नई दिल्ली/प्रमोद पचौरी। लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन की राजनीति पेंडुलम की तरह झूलती नजर आ रही है। कभी राजग की तरफ तो कभी महागठबंधन की ओर। गुरूवार को रालोसपा के नेता उपेंद्र कुशवाहा का दिन था। वे महागठबंधन का हिस्सा बने। शुक्रवार को चिराग पासवान ने अपना दांव लगाया। अपने अनुभवी पिता रामविलास पासवान के साथ वे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और जेटली के निवास पर पहुंचे। जहां अलग-अलग दो दौर की बैठकों के बाद बीच का फॉर्मूला तय हुआ। रामविलास राजनीति के धुरंधर हैं पर उम्र के इस पड़ाव पर वे आराम की राजनीति करना चाहते हैं, सो उनके लिए राज्यसभा का इंतजाम कर दिया गया है। बाकी चिराग को छह लोकसभा सीटों के लिए मना लिया गया है। हालांकि चिराग ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। वे जानबूझकर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। वे सात से कम सीटों पर मानने को तैयार न थे। शुक्रवार को निकले इस फॉर्मूले के बाद अब बिहार की राजनीतिक लड़ाई साफ होती नजर आ रही है। यानी नीतीश कुमार राज्य में राजग की ओर से बिग ब्रदर बने रहेंगे। नीतीश की कमान में जदयू, भाजपा, पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी खड़ी नजर आएगी तो सामने आरजेडी के साथ कांग्रेस, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, शरद यादव, तेजस्वी के नेतृत्व में जोर लगाएंगे। हां, पप्पू यादव पर देर सबेर फैसला होना अभी बाकी है। वे किस तरफ रूख करते हैं क्योंकि उनकी पत्नी कांग्रेस से सांसद हैं। शरद यादव को महागठबंधन की ओर से उनकी मनपसंद मधेपुरा सीट से चुनाव लडऩे का आश्वासन मिला है।
जीतनराम मांझी गया से चुनाव लड़ेंगे तो उपेंद्र कुशवाहा आरा से। उपेंद्र पिछले कई दिनों से नीतीश के निशाने पर थे। वे जिस तरह बार-बार बयान दे रहे थे उससे लगने लगा था कि नीतीश उन्हें राजग से बाहर का रास्ता दिखाएंगे। पासवान के कद और मास अपील को नीतीश नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। तभी उन्होंनेे पासवान को आगे बढ़ाया है ताकि सामाजिक तानेबाने को बरकरार रखा जा सके। बिहार की राजनीति में सब पर भारी पड़ते नजर आ रहे नीतीश अब आगे क्या गुल खिलाते हैं, इस पर निगाहें टिक गई हैं।