तिरुपति में भारतीय विज्ञान सम्मेलन का शुभारंभ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आंध्र प्रदेश के तिरुपति में भारतीय विज्ञान सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर महत्वपूर्ण संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है और देश का आगे बढ़ना निश्चित है। भारत का लक्ष्य केवल एक सुपर पावर बनना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे पूरी दुनिया का मार्गदर्शन करने वाला 'विश्व गुरु' भी बनना चाहिए।
राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित चार दिवसीय सम्मेलन 29 दिसंबर तक चलेगा। कार्यक्रम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हुए। सरसंघचालक ने भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में भी दर्शन किए, जहाँ मंदिर प्रशासन और पुजारियों ने उनका पारंपरिक स्वागत और सम्मान किया।
धर्म और विज्ञान का समन्वय
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि विज्ञान और धर्म के बीच कोई वास्तविक टकराव नहीं है। उन्होंने समझाया कि विज्ञान और धर्म के रास्ते भले ही अलग दिखते हों, लेकिन अंततः दोनों एक ही सत्य की खोज करते हैं और उनकी मंजिल एक ही है। उन्होंने कहा कि हमारे विकास की अवधारणा का मूल आधार धर्म है। धर्म का अर्थ केवल पूजा-पद्धति या मजहब नहीं है, बल्कि यह वह तरीका है जिससे प्रकृति और संपूर्ण ब्रह्मांड संचालित होता है। उन्होंने धर्म और विज्ञान के बीच के संबंधों पर भी प्रकाश डाला।
अंधविश्वास और आधुनिक चुनौतियां
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी कई मंदिर अपनी मजबूत और वैज्ञानिक बनावट के कारण सुरक्षित रह जाते हैं, जो हमारे प्राचीन ज्ञान की शक्ति को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में आधुनिक समय में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग ने गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर दी हैं।