हिन्दी के विकास और विस्तार में हिन्दी फिल्म उद्योग का अहम योगदान रहा है। शब्दों को सहज और सरल बनाने के लिए फिल्म उद्योग ने भी कई प्रयोग किए जो आम बोलचाल में धड़ल्ले से उपयोग होते हैं। हिन्दी सिनेमा लगातार 100 सालों से हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम बना हुआ है।
हिन्दी फिल्मों में गीत लिखने वाले गीतकार गोपालदास नीरज, संतोष आनंद, आनंद बख्शी, राजेन्द्र कृष्ण, शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी, राजा मेंहदी अली खां से लेकर गुलजार, जावेद अख़्तर, शकील बदायुनी, कमर जलालाबादी और अब इरशाद कामिल, अमिताभ भट्टाचार्य, मनोज मुंतसिर, स्वानंद किरकिरे तक एक लंबी है शृंखला है गीतकारों-एवं शायरों की, जिनके लिखे गीत लोगों की जुबान पर आज भी चढ़े हुए हैं।
ऐसे ही कुछ गीतों के बोल हैं-
फिल्म- कन्यादान (1968)
लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में
हजारों रंग के नजारे बन गये
सबेरा जब हुआ तो फूल बन गए
जो रात आई तो सितारे बन गए
गीतकार-नीरज
गायक- मोहम्मद रफ़ी
फिल्म-सूरज (1966)
बहारों फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है -
हवाओं रागिनी गाओ
मेरा महबूब आया है
फिल्म-सूरज (1966)
गीतकार-हसरत जयपुरी
गायक- मोहम्मद रफी
फिल्म- मासूम (1983)
गीतकार-गुलजार
फिल्म- आंधी (1975)
गीतकार- गुलजार
गायक-किशोर कुमार एवं लता मंगेशकर
फिल्म- थोड़ी सी बेवफाई (1978)
गीतकार-गुलजार
गायक- किशोर कुमार एवं लता मंगेशकर
फिल्म- बार्डर (1998)
गीतकार- जावेद अख़्तर