यानमाला में सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने दो दिनों तक उपस्थित लोगों को अपने उद्बोधन से "भविष्य के भारत" के लिए संघ का दृष्टिकोण बताया। उन्होंने समाज को एक रखने के लिए किये जा रहे संघ के प्रयासों का उल्लेख किया। तीसरे और अंतिम दिन बुधवार को डॉ. भागवत ने लोगों द्वारा पूछे गए 215 प्रश्नों के उत्तर दिए। आयोजकों ने प्रश्नों की अधिकता के चलते उन्हें समूहों में बाँट दिया। डॉ. भागवत ने पहले प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि हिदुत्व को हिन्दुइजम कहना अनुचित है ये एक सतत प्रक्रिया है। रोटी बेटी व्यवहार के सवाल पर डॉ भागवत ने कहा कि रोटी व्यवहार आसानी से किया जाता है लेकिन बेटी व्यवहार थोड़ा कठिन हैं। लेकिन संघ इसका समर्थन करता है। अंतरजातीय विवाह पर संघ के समर्थन का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा यदि आप पता करने निकलेंगे तो पाएंगे कि ऐसा करने वालों में सबसे अधिक संख्या संघ के स्वयंसेवकों की ही है।
डॉ. भागवत ने नई शिक्षा नीति के गठन से जुड़े प्रश्न के उत्तर में कहा कि नई शिक्षा नीति अवश्य बननी चाहिए लेकिन उसमें आधुनिक शिक्षा और हमारी पुरातन परम्परा का समावेश होना चाहिए। तभी बच्चा शिक्षित और संस्कारित होगा। उन्होंने शिक्षा के गिरते स्तर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि आज शिक्षा का स्तर नहीं गिरा है। शिक्षा देने वाले और ग्रहण करने वाले लोगों का स्तर गिरा है। छात्र आज ज्ञान के लिए नहीं, पैसे कमाने के लिए शिक्षा ग्रहण करते हैं वहीँ शिक्षक भी देश का भविष्य गढ़ने के भाव से शिक्षा नहीं देते। अंग्रेजी के बढ़ते प्रचलन, हिंदी को पूरे देश की भाषा बनाने और संस्कृत की स्थिति से जुड़े प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मन के अंदर है नीति नियामक में नहीं है, आपका मन करता है तो बोलते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा भाव की वाहक है संस्कृति की वाहक है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी इंटरनेशनल भाषा है ये सही नहीं है ऐसा केवल प्रचारित किया जाता है। उन्होंने कहा कि जितना हम स्वभाषा में काम करेंगे उतना सहज होगा। उन्होंने आह्वान किया कि सभी को एक दूसरे प्रांतों की भाषा सीखना चाहिए। रही बात संस्कृत की तो हम उसका सम्मान नहीं करते तो सरकार भी नहीं करती।
महिला सुरक्षा से जुड़े प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि संघ महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लगातार काम कर रहा है। हमारे यहाँ किशोर विकास किशोरी विकास के काम हो रहे हैं। राजनेता और लेखिका जया जेटली के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा कि विश्व मे हिंदुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है बल्कि आक्रोश तो भारत में ही है। हमने धर्म के नाम पर अधर्म का आचरण किया है जो अनुचित है। गौरक्षा से जुड़े प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि गौ एक ऐसा श्रेष्ठ पशु है, गुणकारी है इसलिए गौरक्षा होनी चाहिए। गौ संवर्धन के लिए काम होने चाहिए। केवल हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी गौशाला चला रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गौसेवा करने वाले की आपराधिक प्रवत्ति काम हो जाती है ये कई जेलों में प्रमाणिक हो चुका है। धर्मावलम्बन के जुड़े प्रश्न पर उन्होंने कहा कि जब सभी पंथ और समाज एक हैं तो इसकी आवश्यकता क्यों? . और जो ऐसा करता है वो अनुचित करता है।
विश्व में #हिंदुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है, आक्रोश तो भारत में ही है - डॉ. मोहन जी भागवत #RSS #RSS4Bharat @RSSorg pic.twitter.com/KKRhakkj2D
— Swadesh (@SwadeshNews1) September 19, 2018
जनसँख्या के प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि इसके बारे में एक स्पष्ट नीति होना चाहिए जहाँ समस्या है, बच्चे अधिक हैं, पालने की व्यवस्था नहीं है वहां पहले उपाय हों। हिन्दुओं की जन्मदर घट रही है ये सरकार का नहीं हिन्दू समाज का प्रश्न है। आरक्षण पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था है संघ उसका समर्थन करता हैं। उन्होंने कहा कि समस्या आरक्षण नहीं है समस्या राजनीति है। उन्होंने कहा कि शरीरी के सभी अंग साथ चलें तो अच्छा है। जो ऊपर हैं वो नीचे झुकें और जो नीचे हैं वो यदि एड़ी के बल ऊपर उठे तब सब बराबरी पर हो जायेंगे।
राम मंदिर से जुड़े प्रश्न के उत्तर में डॉ. भागवत ने कहा कि राम केवल भगवान नहीं एक आदर्श हैं, मर्यादा हैं, इमामे हिन्द हैं इसलिए मैं चाहता हूँ कि राम जन्मभूमि पर राम मंदिर शीघ्र बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि कहा कि इसे इतना लटकना ही नहीं चाहिए था , राजनीति नहीं होनी चाहिए थी। यदि राम मंदिर बन गया तो हिन्दू मुसलमान के झगड़े बंद हो जायेंगे और मुसलमानों की तरफ उठने वाली उँगलियाँ भी कम हो जाएँगी। उन्होंने पर्यावरण के नाम पर हिन्दुओं के त्योहारों को टारगेट करने के प्रश्न पर कहा कि यदि त्योहारों से जोड़कर ही पर्यावरण की चिंता करना है तो फिर सभी त्योहारों पर चिंता करें। संघ से जुड़े प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ का जब गठन हुआ तब पंजीकरण की व्यवस्था नहीं थी इसलिए संघ पंजीकृत नहीं है प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने अंत में कहा कि मैंने तीन दिनों तक आपके समक्ष जो भी बोला वो आपसी विचार विमर्श के बाद बोला , अर्थात मैं जो बोल रहा हूँ उसमें संघ की सहमति बोल रही है।
अंत में अपने अपने सक्षिप्त समापन उद्बोधन में डॉ. मोहनजी भागवत ने कहा कि संघ के बारे में कौन क्या कहता है इस पर विशवास नहीं करें। आप आएं संघ को देखें , अंदर से जाने। जुड़ना है जुड़े नहीं जुड़ना ना जुड़े। लेकिन संघ देश के नागरिकों से केवल इतना चाहता है कि वो निष्क्रिय नहीं रहें राष्ट्र को परम वैभव संपन्न बनाने के लिए जो भी कुछ करना है वो प्रयत्न अवश्य करें।
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